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क्वांटम साइकोलॉजी: दिमाग़ का “मल्टीवर्स” और हमारी ज़िंदगी

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नई दिल्ली 14 सितम्बर 2025

लेखक: डॉ. नीरज पंवार | असिस्टेंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ़ साइकॉलॉजिकल साइंसेज़, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली एनसीआर कैम्पस

क्वांटम साइकोलॉजी क्या है? दिमाग़ को समझने का नया चश्मा  

क्वांटम साइकोलॉजी एक ऐसा कॉन्सेप्ट है, जो छात्रों और युवाओं को अपने दिमाग़ और भावनाओं को देखने का एक नया दृष्टिकोण देता है। क्वांटम फिजिक्स सिखाती है कि छोटे-छोटे कण एक समय में कई अवस्थाओं में रह सकते हैं—कभी वे तरंग की तरह बर्ताव करते हैं, कभी कण की तरह, और वैज्ञानिक भी हमेशा उनकी स्थिति को पक्के तौर पर नहीं बता सकते। वैसा ही हमारा दिमाग और भावनाएँ भी हैं। कभी हम बेहद खुश महसूस करते हैं, तो अगले ही पल बिना किसी वजह के उदासी या चिंता घेर लेती है। कभी गुस्सा, डर और उत्साह सब साथ-साथ हावी हो जाते हैं। क्वांटम साइकोलॉजी कहती है कि भावनाएँ और विचार एक “straight line” में कभी नहीं चलते, बल्कि वे संभावनाओं के जंगल की तरह होते हैं जहाँ से हमारा वर्तमान अनुभव चुना जाता है।  

तनाव और मानसिक स्वास्थ्य: उतार-चढ़ाव को “नॉर्मल” मानना सीखें  

आज का छात्र जीवन इतना दबाव भरा हो चुका है कि तनाव, चिंता और अवसाद जैसी बातें लगभग हर किसी की डेली लाइफ का हिस्सा बन गई हैं। एग्ज़ाम का प्रेशर, करियर की दौड़, परिवार की उम्मीदें और सोशल मीडिया पर लगातार तुलना—ये सब मिलकर एक अदृश्य बोझ बना देते हैं। ऐसे माहौल में अक्सर छात्रों को लगता है कि वे “हमेशा खुश” क्यों नहीं रह पाते। क्वांटम साइकोलॉजी की सबसे बड़ी सीख यही है कि “हमेशा खुश रहना” एक झूठा आदर्श है। मूड का बदलना ठीक वैसा ही है जैसे समुद्र की लहरें आती-जाती रहती हैं। आप लहरों को रोक नहीं सकते, लेकिन उनके साथ तैरना सीख सकते हैं। यानी हमें अपने दुख और उतार-चढ़ाव को स्वीकार करना सीखना होगा, तभी हम धीरे-धीरे उनसे निपटने की कला सीख पाएंगे।  

क्लासरूम और पढ़ाई: जब दिमाग़ ‘ऑन’ और ‘ऑफ’ होता है  

छात्रों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है ध्यान केंद्रित करना। कभी अध्याय बेहद रोचक लगते हैं तो कभी वही किताब बोझ जैसी प्रतीत होती है। यहां भी क्वांटम साइकोलॉजी हमें बताती है कि ध्यान और रुचि हमेशा स्थिर नहीं रहते। ये बार-बार बदलते रहते हैं, ठीक उसी तरह जैसे इलेक्ट्रॉन अचानक एक अवस्था से दूसरी अवस्था में “शिफ्ट” हो जाता है। तो सवाल उठता है कि पढ़ाई को मज़ेदार कैसे बनाया जाए? जवाब है—माहौल। यदि कक्षा इंटरैक्टिव है, शिक्षक छात्रों की भावनाओं को समझकर पढ़ाते हैं और छात्र खुद को सुरक्षित, समझा हुआ महसूस करते हैं, तो पढ़ाई बोझ नहीं लगती। कभी-कभी ब्रेक लेकर गेम्स, म्यूज़िक या टहलने से भी दिमाग़ की स्थिति “रीसेट” हो जाती है, जिससे पढ़ाई और आसान हो जाती है।  

रिश्तों और दोस्ती की गुत्थी: भावनाओं की वेव लेंथ  

दोस्तों या परिवार के बीच छोटे-छोटे विवाद अकसर बड़ी गलतफहमियों का रूप ले लेते हैं। एक पल हम किसी बात से आहत हो जाते हैं और अगले ही पल वही रिश्ता हमें बेहद अहम लगता है। क्वांटम साइकोलॉजी सिखाती है कि यह उतार-चढ़ाव सामान्य है। इंसान की भावनाएँ स्थिर नहीं बल्कि लहरों जैसी हैं, जो पल भर में बदल जाती हैं। जब हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि हर इंसान का मूड और सोच हर वक्त बदल सकती है, तो हम दूसरों को अधिक सहानुभूति से देखने लगते हैं। डॉ. अल्बर्ट एलिस कहते हैं, “आप स्वयं अपनी खुशी या दुख की रचना करते हैं… आपकी सोच तय करती है कि आप कैसा महसूस करेंगे।” यानी रिश्ते तभी मजबूत बनते हैं जब हम भावनाओं के इस वेव-पैटर्न को समझकर उनका सम्मान करें।  

करियर और भविष्य: एनर्जी लेवल को ऊँचा उठाना  

छात्र जीवन का एक बड़ा दबाव करियर और भविष्य को लेकर होता है। अक्सर लगता है कि ज़िम्मेदारियाँ बहुत अधिक हैं और हम सक्षम नहीं हो पाएंगे। लेकिन क्वांटम साइकोलॉजी बताती है कि प्रेरणा और आत्मविश्वास भी कभी भी बदल सकते हैं। यह हमारे “एनर्जी लेवल” की तरह है, जो नीचे भी जा सकता है और अचानक सही कारण मिलने पर ऊपर भी उठ सकता है। डॉ. मार्टिन सेलिगमैन की मान्यता है कि अच्छी जिंदगी वही है, जहाँ इंसान अपनी ताकतों का इस्तेमाल हर दिन कर सके। जब छात्र अपनी ताकतों को पहचानते हैं और उसी आधार पर पढ़ाई और करियर चुनते हैं तो वे अधिक संतुष्ट और ऊर्जावान महसूस करते हैं।  

व्यक्तिगत जीवन में मिनी–क्वांटम ट्रिक्स  

क्वांटम साइकोलॉजी केवल थ्योरी नहीं है, बल्कि छोटी-छोटी प्रैक्टिस के जरिए रोज़मर्रा की मददगार बन सकती है। उदाहरण के लिए—मूड खराब हो तो खुद को दोष देने के बजाय यह मानें कि यह भी स्वाभाविक है और समय बीतते ही बदलेगा। रोज़ कुछ मिनट सांस पर ध्यान केंद्रित करें ताकि दिमाग शांत हो और भावनाओं को दूर से देखा जा सके। छोटी-छोटी उपलब्धियों पर खुद को शाबाशी देना, जैसे समय पर असाइनमेंट पूरा करना, हमारी ऊर्जा को बढ़ाता है। और सबसे जरूरी, अपनी भावनाओं को दबाने के बजाय साझा करना और दूसरों की सुनना, कई रिश्तों और मानसिक तनाव को आसान बना देता है।  

वैज्ञानिक जिज्ञासा और जीवन की सीख  

छात्रों के लिए क्वांटम साइकोलॉजी का आकर्षण यह भी है कि यह विज्ञान और जीवन कौशल के बीच एक अनोखा पुल बना देती है। यह दिखाती है कि जैसे भौतिक दुनिया का सबसे छोटा कण भी कई संभावनाओं से भरा होता है, वैसे ही हर इंसान का मन और भविष्य भी अनंत दिशाओं में खुला होता है। अगर आज सब कुछ भ्रमित और कठिन लगे, तो याद रखिए कि आप भी उसी गतिशील क्वांटम ब्रह्मांड का हिस्सा हैं, जहाँ अनिश्चितता ही सबसे बड़ा अवसर है। यही विचार हमें लचीला, आशावान और लगातार सीखते रहने के लिए प्रेरित करता है।  

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