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भारतीय कंपनियों के लिए नए अवसर: 2025 में UAE का बदलता कारोबारी परिदृश्य

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दुबई 13 सितम्बर 2025

भारतीय कंपनियों के लिए यूएई (UAE) अब दुनिया के सबसे आकर्षक निवेश गंतव्यों में से एक बन चुका है। 2025 में यहाँ का कारोबारी ढांचा पहले से कहीं अधिक आसान, तेज़ और निवेशकों के अनुकूल हो गया है। खासकर भारत और यूएई के बीच हुए Comprehensive Economic Partnership Agreement (CEPA) ने व्यापार और निवेश को एक नई ऊंचाई दी है। दुबई, अबू धाबी और शारजाह जैसे शहर न केवल मध्यपूर्व बल्कि पूरे वैश्विक बाजार से जुड़ने का पुल बन रहे हैं। यह बदलाव भारतीय उद्यमियों को टेक्नोलॉजी, मैन्युफैक्चरिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य और लॉजिस्टिक्स जैसे सेक्टर्स में बड़े पैमाने पर अवसर उपलब्ध करा रहा है।

कारोबारी लाइसेंस और स्ट्रक्चर: सही चुनाव से मिलेगा फायदा

यूएई में बिज़नेस सेटअप करने के लिए तीन प्रमुख प्रकार के लाइसेंस अनिवार्य हैं –

  1. ट्रेड लाइसेंस (व्यापारिक गतिविधियों के लिए),
  1. प्रोफेशनल लाइसेंस (कंसल्टेंसी, सेवाएं और प्रोफेशनल कामों के लिए),
  1. कमर्शियल लाइसेंस (विस्तृत व्यापारिक गतिविधियों के लिए)।

भारतीय कंपनियों को अपनी गतिविधि के अनुसार लाइसेंस चुनना होता है। वहीं, स्ट्रक्चर के मामले में भी कई विकल्प हैं – मेनलैंड कंपनी, फ्री ज़ोन कंपनी, या ब्रांच ऑफिस। अच्छी बात यह है कि अब 100% विदेशी स्वामित्व की अनुमति अधिकांश फ्री ज़ोन और मेनलैंड सेक्टर में दी जा रही है। इसका मतलब यह है कि भारतीय उद्यमियों को पुराने जमाने की तरह लोकल पार्टनर की बाध्यता से गुजरना नहीं पड़ेगा।

फ्री ज़ोन का जादू: टैक्स छूट और ग्लोबल नेटवर्किंग

यूएई में 40 से अधिक फ्री ज़ोन मौजूद हैं जो विभिन्न सेक्टर्स के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इनमें सबसे प्रमुख हैं – DMCC (Dubai Multi Commodities Centre), JAFZA (Jebel Ali Free Zone), और DIFC (Dubai International Financial Centre)। आंकड़े बताते हैं कि केवल DMCC में ही लगभग 4,000 भारतीय कंपनियां पहले से पंजीकृत हैं। फ्री ज़ोन में मिलने वाले फायदे जैसे — टैक्स छूट, कस्टम क्लियरेंस की आसानी, आसान वीज़ा व्यवस्था, और तेज़ लाइसेंसिंग प्रक्रिया, भारतीय कंपनियों को लागत बचाने और ग्लोबल नेटवर्किंग में मदद करती है। यही कारण है कि आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, ई-कॉमर्स और फाइनेंस सेक्टर के भारतीय स्टार्टअप्स बड़ी संख्या में यहां अपना ठिकाना बना रहे हैं।

CEPA समझौते से भारतीय कारोबारियों को बड़ी छलांग

भारत-यूएई CEPA समझौता 2022 में लागू हुआ और 2025 तक इसके लाभ साफ दिखने लगे हैं। इस समझौते के तहत 80% से अधिक भारतीय उत्पादों पर कस्टम ड्यूटी खत्म या बेहद कम कर दी गई है। इसके अलावा, टेक्निकल बाधाओं में ढील, 10% तक प्राइस प्रिफरेंस, सर्विस सेक्टर्स तक आसान पहुंच और गवर्नमेंट प्रोक्योरमेंट में विशेष छूट जैसे फायदे मिल रहे हैं। इसका सीधा असर भारतीय निर्यातकों और MSMEs पर पड़ा है, जिन्हें अब खाड़ी देशों और यूरोप-अफ्रीका तक विस्तार का रास्ता मिल गया है। स्टार्टअप्स के लिए यह समझौता नए मार्केट और निवेशकों से जुड़ने का मजबूत प्लेटफॉर्म साबित हो रहा है।

कंपनी सेटअप की प्रक्रिया: स्टेप बाय स्टेप गाइड

भारतीय कंपनियों को यूएई में सेटअप शुरू करने के लिए निम्नलिखित चरण पूरे करने होते हैं:

  1. बिज़नेस एक्टिविटी और स्ट्रक्चर चुनें – फ्री ज़ोन या मेनलैंड।
  1. ट्रेड नेम रिज़र्वेशन – कंपनी का नाम तय कर Dubai DED या फ्री ज़ोन अथॉरिटी में पंजीकरण कराएं।
  1. डॉक्यूमेंटेशन तैयार करें – पासपोर्ट कॉपी, बिजनेस प्लान, एड्रेस प्रूफ, MOA (Memorandum of Association) और AOA (Articles of Association)।
  1. ऑफिस स्पेस का चयन – फ्री ज़ोन कंपनियों के लिए फ्लेक्सिबल ऑफिस स्पेस उपलब्ध हैं।
  1. लाइसेंस आवेदन और बैंक अकाउंट ओपनिंग – संबंधित अथॉरिटी से लाइसेंस प्राप्त करने के बाद एमिरेट्स आईडी, वीज़ा और कॉर्पोरेट बैंक अकाउंट खोला जाता है।
  1. टैक्स और कॉम्प्लायंस रजिस्ट्रेशन – कॉर्पोरेट टैक्स, VAT और ESR नियमों का पालन अनिवार्य है।

टैक्स और कंप्लायंस: 2025 के नए नियम

यूएई में अब 9% कॉर्पोरेट टैक्स लागू हो चुका है। इसके साथ ही एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (AML) और Economic Substance Regulations (ESR) के पालन पर भी सख्ती बढ़ गई है। भारतीय कंपनियों को सालाना ऑडिट, VAT रिटर्न और ESR रिपोर्टिंग समय पर करनी होती है। देरी या अनदेखी पर भारी जुर्माने का प्रावधान है। इसीलिए डॉक्युमेंटेशन, एम्प्लॉयी वीज़ा रिन्यूअल और लाइसेंस रिन्यूअल जैसे सभी कार्य निर्धारित समयसीमा के भीतर पूरे करना बेहद जरूरी है।

प्रोफेशनल सपोर्ट और कंसल्टेंसी: प्रक्रिया को बनाएं आसान

बिज़नेस सेटअप में स्थानीय नियम, डॉक्युमेंटेशन और बैंकिंग प्रक्रियाएं कभी-कभी जटिल हो सकती हैं। ऐसे में प्रोफेशनल कंसल्टेंसी फर्म भारतीय उद्यमियों के लिए बड़ी मदद साबित होती हैं। ये फर्म बिज़नेस प्लानिंग से लेकर ऑफिस स्पेस, बैंक अकाउंट, टैक्स रजिस्ट्रेशन और पोस्ट-इंकॉर्पोरेशन सपोर्ट तक संपूर्ण सेवाएं देती हैं। इससे न केवल समय और ऊर्जा की बचत होती है, बल्कि उद्यमियों को कानूनी और वित्तीय सुरक्षा भी मिलती है।

भारतीय कंपनियों के लिए सुनहरा दौर

यूएई में भारतीय कंपनियों के लिए 2025 को गोल्डन ईयर कहा जा सकता है। आसान लाइसेंसिंग, फ्री ज़ोन की स्वतंत्रता, CEPA समझौते के लाभ और टैक्स स्ट्रक्चर की पारदर्शिता ने इसे निवेश का सबसे सुरक्षित और लाभकारी गंतव्य बना दिया है। आने वाले वर्षों में भारतीय कंपनियों का यूएई में विस्तार न केवल दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि भारत के स्टार्टअप्स और MSMEs को वैश्विक पहचान भी दिलाएगा।

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