रियाद 18 सितम्बर 2025
खाड़ी की रेत पर भारतीय मेहनत की इबारत
1970 का दशक खाड़ी देशों की तकदीर का मोड़ था। जब रेगिस्तान की रेत से तेल का सोना फूटा तो विकास के नए दरवाजे खुले। गगनचुंबी इमारतें, चौड़ी सड़कें और आधुनिक उद्योग खड़े होने लगे। लेकिन इन सपनों को साकार करने के लिए ज़रूरी था कुशल और अकुशल श्रम—और भारत ने यह भूमिका सबसे पहले निभाई। लाखों भारतीय सऊदी अरब पहुँचे। डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, राजमिस्त्री, ड्राइवर, इलेक्ट्रिशियन और सफाईकर्मी—हर कोई अपने हिस्से की मेहनत से सऊदी की तस्वीर बदल रहा था। इसी मेहनत से भारत के गांव और कस्बों में भी नए सपनों ने जन्म लिया।
कठिनाइयों से तराशी तकदीर
शुरुआती प्रवासी जीवन आसान नहीं था। कड़े कानून, धार्मिक बंदिशें, कफ़ाला प्रणाली की जंजीरें और भाषा की दीवारें भारतीयों के सामने खड़ी थीं। कामगार छोटे-छोटे कमरों में रहते, परिवार से वर्षों तक दूर रहते और मजदूरी काटी भी जाती। लेकिन इन कठिनाइयों के बावजूद उनके भेजे गए रेमिटेंस ने भारत के कई राज्यों की तस्वीर बदल दी। केरल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में घर बने, बच्चों की पढ़ाई हुई और समाज में नई आर्थिक शक्ति का संचार हुआ।
नए सऊदी में भारतीयों की पहचान
आज सऊदी अरब बदल चुका है। “विज़न 2030” के तहत तेल पर निर्भरता घटाकर आधुनिक और तकनीक-आधारित अर्थव्यवस्था बनाने की ओर बढ़ा है। इस नए सऊदी में भारतीय सिर्फ मज़दूर नहीं रहे, बल्कि आईटी इंजीनियर, डॉक्टर, बैंकिंग विशेषज्ञ, मैनेजमेंट प्रोफेशनल और उद्यमी के रूप में भी पहचान बना चुके हैं। भारतीय रेस्टोरेंट्स, बॉलीवुड संगीत और योग ने सऊदी के सामाजिक ताने-बाने में स्थायी जगह बना ली है। यह बदलाव दिखाता है कि भारतीय प्रवासी केवल श्रम का प्रतीक नहीं, बल्कि नवाचार और नेतृत्व का चेहरा भी बन चुके हैं।
आँकड़ों में भारतीय योगदान
सऊदी अरब में लगभग 2.65 मिलियन (26.5 लाख) भारतीय रहते और काम करते हैं। यह वहां की सबसे बड़ी प्रवासी आबादी है। 2023-24 में ही करीब 2 लाख नए भारतीय कामगार वहाँ पहुँचे। स्वास्थ्य सेवाओं में भारतीय डॉक्टर और नर्स, इंफ्रास्ट्रक्चर में मजदूर और इंजीनियर, आईटी व वित्त क्षेत्र में विशेषज्ञ और छोटे दुकानदार तक—हर कोई सऊदी की विकास गाथा को आगे बढ़ा रहा है। यही कारण है कि भारत-सऊदी रिश्ते अब केवल तेल तक सीमित नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में गहराई से जुड़े हुए हैं।
विज़न 2030 और भारतीयों की भूमिका
सऊदी के नीयॉम सिटी जैसे मेगा प्रोजेक्ट, पर्यटन उद्योग, तकनीकी स्टार्टअप्स और स्वास्थ्य सुविधाओं में भारतीयों की अहम भागीदारी है। भारतीय उद्यमी छोटे-बड़े कारोबार चला रहे हैं, जबकि लाखों भारतीय आईटी और मेडिकल क्षेत्र में रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। हाल ही में लागू किए गए प्री-वेरिफिकेशन सिस्टम ने भारतीय कामगारों के कौशल को मान्यता दी है, जिससे अवसर और सुरक्षा दोनों में सुधार हुआ है।
‘लिविंग ब्रिज’ की असलियत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय प्रवासियों को “लिविंग ब्रिज” कहा है। यह सिर्फ़ भावनात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि सच्चाई है। भारतीय प्रवासी दोनों देशों को न सिर्फ़ श्रम और व्यापार से जोड़ते हैं, बल्कि शिक्षा, संस्कृति और कूटनीति का भी मजबूत पुल बन चुके हैं। भारत-सऊदी साझेदारी अब ऊर्जा से आगे बढ़कर पर्यटन, टेक्नोलॉजी और रणनीतिक सहयोग तक फैली है।
चुनौतियां अब भी बाकी
हालांकि तस्वीर चमकदार है, पर चुनौतियां खत्म नहीं हुईं। कई प्रवासी मजदूरी की देरी, अधिकारों की कमी और परिवार से दूरी जैसी समस्याओं से जूझते हैं। कफ़ाला प्रणाली में सुधार हुए हैं, लेकिन इसके असर अब भी कई जगह दिखाई देते हैं। ज़रूरी है कि मजदूर वर्ग को भी वही सम्मान और सुरक्षा मिले, जो बड़े पेशेवर भारतीयों को मिलती है।
पसीने से साझेदारी तक
“तेल से तराशी तकदीर” की यह यात्रा अब साझेदारी और नवाचार की कहानी बन गई है। भारतीय प्रवासी केवल सऊदी की विकास यात्रा के हिस्सेदार नहीं हैं, बल्कि भारत-सऊदी रिश्तों की धड़कन हैं। तब उनकी पहचान संघर्ष और पसीना थी, आज उनकी पहचान योग्यता, नेतृत्व और सांस्कृतिक प्रभाव है। यही कारण है कि भारत-सऊदी रिश्ते पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत और बहुआयामी नजर आते हैं। भारतीयों ने साबित कर दिया है कि मेहनत और संकल्प से न केवल अपनी, बल्कि पूरी कौम की तकदीर तराशी जा सकती है।