भारत और चीन के रिश्तों पर एक बार फिर नया अध्याय लिखने की कोशिश शुरू हो गई है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर लंबे समय से खिंचा तना हुआ माहौल अब कूटनीतिक मेल-मिलाप की भाषा में ढलता दिख रहा है। चीनी दूत ने हाल ही में कहा है कि भारत और चीन आपसी बातचीत और समझदारी से सीमा विवाद का हल निकाल सकते हैं। परंतु सवाल यह है कि क्या बीजिंग का यह बयान वास्तविक प्रतिबद्धता है या सिर्फ़ दुनिया के सामने शांति का ढोंग रचने का एक और छलावा?
भारत की रणनीति – दृढ़ता और स्पष्टता
भारत ने साफ कर दिया है कि जब तक चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पुराने हालात बहाल नहीं करता, तब तक किसी भी रिश्ते में वास्तविक सुधार संभव नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि भारतीय सेना अपनी धरती पर किसी भी घुसपैठ को बर्दाश्त नहीं करेगी। गलवान की चोटियां अब सिर्फ़ एक जंग का प्रतीक नहीं रहीं, बल्कि यह भारत की नई राष्ट्रीय संकल्पशक्ति का प्रमाण बन चुकी हैं।
चीन की चालबाज़ी – शांति की बात, जमीन पर घुसपैठ
जहां एक तरफ चीन का दूत बातचीत, विश्वास और सहयोग की बातें कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ सैटेलाइट तस्वीरें और खुफिया रिपोर्ट्स यह बताती हैं कि चीन लगातार LAC के नज़दीक बुनियादी ढांचे का विस्तार कर रहा है। सड़कें, हवाई पट्टियां और सैन्य ठिकानों का निर्माण इस बात का सबूत है कि बीजिंग की नीयत आज भी संदिग्ध है। भारत की जनता सवाल पूछ रही है – क्या चीन का ‘दोस्ती का हाथ’ वास्तव में जकड़ने की कोशिश है?
कूटनीति बनाम धरातल की सच्चाई
विश्लेषक मानते हैं कि चीन की यह नई ‘बातचीत की भाषा’ दरअसल उसकी वैश्विक छवि सुधारने का प्रयास है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बीच बीजिंग दक्षिण एशिया में खुद को ‘शांतिप्रिय पड़ोसी’ के रूप में पेश करना चाहता है। मगर भारत जानता है कि सिर्फ़ शब्दों से नहीं, बल्कि ज़मीन पर भरोसेमंद कार्रवाई से ही रिश्तों में सुधार आएगा।
भारत का स्पष्ट संदेश
भारत ने चीन को दो टूक कहा है – सीमा पर शांति होगी, तभी रिश्तों में सामान्यता लौटेगी। चाहे ब्रिक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच हों या द्विपक्षीय वार्ताएं, नई दिल्ली का रुख अब नरमी का नहीं बल्कि ठोस दृढ़ता का है। भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सेना को किसी भी आकस्मिक हालात का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार रखा गया है।
शांति की डोर या धोखे का जाल?
भारत-चीन रिश्ते आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं। चीनी दूत के बयान ने कूटनीतिक हलचलें तो पैदा कर दी हैं, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या बीजिंग अपने शब्दों पर अमल करेगा? क्या चीन वास्तव में सीमा पर भरोसे का माहौल बनाएगा या फिर एक बार फिर अपने छल-प्रपंच से भारत को परखने की कोशिश करेगा?
भारत की जनता, सेना और नेतृत्व अब सतर्क हैं। दोस्ती की बातें तभी स्वीकार होंगी जब धरती पर भारत की संप्रभुता को कोई चुनौती न दी जाए। यही आज के भारत की असली नीति है – दृढ़ता के साथ शांति, मगर बिना समझौते के।