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कश्मीर में धार्मिक विवाद की चिंगारी

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जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर स्थित दरगाह हजरतबल में उस समय तनाव फैल गया जब गुस्साई भीड़ ने अशोक स्तंभ को तोड़ दिया। यह वही स्तंभ था जिसका उद्घाटन महज दो दिन पहले बड़े धूमधाम से हुआ था। बताया जा रहा है कि स्तंभ पर लगे कुछ पत्थरों और उसके स्वरूप को लेकर स्थानीय लोगों ने आपत्ति जताई। देखते ही देखते विवाद ने उग्र रूप ले लिया और भीड़ ने स्तंभ को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया।

उद्घाटन के दो दिन बाद ही विवाद

यह घटना इसलिए और चौंकाने वाली है क्योंकि इस स्तंभ का उद्घाटन हाल ही में किया गया था। सरकार ने इसे राष्ट्रीय धरोहर और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना का प्रतीक बताते हुए स्थापित किया था। लेकिन स्थानीय समुदाय के कुछ हिस्सों ने इसके डिजाइन और संरचना को लेकर नाराज़गी जताई। उनका मानना था कि दरगाह जैसे धार्मिक स्थल के पास इस तरह के प्रतीक की स्थापना उनके धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है।

भीड़ का गुस्सा और प्रशासन की नाकामी

घटना के दौरान गुस्साई भीड़ को नियंत्रित करने में प्रशासन की भारी लापरवाही सामने आई। मौके पर मौजूद सुरक्षा बलों और पुलिस की तैनाती के बावजूद भीड़ ने स्तंभ को तोड़ने में सफलता हासिल कर ली। यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर प्रशासन को पहले से मिल रही चेतावनियों के बावजूद भीड़ को काबू करने में इतनी नाकामी क्यों हुई। इस घटना से पूरे क्षेत्र में तनाव का माहौल बन गया है।

सांप्रदायिक सौहार्द पर सवाल

अशोक स्तंभ को हमेशा राष्ट्रीय एकता, अहिंसा और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन हजरतबल दरगाह के पास इसकी स्थापना और उसके बाद तोड़फोड़ की घटना सांप्रदायिक सौहार्द पर गंभीर सवाल खड़े करती है। एक तरफ सरकार धार्मिक स्थलों को पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करती है, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय लोगों की भावनाओं को नज़रअंदाज़ करने से इस तरह की घटनाएं जन्म ले रही हैं।

राजनीतिक दलों और संगठनों की प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है। कुछ दलों ने इसे प्रशासनिक नाकामी बताया है, वहीं कुछ ने सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने बिना स्थानीय लोगों से विचार-विमर्श किए यह कदम उठाया। वहीं दूसरी ओर, कट्टरपंथी ताकतों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि उन्होंने भीड़ को भड़काने में अहम भूमिका निभाई।

आगे का रास्ता और चुनौतियाँ

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में प्रशासन इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए आगे क्या कदम उठाएगा। क्या धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों की स्थापना से पहले व्यापक चर्चा और सहमति ली जाएगी? क्या सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में और सख्ती दिखाएगी? यह घटना न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ी है, बल्कि राष्ट्रीय प्रतीकों की गरिमा पर भी सीधा हमला है।

 

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