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पता नहीं क्या होगा, बहुत घबराहट हो रही है…

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वाशिंगटन 22 सितंबर 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने H-1B वीज़ा प्रोग्राम में बड़ा बदलाव करते हुए नए आवेदन पर भारी शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। अब नए H-1B वीज़ा के लिए आवेदन करने वालों को करीब 1 लाख डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) तक की भारी-भरकम फीस देनी पड़ सकती है। यह निर्णय अचानक आया और इसके असर ने सबसे पहले उन भारतीय पेशेवरों को झटका दिया है, जो अमेरिका में नौकरी करने या पढ़ाई पूरी कर आगे बढ़ने की योजना बना रहे थे।

भारतीय पेशेवरों की चिंता

अमेरिका में H-1B वीज़ा धारकों का सबसे बड़ा हिस्सा भारतीयों का है। लाखों आईटी इंजीनियर, टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट और मेडिकल प्रोफेशनल्स इसी वीज़ा पर अमेरिका में काम कर रहे हैं। नई नीति ने उनमें गहरी बेचैनी पैदा कर दी है। कई भारतीयों ने खुलकर कहा—“पता नहीं क्या होगा, बहुत घबराहट हो रही है। हमारा भविष्य अब अधर में लटक गया है।” खासकर वे युवा, जिनकी नौकरी या पढ़ाई पूरी होने के बाद H-1B पर निर्भरता थी, अब असमंजस में हैं।

आईटी कंपनियों पर असर

भारतीय आईटी कंपनियों ने भी इस फैसले को गंभीर खतरा बताया है। इंडस्ट्री बॉडी NASSCOM का कहना है कि इतनी ऊंची फीस कंपनियों के लिए अमेरिका में प्रोजेक्ट स्टाफिंग मुश्किल बना देगी। इसका असर भारत के आउटसोर्सिंग मॉडल पर भी पड़ेगा, क्योंकि अमेरिकी क्लाइंट्स को ऑनशोर यानी अमेरिका में भारतीय इंजीनियर भेजना अब बेहद महंगा साबित होगा। इससे कंपनियों को मजबूरन ऑफशोर यानी भारत से ही काम कराने पर ज़्यादा ध्यान देना पड़ेगा।

नीति की अस्पष्टता और डर

व्हाइट हाउस ने दावा किया है कि नई फीस केवल नए H-1B वीज़ा आवेदनकर्ताओं पर लागू होगी, न कि पुराने वीज़ा धारकों या रिन्यूअल (नवीनीकरण) पर। बावजूद इसके, स्थिति को लेकर साफ़ जानकारी नहीं होने से डर और असमंजस दोनों बढ़ गए हैं। कई भारतीय पेशेवरों ने बाहर यात्रा करना रोक दिया है, वहीं परिवार वाले भी भविष्य को लेकर तनाव में हैं।

भारत के लिए अवसर और चुनौती

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस फैसले से अमेरिका में विदेशी प्रतिभाओं की आमद कम हो जाएगी। इसका असर अमेरिकी नवाचार और टेक इंडस्ट्री पर भी पड़ेगा। दूसरी तरफ, भारत के लिए यह अवसर भी बन सकता है क्योंकि जो पेशेवर अमेरिका जाने की सोच रहे थे, वे अब भारत में ही नए अवसर तलाश सकते हैं। नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत तक ने कहा है कि यह कदम लंबे समय में भारत को फ़ायदा भी पहुँचा सकता है, क्योंकि टैलेंट का पलायन रुक सकता है।

 

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