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नेपाल में युवा बगावत: भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी का विद्रोह

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काठमांडू 10 सितंबर 2025

नेपाल में जो राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल दिखाई दे रही है, वह अचानक नहीं आई। यह वर्षों से जमा हुआ गुस्सा है, जो भाई–भतीजावाद, भ्रष्टाचार, अभिजात्यवाद और बेरोज़गारी के लंबे दौर का परिणाम है। नेपाली समाज में युवा पीढ़ी ने धीरे-धीरे महसूस किया कि उनकी उम्मीदें लगातार कुचली जा रही हैं और सत्ता का निर्माण केवल कुछ परिवारों और अभिजात वर्ग के हाथों में सीमित है। यही वजह है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगे प्रतिबंधों ने जैसे विद्रोह की चिंगारी को हवा दी। युवा वर्ग अब केवल नाराज नहीं है; वह संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रहा है।

नेपाल में इस गुस्से की शुरुआत सिर्फ एक हादसे से हुई। कोशी प्रदेश में 11 वर्षीय उषा मगर सुंववार को मंत्री राम बहादुर मगर की गाड़ी ने कुचल दिया। इस दुर्घटना को प्रधानमंत्री ओली ने महज एक “साधारण हादसा” बताकर टालने की कोशिश की। लेकिन यह घटना युवाओं के लिए प्रतीक बन गई कि सत्ता में बैठे लोग जनता के दर्द को हल्के में ले रहे हैं। यही घटना नेपाल के नए आंदोलन की शुरुआत बन गई, जिसमें युवा पीढ़ी ने अपने भविष्य और अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरना और नारे लगाना शुरू कर दिया।

नेपाल की युवा पीढ़ी—Gen Z—ने अब और इंतजार नहीं किया। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 15–24 वर्ष की उम्र के लगभग 20% युवा बेरोज़गार हैं। इस बेरोज़गारी के बीच बढ़ती महंगाई और शिक्षा प्रणाली की कमियां, युवाओं को राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ खड़ा कर रही हैं। सोशल मीडिया प्रतिबंध के बावजूद, उन्होंने VPN और वैकल्पिक ऐप्स के जरिए अपनी आवाज़ को वैश्विक मंच पर पहुंचाया। हैशटैग #NepoKid ने न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी आंदोलन की गूंज पैदा की। यह दिखाता है कि युवा पीढ़ी अब डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल कर अपने आंदोलन को मजबूत बना रही है और इसे ट्रेंड के रूप में पेश कर रही है।

यह नेपाल का विद्रोह केवल स्थानीय राजनीतिक असंतुलन नहीं है; यह दक्षिण एशिया में राजनीतिक अस्थिरता का नया ट्रेंड है। इससे पहले, लगभग दो साल पहले बांग्लादेश में भी व्यापक हिंसा और तख्तापलट के हालात देखे गए थे। वहां भी भ्रष्टाचार, भाई–भतीजावाद और बेरोज़गारी ने जनता को सड़क पर ला दिया था। अब नेपाल में वही पैटर्न दोहराया गया है। युवा वर्ग ने अपने असंतोष को सड़कों पर और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शित किया। यह साफ संकेत है कि दक्षिण एशियाई देशों में युवा असंतोष अब व्यवस्थित विद्रोह में बदल रहा है, और यह केवल नेपाल या बांग्लादेश तक सीमित नहीं रह सकता।

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता ने पड़ोसी और वैश्विक देशों की नींद उड़ा दी है। भारत के लिए यह चिंता की बात है कि नेपाल की अस्थिरता सीमावर्ती राज्यों जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश को प्रभावित कर सकती है। भारत लगातार राजनयिक माध्यमों से शांति बहाल करने की कोशिश कर रहा है। वहीं चीन, जो नेपाल में बड़े निवेश और बेल्ट एंड रोड परियोजनाओं में शामिल है, इस अस्थिरता से सतर्क है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस पर नजर बनाए हुए है, क्योंकि यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो दक्षिण एशिया में युवा आंदोलन और राजनीतिक अस्थिरता का पैटर्न बन सकता है।

अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी नेपाल की स्थिति चिंताजनक है। देश की GDP का लगभग एक-तिहाई हिस्सा रेमिटेंस पर निर्भर है। नौकरियों की कमी, महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता ने युवाओं के भीतर निराशा और गुस्सा पैदा किया है। यह आंदोलन केवल सरकार बदलने के लिए नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम में पारदर्शिता, न्याय और जवाबदेही लाने की मांग है। युवा पीढ़ी अब दिखा रही है कि वे सिर्फ विरोध नहीं कर रहे, बल्कि भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ स्थायी बदलाव चाहते हैं।

नेपाल का यह विद्रोह अब सिर्फ एक राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है; यह दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की मजबूती और युवा सक्रियता का उदाहरण बन गया है। यह आंदोलन स्पष्ट करता है कि भ्रष्टाचार, भाई–भतीजावाद और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं को अनदेखा करना अब संभव नहीं। यदि यह असंतोष सही दिशा में मार्गदर्शित नहीं किया गया, तो छोटे‑छोटे तंत्रगत मुद्दे भी बड़ी सामाजिक और राजनीतिक बगावत का रूप ले सकते हैं।

 

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