नई दिल्ली 28 अगस्त 2025
लोकतंत्र की हत्या का सबसे बड़ा सबूत
पनवेल और आसपास के विधानसभा क्षेत्रों से जो खुलासा सामने आया है, उसने चुनावी व्यवस्था की रीढ़ तोड़कर रख दी है। पूर्व विधायक बलराम पाटिल ने आंकड़ों के साथ बम फोड़ा है कि 85,211 वोटर्स के नाम मतदाता सूची में या तो डुप्लीकेट हैं या ट्रिप्लीकेट! क्या यह सीधे-सीधे लोकतंत्र की हत्या नहीं है? क्या जनता की आवाज़ को दबाने और जनादेश को चुराने की यह साज़िश खुलेआम नहीं रची गई?
चुनाव आयोग और प्रशासन की घोर लापरवाही
सब-डिविजनल ऑफिसर से लेकर जिला मजिस्ट्रेट और चुनाव आयोग तक—हर दरवाज़े पर बलराम पाटिल ने दस्तक दी। पर हर तरफ से चुप्पी और टालमटोल के सिवाय कुछ नहीं मिला। सवाल उठता है—क्या पूरा चुनावी तंत्र जानबूझकर गड़बड़ी को दबाने में शामिल था? जब कोर्ट ने दो हफ्तों में जवाब मांगा तो आदेश की धज्जियां उड़ाई गईं। अगर यह अवमानना नहीं है तो और क्या है?
चुनाव की तारीखें घोषित कर केस दबाया गया
26 सितंबर 2024 को बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल होती है, और कोर्ट आदेश देता है कि SDO जवाब दे। लेकिन 15 अक्टूबर को चुनाव की घोषणा कर दी जाती है, ताकि याचिका स्वतः ठंडी पड़ जाए। क्या यह सब कुछ तयशुदा खेल नहीं था? यह सीधे-सीधे जनता को मूर्ख बनाने और संविधान को ठेंगा दिखाने जैसा है।
फर्जी वोटों से हार का खेल
बलराम पाटिल को 51,091 वोटों के अंतर से हराया गया। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि केवल पनवेल में ही 11,628 वोट दो या अधिक बार डाले गए। यानी पूरी हार फर्जी वोटिंग के काले खेल से सुनिश्चित की गई। सवाल ये है कि अगर 85,211 फर्जी नाम हट जाते तो क्या नतीजा अलग न होता? क्या जनता को उनकी असली पसंद से वंचित नहीं कर दिया गया?
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर काला धब्बा
यह घटना सिर्फ पनवेल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में मतदाता सूचियों की विश्वसनीयता पर गहरे सवाल उठाती है। चुनाव आयोग, जिसे निष्पक्ष लोकतंत्र का प्रहरी माना जाता है, उसकी साख अब पूरी तरह संदिग्ध हो गई है। अगर वोटर लिस्ट ही भ्रष्ट है तो फिर चुनाव किस चीज़ का हो रहा है? यह लोकतंत्र का ढोंग है या जनता के विश्वास से किया गया खिलवाड़?
बलराम पाटिल की लड़ाई – अब आरपार का ऐलान
बलराम पाटिल ने साफ कर दिया है कि यह लड़ाई अब उनकी व्यक्तिगत नहीं बल्कि लोकतंत्र बचाने की है। वह हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन को कानून के कटघरे में खड़ा करना ही पड़ेगा। पाटिल की आक्रामक आवाज़ अब जनता की आवाज़ बन चुकी है, और यह लड़ाई सीधे भ्रष्ट चुनावी तंत्र बनाम जनता की सच्ची ताकत की है।
लोकतंत्र खतरे में है!!
आज सवाल सिर्फ बलराम पाटिल की हार या जीत का नहीं है। सवाल यह है कि अगर 85,211 फर्जी वोटर्स एक ही निर्वाचन क्षेत्र में पाए जाते हैं तो पूरे देशभर में क्या हो रहा होगा? क्या जनता का वोट अब कोई मायने नहीं रखता? अगर चुनाव आयोग ही भ्रष्ट मशीनरी बन चुका है तो लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा?