नई दिल्ली 19 अगस्त 2025
बिहार की राजनीति इन दिनों मतदाता सूची विवाद के इर्द-गिर्द घूम रही है। चुनाव आयोग ने आखिरकार वह कदम उठा लिया जिसका इंतजार लंबे समय से किया जा रहा था। आयोग ने 65 लाख मतदाताओं के नामों की पूरी सूची सार्वजनिक कर दी है, जिन्हें मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया था। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि अब वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए आधार कार्ड समेत अन्य वैध पहचान पत्र को मान्य माना जाएगा।
यह फैसला उस पृष्ठभूमि में आया है जब इस मुद्दे पर विपक्ष ने राहुल गांधी की अगुवाई में जबरदस्त एकजुटता दिखाई। विपक्षी दलों ने मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने को “वोट चोरी” करार देते हुए संसद से लेकर सड़कों तक आंदोलन किया। जनता के बीच भी चुनाव आयोग के खिलाफ असंतोष का माहौल बन गया। विपक्ष ने कहा कि मतदाता सूची से नाम हटाकर लोकतंत्र पर हमला किया जा रहा है और लाखों लोगों को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
इसी बीच मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। अदालत ने भी इस गंभीर मामले को संज्ञान में लेते हुए साफ कहा कि “चुनाव में पारदर्शिता सर्वोपरि है” और आदेश दिया कि हटाए गए सभी नाम सार्वजनिक किए जाएं ताकि पात्र मतदाता अपनी पहचान और दावा पेश कर सकें। अदालत के इस आदेश के बाद चुनाव आयोग को झुकना पड़ा और आज यह सूची जारी करनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर तुरंत दिखा और आयोग ने दावा एवं आपत्ति दर्ज करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम बिहार की राजनीति में बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। विपक्ष ने इसे अपनी “जनता की जीत” बताया है और कहा है कि आयोग को जनता के दबाव और अदालत की सख्ती के आगे झुकना पड़ा। वहीं आयोग का कहना है कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है और कोई भी पात्र मतदाता वोट देने से वंचित नहीं रहेगा।
फिलहाल बिहार में यह मामला लोकतांत्रिक अधिकार और चुनावी निष्पक्षता के केंद्र में आ गया है। जनता की निगाहें अब इस पर हैं कि दावों और आपत्तियों के बाद कितनी तेजी और निष्पक्षता से नामों को वोटर लिस्ट में जोड़ा जाता है। इतना तय है कि इस विवाद ने बिहार चुनाव से पहले पूरे देश में लोकतंत्र और मतदाता अधिकारों को लेकर नई बहस छेड़ दी है।