चंडीगढ़ 5 सितम्बर 2025
गिरफ्तारी से राहत तक का सफर
साल 2014 में हरियाणा पुलिस ने सतलोक आश्रम प्रमुख Rampal को उनके आश्रम से नाटकीय हालात में गिरफ्तार किया था। उस दौरान हुई हिंसा और तनाव में कई अनुयायियों की मौत हो गई थी। 2018 में अदालत ने Rampal को हत्या और अन्य गंभीर धाराओं में दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अब, सात साल बाद, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने उनकी सजा को निलंबित करने का ऐतिहासिक आदेश दिया है।
न्यायालय का विवेक और सहानुभूति
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि Rampal 10 वर्षों से जेल में बंद हैं और उनकी अपील अभी भी अदालत में लंबित है। मृतकों के परिजन भी अब मामले में अभियोजन का समर्थन नहीं कर रहे। इन परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने यह निर्णय लिया। हालांकि यह फैसला पूरी तरह से बरी होने का संकेत नहीं है, बल्कि केवल अपील के अंतिम नतीजे तक राहत है।
चेतावनी और शर्तें
Rampal को मिली इस राहत के साथ कड़ी चेतावनियां भी दी गई हैं। अदालत ने साफ कहा कि वे किसी भी प्रकार की “भीड़ मानसिकता” या उत्तेजक गतिविधि को बढ़ावा नहीं देंगे। उन्हें बड़े जनसमूह वाले आयोजनों से दूर रहने का निर्देश भी दिया गया है। यदि इन शर्तों का उल्लंघन होता है, तो उनकी राहत तुरंत वापस ली जा सकती है।
एक दशक पुरानी कानूनी लड़ाई
Rampal का मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे समाज और व्यवस्था का सवाल बन चुका है। 2014 की घटनाएं आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं, जब पुलिस और अनुयायियों के बीच टकराव ने कई जिंदगियों को लील लिया था। 2018 से लेकर अब तक जेल में बिताए गए वर्षों ने Rampal के जीवन की दिशा बदल दी है, लेकिन न्याय की असली तस्वीर अभी भी अधूरी है।
समाज के लिए बड़ा सवाल
यह फैसला समाज और न्याय व्यवस्था दोनों के लिए सवाल छोड़ जाता है। क्या यह न्यायपालिका की संवेदनशीलता है या व्यवस्था की कमजोरी? क्या ऐसे मामलों में राहत देना जनमानस में न्याय पर आस्था को कमजोर करेगा या फिर यह अधिकारों की रक्षा का प्रतीक बनेगा? इसका जवाब समय और न्यायिक प्रक्रिया ही दे पाएगी।