लंदन 22 सितंबर 2025
इज़रायल की नीतियों के खिलाफ अब दुनिया खुलकर आवाज उठाने लगी है। पिछले 24 घंटों में ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल जैसे चार बड़े देशों ने ऐसा कदम उठाया है जिससे इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के माथे पर पसीना आ गया है। इन देशों ने साफ कर दिया है कि अब वे फिलिस्तीन की मान्यता और उसके अधिकारों के पक्ष में खड़े हैं। यह ऐलान न सिर्फ इज़रायल की कूटनीतिक अलगाव को उजागर करता है, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी देता है कि अब फिलिस्तीन के मुद्दे पर चुप्पी संभव नहीं।
ब्रिटेन और कनाडा जैसे पश्चिमी लोकतंत्र लंबे समय से इज़रायल के करीबी माने जाते रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने भी अब खुलकर कहा है कि वे फिलिस्तीन को मान्यता देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे। इसका सीधा असर संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक राजनीति पर पड़ने वाला है। इज़रायल के लिए यह झटका कम नहीं कि जिन देशों को वह अपना साझेदार समझता था, वही अब फिलिस्तीन के पक्ष में कड़ा रुख अपना रहे हैं।
नेतन्याहू का गुस्सा और बेचैनी भी इसी वजह से चरम पर है। उन्होंने इन फैसलों को “गलत और खतरनाक” बताया, लेकिन हकीकत यह है कि अब उनकी नाराज़गी सुनने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कान बंद हो चुके हैं। अमेरिका के अलावा कोई भी बड़ा पश्चिमी देश अब आंख मूंदकर इज़रायल का समर्थन करने को तैयार नहीं। यूरोप का यह रुख इज़रायल के लिए अलगाव का घंटा साबित हो सकता है।
फिलिस्तीन समर्थक संगठनों ने इसे एक “ऐतिहासिक जीत” बताया है। उनका कहना है कि यह केवल शुरुआत है और जल्द ही और भी देश इस कतार में शामिल होंगे। फिलिस्तीनी जनता, जो दशकों से बेघर, बेबस और बुनियादी अधिकारों से वंचित है, के लिए यह कदम एक नई उम्मीद की किरण है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोप के इस फैसले से अब इज़रायल पर युद्धविराम, मानवाधिकार और शांति प्रक्रिया को लेकर अभूतपूर्व दबाव बनेगा। यह उन आवाज़ों की गूंज है जो गाज़ा और वेस्ट बैंक में तबाही के मंजर देखकर लंबे समय से इंसाफ की मांग कर रही थीं।
साफ है कि नेतन्याहू का गुस्सा और उनकी बेचैनी इस बात का सबूत है कि फिलिस्तीन के हक़ में दुनिया अब पहले से कहीं ज्यादा मज़बूती से खड़ी हो रही है। आने वाले दिनों में यह लामबंदी इज़रायल के लिए कूटनीतिक तूफ़ान साबित हो सकती है।