—प्रोफेसर शिवाजी सरकार, अर्थशास्त्री
नई दिल्ली 30 अगस्त 2025
“एक देश, एक कर” का सपना और नया झटका
“एक देश, एक कर” का सपना जो कभी आर्थिक सुधारों का प्रतीक माना गया था, अब एक नए मोड़ पर खड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर घोषित जीएसटी-2 ने लोगों में सस्ते सामान और सरल अनुपालन की उम्मीदें जगाई हैं। इसमें 40 प्रतिशत का नया और साहसी टैक्स स्लैब शामिल किया गया है, जिसे बड़ी राहत और बड़े बदलाव के रूप में पेश किया गया है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव कहीं राहत से ज्यादा राजस्व संरक्षण का उपाय न बन जाए।
GST-2 की नई संरचना और सरलता का दावा
जीएसटी-2 के नए ढांचे में चार स्लैब प्रस्तावित हैं—0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 40 प्रतिशत। इसके साथ ही मौजूदा 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत की श्रेणियों को हटा दिया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि इस कदम से महंगाई पर नियंत्रण मिलेगा और आम उपभोक्ताओं को सस्ते दामों का लाभ मिलेगा। सरकार का दावा है कि यह सुधार दरअसल “सरलीकरण” का प्रतीक है, लेकिन हकीकत में यह एक बड़ी राजकोषीय चुनौती भी है।
किसे मिलेगी राहत, किस पर बढ़ेगा बोझ
28 प्रतिशत स्लैब को 18 प्रतिशत में मिलाने से एसी, वॉशिंग मशीन, डिशवॉशर और छोटी कारें सस्ती होंगी। ट्रैक्टर और कुछ निर्माण अनुबंधों को 5 प्रतिशत स्लैब में लाया जा सकता है, जिससे किसानों और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को राहत मिलेगी। लेकिन असमंजस बना हुआ है कि स्टेशनरी, पैकेजिंग सामग्री, फुटवियर, कपड़े और अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं (जो अब तक 12 प्रतिशत पर थीं) 18 प्रतिशत में जाएंगी या 5 प्रतिशत में। अगर ये 18 प्रतिशत पर गईं तो घरों और छोटे व्यापारियों पर बोझ बढ़ेगा। बीमा क्षेत्र को राहत मिलना मुश्किल लग रहा है, हालांकि सरकार स्वास्थ्य और जीवन बीमा पर शून्य कर चाहती है।
राजस्व घाटे की चिंता और “पाप वस्तुएं”
सरकार चाहती है कि यह नया सुधार राजस्व-न्यूट्रल रहे। लेकिन अनुमान है कि अगर 12 प्रतिशत वाले सामान 5 प्रतिशत में चले गए तो सालाना करीब 80,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। इस घाटे की भरपाई के लिए “पाप वस्तुओं” और लग्ज़री खपत—तंबाकू, कोल्ड ड्रिंक, पान मसाला, लग्ज़री कार और ऑनलाइन गेमिंग पर 40 प्रतिशत का दंडात्मक स्लैब लगाया गया है। यह कदम दिखाता है कि सरकार उपभोक्ताओं को राहत देने और राजस्व बचाने के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रही है।
राज्यों की असहमति और भरपाई का सवाल
राज्य सरकारें इस नए ढांचे को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। पश्चिम बंगाल की स्वास्थ्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने स्पष्ट कहा कि परिषद की बैठक में यह नहीं बताया गया कि राजस्व हानि की भरपाई कैसे होगी। इसी तरह, उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने भी सवाल उठाया कि केंद्र की प्रस्तुति में नुकसान का कोई आकलन नहीं दिया गया। साफ है कि राज्यों को राजस्व हानि का डर है और वे तब तक सहमत नहीं होंगे जब तक मुआवज़े की स्पष्ट गारंटी नहीं दी जाती।
उपभोक्ताओं और बाज़ार के लिए उलझन
हालांकि उपभोक्ता कई वस्तुओं के सस्ते होने से खुश होंगे, लेकिन दूसरी ओर 12 प्रतिशत वाले सामान महंगे हो सकते हैं। मक्खन, घी, पैकेज्ड फूड, जूस, जैम, जेली, छतरी, पैकेजिंग बॉक्स और स्टेशनरी जैसी चीज़ें महंगी पड़ सकती हैं। इन वस्तुओं का इस्तेमाल घरेलू के साथ व्यावसायिक कार्यों में भी होता है, इसलिए इनकी कीमत बढ़ने से मध्यम वर्ग और छोटे व्यापारी दोनों प्रभावित होंगे। जीएसटी परिषद ने पहले ही कई टैक्स-फ्री चीज़ों को टैक्स के दायरे में लाना शुरू कर दिया था, जिससे अब यह आशंका और गहरी हो गई है।
पेट्रोल-डीज़ल की पहेली और राजनीतिक जटिलता
देश के सबसे बड़े राजस्व स्रोत पेट्रोल और डीज़ल अभी भी जीएसटी से बाहर हैं। केंद्र और राज्य दोनों ही इन्हें जीएसटी में शामिल करने से बच रहे हैं, क्योंकि एक्साइज और वैट से भारी कमाई होती है। वित्त मंत्री ने संकेत दिया है कि केंद्र चाहता है इन्हें जीएसटी में लाया जाए, लेकिन यह तभी संभव है जब राज्य सहमत हों। अगर पेट्रोल पर 40 प्रतिशत जीएसटी भी लगे तो दिल्ली में कीमत 96 रुपये से घटकर लगभग 78 रुपये प्रति लीटर हो सकती है, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह मुमकिन नहीं लगता।
अनुपालन की जटिलता और व्यापारियों की चिंता
दरअसल दरों से बड़ा सवाल अनुपालन का है। व्यापारी लंबे समय से शिकायत कर रहे हैं कि जीएसटी व्यवस्था के तहत हर करदाता को शक की निगाह से देखा जाता है। जटिल प्रक्रियाएं टैक्स फाइलिंग को बोझिल बनाती हैं। जीएसटी-2 को अगर वास्तव में सफल होना है तो उसे इन संरचनात्मक खामियों को दूर करना होगा, वरना “सरलीकरण” सिर्फ नारा बनकर रह जाएगा।
बढ़ती GST वसूली और असली मक़सद
जीएसटी संग्रह 2024-25 में 22.08 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो 2020-21 की तुलना में लगभग दोगुना है। जुलाई 2025 में संग्रह 195 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड रहा। इतनी तेजी से बढ़ती वसूली ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित किया है। लेकिन करदाताओं की उम्मीद थी कि इस वृद्धि का मतलब उनके बोझ में कमी होगी। उल्टा, जीएसटी-2 एक बार फिर राजस्व सुरक्षा का औज़ार बनता दिख रहा है।
असली सवाल: राहत या राजस्व?
40 प्रतिशत का स्लैब जिसे शुरू में केवल “पाप वस्तुओं” तक सीमित बताया गया है, भविष्य में और चीज़ों पर भी लागू हो सकता है। व्यापार जगत कम टैक्स चाहता है ताकि उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बने रहें और निर्यात को बढ़ावा मिले। सवाल यह है कि जीएसटी-2 सच में आर्थिक विकास और सरलता का नया अध्याय बनेगा या यह सिर्फ बोझ का फेरबदल रह जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो मध्यम वर्ग को और ज्यादा मार झेलनी पड़ेगी। असली चुनौती यही है—क्या जीएसटी परिषद आर्थिक विकास के लिए दरों का तार्किकरण करेगी या फिर राजस्व घाटे के डर से ऊंची दरों को ही बनाए रखेगी।