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नेपाल में महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और चंद उद्योगपतियों को सब सौंपे जाने के खिलाफ जन संग्राम, सेना तैनात, 20 की मौत

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जनता का फूटा गुस्सा, सरकार घिरी

नेपाल की राजधानी काठमांडू इस समय आग में झुलसते किसी युद्धक्षेत्र जैसी दिख रही है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ जनता खुलकर बगावत पर उतर आई है। लंबे समय से महंगाई, बेरोज़गारी और लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार से त्रस्त आम लोग अब सड़कों पर हैं। जनता का आरोप है कि प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट ने सत्ता का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए नहीं, बल्कि अपने चहेते उद्योगपतियों और कारोबारी मित्रों की तिजोरियां भरने के लिए किया। आम आदमी रोज़गार और रोटी के संकट से जूझ रहा है, लेकिन सत्ता के गलियारों में सिर्फ़ धंधे और सौदेबाज़ी चल रही है। यही गुस्सा अब एक व्यापक आंदोलन में बदल चुका है।

सोशल मीडिया बैन बना जनसैलाब का विस्फोटक कारण

सरकार-विरोधी माहौल पहले से ही बन चुका था, लेकिन जब प्रधानमंत्री ओली ने अचानक फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाने का फ़ैसला किया, तो यह कदम जनता के गुस्से का विस्फोटक कारण बन गया। खासतौर पर युवा और Gen-Z वर्ग, जो सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात कहने का आदी है, सड़कों पर उतर आया। देखते ही देखते विरोध का स्वर काठमांडू की गलियों से निकलकर देश के बड़े शहरों तक फैल गया। लाखों लोग प्लेकार्ड, झंडे और तिरंगे लेकर सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी करते हुए निकल पड़े।

संसद पर धावा, गोलियों की गूंज

प्रदर्शन की आग इतनी तेज़ हो गई कि प्रदर्शनकारी सीधे संसद भवन तक जा पहुंचे। उन्होंने बैरिकेड्स तोड़े, सुरक्षा घेरा लांघा और संसद परिसर के भीतर तक घुस आए। सुरक्षाबलों ने रोकने की कोशिश की, लेकिन हालात बेकाबू हो गए। सरकार ने सेना को तैनात किया और “शूट-एट-साइट” का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद गोलियों की गूंज काठमांडू की गलियों में सुनाई दी। अब तक की रिपोर्ट्स के मुताबिक, लगभग 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 80 से अधिक घायल हैं। यह आंकड़ा लगातार बढ़ सकता है क्योंकि कई घायल अस्पतालों में गंभीर हालत में हैं।

कर्फ्यू और इंटरनेट बंद, लेकिन सड़कों पर डटी भीड़

स्थिति को काबू में करने के लिए काठमांडू समेत कई हिस्सों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। इंटरनेट सेवाएं, मोबाइल नेटवर्क और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पूरी तरह बंद कर दिए गए हैं। लेकिन सरकार की ये कोशिशें भी नाकाम साबित हो रही हैं। लाखों लोग कर्फ्यू और गोलियों के डर के बावजूद सड़कों पर डटे हैं। उनकी दो मांगें अब पूरे आंदोलन की धुरी बन चुकी हैं—पहली, सोशल मीडिया पर लगाया गया प्रतिबंध तुरंत हटाया जाए; दूसरी, प्रधानमंत्री ओली तुरंत इस्तीफ़ा दें।

ओली की आपात बैठक, लेकिन हल नहीं निकला

गंभीर हालात देखते हुए प्रधानमंत्री ओली ने रविवार देर रात एक आपात बैठक बुलाई। इस बैठक में सेना प्रमुख, पुलिस प्रमुख और वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री मौजूद थे। सूत्रों के मुताबिक, बैठक में हालात को काबू करने के लिए सेना की तैनाती बढ़ाने और कर्फ्यू को और कड़ा करने का फ़ैसला लिया गया। लेकिन विपक्षी दलों ने सरकार पर करारा हमला बोलते हुए कहा कि यह सरकार जनता की मांग सुनने के बजाय दमन की राह चुन रही है। विपक्ष ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने तुरंत सोशल मीडिया बैन हटाया और इस्तीफ़ा नहीं दिया, तो यह आंदोलन एक निर्णायक जनक्रांति में बदल सकता है।

नेपाल में नई राजनीतिक क्रांति की आहट?

नेपाल की जनता अब पूरी तरह से सड़कों पर उतर चुकी है। संसद से लेकर सड़कों तक हर जगह “प्रधानमंत्री इस्तीफ़ा दो” के नारे गूंज रहे हैं। सरकार की हर दमनकारी नीति उलटी पड़ती दिख रही है। जनता की यह जंग अब सिर्फ़ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह सरकार की वैधता पर सवाल उठाने लगी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल में हालात 1990 और 2006 की जनआंदोलनों जैसे दिख रहे हैं, जब जनता की ताक़त ने सत्ता का चेहरा बदल दिया था। सवाल यही है कि क्या यह आंदोलन नेपाल में एक नई राजनीतिक क्रांति की शुरुआत करेगा?

 

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