नई दिल्ली/वॉशिंगटन 20 सितंबर 2025
राहुल गांधी ने वर्षों से लगातार देश की जनता और सरकार को चेताया है—चाहे वह कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य और व्यवस्था की तैयारी का मुद्दा हो, आर्थिक संकट और मंदी के संकेत हों, न्याय योजना शुरू करने की जरूरत, कोविड में फंसे लोगों के लिए विशेष ट्रेनें चलाने की अपील, कृषि कानूनों के किसानों के खिलाफ बनाए जाने का विरोध या संसद में इसका मुद्दा उठाना हो, या GST को गब्बर सिंह टैक्स कहकर आम जनता पर बढ़ते भार के बारे में आगाह करना। लेकिन हर बार बीजेपी सरकार और उसके समर्थक राहुल गांधी का मजाक उड़ाने में लगे रहे, उन्हें “पप्पू” साबित करने की कोशिश की, और उनके सुझावों को नकारा गया। समय ने साफ़ कर दिया कि राहुल गांधी के अधिकांश सुझाव और चेतावनियाँ देर-सवेर सही साबित हुईं—सरकार को मजबूरन यू-टर्न लेना पड़ा। इसके बावजूद, अपनी झेंप मिटाने के लिए सरकार ने GST लगाने को भी मास्टरस्ट्रोक बताया और जब उसे घटाना पड़ा, उसे भी मास्टरस्ट्रोक घोषित किया। यह सिलसिला स्पष्ट करता है कि हर बड़े मुद्दे पर सरकार की नीतियाँ गलत साबित हुई हैं, जबकि राहुल गांधी के सुझाव और चेतावनियाँ हमेशा देश और जनता के हित में थीं।
इसी प्रकार कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2017 में चेतावनी दी थी कि भारत को अमेरिका के साथ H-1B वीज़ा नीति पर तुरंत बातचीत करनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया था कि अगर अमेरिका की बढ़ती नीतियों को नजरअंदाज किया गया, तो भारतीय टेक वर्कर्स और देश के हितों को गंभीर नुकसान होगा। उस समय, बीजेपी और संघ के लोग राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाते रहे थे, लेकिन अब वही हुआ जो उन्होंने वर्षों पहले कहा था।
ट्रंप प्रशासन का ऐतिहासिक फैसला और भारत पर असर
19 सितंबर, 2025 को, ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा आवेदनों पर $100,000 (लगभग ₹84 लाख) वार्षिक शुल्क लगाने की घोषणा की, जो 21 सितंबर से लागू होगी। वर्तमान शुल्क 1,000 से 5,000 डॉलर के बीच था, इसलिए यह वृद्धि नाटकीय और विनाशकारी है। इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों की “रक्षा” और कथित दुरुपयोग रोकना बताया गया है।
भारत इस कार्यक्रम का 71% लाभार्थी है, और यह फैसला सीधे हजारों भारतीय आईटी और तकनीकी कर्मचारियों को प्रभावित करेगा। अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियां 2025 की पहली छमाही में हजारों भारतीय प्रतिभाओं पर निर्भर थीं।
भारतीय परिवारों और टेक वर्कर्स पर गंभीर प्रभाव
इस नई फीस से न केवल नए आवेदक बल्कि नवीनीकरण और पूरक वीज़ा की लागत भी बढ़ जाएगी। मध्यम और प्रारंभिक स्तर के कर्मचारियों के लिए $100,000 का भुगतान करना मुश्किल होगा। इससे परिवारों का पुनर्मिलन विलंबित होगा या उन्हें भारत लौटना पड़ सकता है। नए स्नातक और OPT स्टूडेंट्स पर इसका सबसे अधिक असर होगा। अक्टूबर 2025 से लागू होने वाली कठिन अमेरिकी नागरिकता परीक्षा और नई फीस के कारण FY 2025 में 4.42 लाख पंजीकरणों में अनिश्चितता बढ़ जाएगी।
भारतीय कंपनियों और अर्थव्यवस्था पर नुकसान
टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियों को अमेरिकी ऑनसाइट काम के लिए भारी लागत का सामना करना पड़ेगा। अनुमान है कि 13,000+ नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। इससे अमेरिकी अनुबंधों में कमी और भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान (~8% आईटी राजस्व) पर नकारात्मक असर पड़ेगा। भारतीय H-1B कर्मचारी प्रतिवर्ष $10-15 बिलियन भारत भेजते हैं, जो अब सीधे प्रभावित होगा।
अमेरिका की नीति और मोदी सरकार की भूमिका
मोदी सरकार की डोलान्ड ट्रंप से दोस्ती और संघियों के ट्रम्प के लिए किए गए हवन पूजन की भारत को भयावह कीमत चुकानी पड़ रही है। यह फैसला अमेरिका की “सॉफ्ट निर्यात” (आईटी सेवाओं) को सीधे निशाना बनाता है और भारतीय इंजीनियरिंग टैलेंट को कनाडा, सिंगापुर या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की ओर मोड़ सकता है।
नुकसान का आर्थिक आंकड़ा
भारत के लिए आर्थिक नुकसान केवल नौकरियों तक सीमित नहीं है। H-1B कर्मचारियों द्वारा भेजी जाने वाली रकम, अमेरिकी टैरिफ और नई फीस को जोड़ें तो अनुमानित नुकसान रुपयों में हजारों करोड़ तक पहुँच सकता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था और तकनीकी क्षेत्र पर गहरा असर पड़ेगा।
राहुल गांधी की चेतावनी सच हुई
कांग्रेस के अनुसार यह स्थिति स्पष्ट रूप से साबित करती है कि विदेश नीति और अमेरिकी नीतियों पर समय रहते ध्यान न देना भारत के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। राहुल गांधी ने वर्षों पहले कहा था कि भारत के राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं, और उनका नजरिया आज और भी प्रासंगिक दिख रहा है।