नई दिल्ली
भारत में बाघों की घटती संख्या और लगातार सामने आ रहे शिकार के मामलों ने न्यायपालिका को सख़्त रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है कि आखिर बाघों के शिकार और उनसे जुड़े अंतरराष्ट्रीय गिरोहों की जांच CBI (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) को क्यों न सौंपी जाए।
बाघों के शिकार की गंभीर चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला तब उठा जब हाल के वर्षों में विभिन्न राज्यों से बाघों के शिकार और उनकी खाल, हड्डियों व अंगों की तस्करी की ख़बरें लगातार सामने आईं। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल वन्यजीव संरक्षण का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय अपराध से जुड़े नेटवर्क का बड़ा हिस्सा बन चुका है।
अदालत का कड़ा रुख
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यदि यह अपराध संगठित तरीके से हो रहा है तो राज्य स्तरीय जांच एजेंसियां इसे रोकने में सक्षम नहीं हो पाएंगी। ऐसे में इसे CBI को सौंपा जाना ज़रूरी है, ताकि पूरे देश और सीमा पार फैले इस नेटवर्क पर शिकंजा कसा जा सके।ओ
केंद्र को दिया नोटिस
अदालत ने केंद्र सरकार से सीधा सवाल किया है कि अब तक इस मामले में क्या कदम उठाए गए हैं और क्यों न राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत जांच एजेंसी को इसकी ज़िम्मेदारी दी जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार जल्द ठोस कार्रवाई नहीं करती तो अदालत खुद आदेश पारित कर सकती है।
बाघ संरक्षण पर संकट की घड़ी
भारत दुनिया में सबसे अधिक बाघों की आबादी वाला देश है, लेकिन लगातार शिकार और आवास विनाश ने इनकी संख्या पर संकट खड़ा कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सख़्त क़ानून और ठोस जांच नहीं की गई तो आने वाले वर्षों में यह स्थिति और भयावह हो सकती है।