नई दिल्ली 17 सितम्बर 2025
देश की न्यायपालिका इस समय अभूतपूर्व विवाद के घेरे में है। मामला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी आर गवई की उस टिप्पणी का है, जिसमें उन्होंने खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर बयान दिया। इस कथन ने न सिर्फ धार्मिक भावनाओं को झकझोरा है, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता और मर्यादा पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
CJI गवई की टिप्पणी को लेकर देशभर के कई वकील संगठनों ने कड़ा विरोध जताया है। वकीलों का कहना है कि “न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठे व्यक्ति को ऐसे बयान से बचना चाहिए, जो करोड़ों आस्थावानों की भावनाओं को चोट पहुंचाए।” इसी क्रम में वकीलों ने एक खुला पत्र जारी किया है, जिसमें इस टिप्पणी को “असंगत, गैर-जरूरी और न्यायपालिका की गरिमा को धूमिल करने वाला” बताया गया है।
खुले पत्र में साफ कहा गया है कि जब न्यायपालिका का कर्तव्य कानून और संविधान की रक्षा करना है, तब किसी भी धर्म या देवी-देवता पर टिप्पणी करना न्यायपालिका की मर्यादा से बाहर है। वकीलों ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसे बयान बंद नहीं हुए तो इससे जनता का भरोसा न्यायपालिका से उठ सकता है।
इस पूरे विवाद ने राजनीतिक हलकों को भी गरमा दिया है। एक तरफ विपक्षी दल इसे “धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़” करार दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ कुछ लोग इसे स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार के दायरे में ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या मुख्य न्यायाधीश जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को भी इस स्वतंत्रता का प्रयोग उसी तरह करना चाहिए, जैसे आम नागरिक करता है?
देशभर में कई जगहों पर प्रदर्शन की खबरें भी सामने आ रही हैं। हिंदू संगठनों ने इसे सीधा-सीधा “आस्था का अपमान” बताया और मांग की है कि CJI गवई तुरंत माफी मांगें। वहीं, कुछ वरिष्ठ विधि विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रकरण सिर्फ धार्मिक भावनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि “न्यायपालिका की निष्पक्षता और साख” पर भी चोट है।
विवाद साफ करता है कि न्यायपालिका के शीर्ष पद पर बैठे लोगों के हर शब्द का वजन सामान्य बयानों से कई गुना ज्यादा होता है। सवाल यह है कि क्या CJI बी आर गवई अपनी टिप्पणी वापस लेकर माहौल को शांत करेंगे या फिर यह विवाद और भड़क कर एक बड़े आंदोलन का रूप लेगा?