भारत की संसद ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक और बहुचर्चित विधेयक The Promotion and Regulation of Online Gaming Bill, 2025 को पारित कर दिया। यह बिल तेजी से बढ़ते डिजिटल गेमिंग सेक्टर को संतुलित रूप देने का प्रयास है। इसमें सरकार ने एक तरफ युवाओं के भविष्य और मध्यम वर्गीय परिवारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है, तो दूसरी तरफ भारत की डिजिटल इकोनॉमी, ई-स्पोर्ट्स और गेम डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहन देने का स्पष्ट संदेश भी दिया है। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में कहा कि बिल का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि जो गेम समाज और युवाओं के लिए रचनात्मक हैं, उन्हें पूरी तरह बढ़ावा मिले, लेकिन जो गेम नशे, अपराध और आर्थिक बर्बादी का कारण बनते हैं, उन पर कड़ी रोक लगाई जाए।
इस बिल में ऑनलाइन गेमिंग को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। पहली श्रेणी है ई-स्पोर्ट्स (e-Sports), जिनमें टीमवर्क, रणनीति और मानसिक-शारीरिक कौशल की अहम भूमिका होती है। यह गेम्स अब क्रिकेट और फुटबॉल जैसे खेलों की तरह मान्यता पाएंगे। सरकार इन्हें खेलों की तरह ही प्रोत्साहन देगी और इनके विकास के लिए विशेष योजनाएँ तथा कार्यक्रम भी शुरू करेगी। इसका उद्देश्य है कि भारत के ई-स्पोर्ट्स खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकें और देश के डिजिटल खेल सेक्टर को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकें।
दूसरी श्रेणी है ऑनलाइन सोशल गेम्स। इनमें मनोरंजन, शिक्षा और कम्युनिटी-आधारित खेल शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर Angry Birds जैसे कैज़ुअल गेम्स, कार्ड गेम्स या दिमागी पहेलियों वाले खेल। सरकार ने इन्हें एक सकारात्मक और सुरक्षित माध्यम के रूप में मान्यता दी है, जिसके ज़रिए लोग एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं और सीखने का अवसर भी पा सकते हैं। इस श्रेणी को मजबूत करने के लिए सरकार गेम क्रिएटर्स और डेवलपर्स को सहयोग देगी। यह कदम न केवल भारत की क्रिएटर इकोनॉमी को गति देगा बल्कि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री और स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को भी मज़बूत बनाएगा।
सबसे अहम और कड़ा फैसला तीसरी श्रेणी यानी ऑनलाइन मनी गेम्स के संबंध में लिया गया है। ऐसे गेम्स पूरी तरह प्रतिबंधित होंगे। इस श्रेणी में वे गेम्स आते हैं जो पैसों पर आधारित होते हैं और जिनमें भाग लेने वालों को आर्थिक दांव लगाना पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में इन गेम्स के कारण लाखों युवा नशे की तरह इनसे जुड़ गए, परिवारों की जमा पूंजी बर्बाद हो गई, लोग कर्ज़ में डूब गए और कई मामलों में आत्महत्याएँ तक हुईं। इसके अलावा सरकार ने यह भी माना है कि ऐसे गेम्स का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी फंडिंग और धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराधों में हो रहा है। यही वजह है कि इन्हें पूरी तरह से बैन करने का फैसला लिया गया है।
इस बिल की एक विशेषता यह भी है कि इसमें खिलाड़ियों को पीड़ित माना गया है। यानी, यदि कोई बच्चा या युवा ऐसे मनी गेम्स में शामिल पाया जाता है, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय उन कंपनियों, प्लेटफॉर्म्स, विज्ञापन एजेंसियों और पेमेंट गेटवे पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी, जो इन गेम्स को चलाते या बढ़ावा देते हैं। सरकार ने साफ किया है कि यह कदम खिलाड़ियों को बचाने और कंपनियों पर जवाबदेही तय करने के लिए है।
इस विधेयक की पृष्ठभूमि में पिछले कुछ वर्षों की दर्दनाक कहानियाँ हैं। हजारों परिवारों ने शिकायतें दर्ज कराईं कि उनके बेटे-बेटियाँ ऑनलाइन मनी गेम्स की लत में पड़कर घर की जमापूंजी बर्बाद कर चुके हैं। मध्यम वर्गीय परिवारों की गाढ़ी कमाई चंद मिनटों में खत्म हो गई। देशभर में ऐसे मामलों की संख्या इतनी बढ़ गई कि सरकार को इस दिशा में कठोर कदम उठाना पड़ा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस बिल को पास कर यह संदेश दिया है कि जब भी बात परिवारों की सुरक्षा और समाज के कल्याण की आती है, तो राजस्व या किसी कारोबारी लाभ को प्राथमिकता नहीं दी जाती। जैसे अन्य मौकों पर प्रधानमंत्री ने मध्यम वर्ग और आम जनता को आगे रखा है, वैसे ही इस बिल के ज़रिए भी साफ कर दिया गया है कि भारत में केवल वही ऑनलाइन गेमिंग टिकेगी, जो युवाओं की प्रतिभा, नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ाए।