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असलियत “मां के नाम एक पेड़” की : 900 चूहे खा कर बिल्ली हज को चली

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नई दिल्ली 17 सितम्बर 2025

 पर्यावरण संरक्षण या दिखावा?

भारत में जंगल बचाने की बात तो बहुत होती है, पर जंगल काटे जाते हैं, और पर्यावरण बचाने की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले फिर नारा लगाते हैं – “मां के नाम एक पेड़ लगाइए।” 2023-24 में अकेले वनाग्नि और अवैध कटाई के कारण लगभग 34,562 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र जल कर और कटाई से खत्म हो चुका है, जो भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 1% से ज़्यादा है। इस दौरान अवैध कटाई और अतिक्रमण में 146% की बढ़ोतरी हुई है। पर जब जंगल कट रहे थे, तो प्रधानमंत्री और बीजेपी- संघ के दिग्गज क्यों सोते रहे?

करोड़ों पेड़ क्यों कटे?

भारत में 2013 से 2023 के बीच 1.49 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र का नुकसान हुआ है। इसके प्रमुख कारणों में बुनियादी ढाँचे के विकास, कृषि और खनन शामिल हैं। वहीं, 2025 में अडानी और अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों को वनों की कटाई के ठेके दी गईं। उदाहरण स्वरूप, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अडानी सीमेंटेशन को रायगढ़ में 158 मैंग्रोव पेड़ काटने की अनुमति दी। रायगढ़ में रिपोर्ट्स के अनुसार अडानी समूह ने हजारों से अधिक पेड़ काटे, जबकि आदिवासियों के विरोध को दबाया गया।

मां का सम्मान या पर्यावरणीय धोखा?

सरकार ने सितंबर 2024 तक “एक पेड़ मां के नाम” अभियान के तहत 80 करोड़ पौधे लगाने का दावा किया, जो अपनी सीमा से 5 दिन पहले पूरा हो गया। रक्षा मंत्रालय, कोयला मंत्रालय सहित कई विभागों ने मिलकर यह प्रयास किया। लेकिन जब करोड़ों पेड़ कट रहे हों और जंगल बर्बाद हो रहे हों, तो एक पेड़ लगाना या 80 करोड़ पेड़ लगाना क्या पर्यावरणीय संकट से निपटने का उपाय है या सिर्फ पब्लिसिटी का माध्यम? दो दिन पहले अडानी को बिहार के भागलपुर में 1050 एकड़ जमीन 38 साल की लीज पर दी जिसमें अडानी प्रतिवर्ष सरकार को 1 रूपया देगा यानी 38 साल के कुल 38 रुपए। उस 1050 एकड़ जमीन में 10 लाख से ज़्यादा फलदार पेड़ लगे हुए हैं । जिन्हें काटकर पर्यावरण को बर्बाद किया जायेगा बिहार के ही संसाधनों को लूट कर बिजली बनाने के नाम पर। 

जलवायु संकट की बढ़ती मार

2025 में भारत में प्राकृतिक आपदाएं और बढ़ गई हैं। 30 जुलाई 2025 तक हाइड्रो-मौसम संबंधी आपदाओं में 1600 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। आंध्र प्रदेश में 343, मध्य प्रदेश में 243 और हिमाचल प्रदेश में 195 मौतें हुई हैं। इसी साल की पहली छमाही में प्राकृतिक आपदाओं से 135 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान भी हुआ है। इतनी तबाही के बीच “मां के नाम एक पेड़” का नारा कितना सार्थक लगता है?

जलवायु प्रदर्शन और असली चुनौतियां

भारत जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2025 में 10वें स्थान पर है, जो वैश्विक स्तर पर ठीक-ठाक परफॉर्मेंस माना जाता है, लेकिन अभी भी नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में कई चुनौतियां हैं और जलवायु नीति लागू करने में विलंब दिख रहा है।

पेड़ काटे जाने से होने वाली हानियाँ पर्यावरण, जीव-जंतुओं और मानव जीवन पर गहरा और स्थायी असर डालती हैं। सबसे पहले, जंगल कटने से जैव विविधता को बड़ा नुकसान होता है क्योंकि पेड़-पौधे और वनों में रहने वाले जीव-जंतु अपना प्राकृतिक आवास खो देते हैं। इसके कारण कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर आ जाती हैं। 

दूसरी महत्वपूर्ण हानि ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि है क्योंकि पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं; पेड़ों के कटने से यह गैस वायुमंडल में वापस छोड़ दी जाती है, जिससे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग तेज़ होती है।

 तीसरी बाड़ी समस्या मिट्टी का कटाव है, क्योंकि पेड़ मिट्टी को पकड़कर रखते हैं; पेड़ों के बिना बारिश या बाढ़ में मिट्टी बह जाती है, जिससे खेती योग्य जमीन समाप्त हो जाती है और भूस्खलन जैसी आपदाएं बढ़ जाती हैं। 

इसके अलावा, पेड़ों की कमी से जल चक्र प्रभावित होता है जिससे वर्षा में कमी होती है, और जल की गुणवत्ता खराब होती है। जंगलों के कटने से जंगली आग का खतरा भी बढ़ जाता है, जो और अधिक नुकसान करता है। कुल मिलाकर पेड़ काटने की क्रियाएं पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को भंग कर, प्राकृतिक आपदाएं और जलवायु संकट गहरा कर मानव जीवन पर भारी संकट ला रही हैं।

मां की पूजा नहीं, मां की रक्षा करो

अगर सच में मां की पूजा करनी है, तो करोड़ों पेड़ों के काटे जाने को रोको। ठेका बांटकर बड़े उद्योगपतियों को जंगल काटने दो और फिर कैमरे के सामने एक पेड़ लगाकर महान बनो, यह समझदारी नहीं, हिपोक्रेसी है। जलवायु तबाही रुकने में नहीं आ रही, क्योंकि वास्तविक काम कम और दिखावा अधिक हो रहा है। अगर मां की कीमत एक पेड़ तक सीमित है, तो उस मां की भक्ति और सम्मान की कोई माया नहीं। मां का सम्मान है तो लाखों जंगलों को बचाओ, न कि सिर्फ एक-दो पौधे लगाकर अपना चेहरा धोते रहो।

 

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