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ट्रंप का बड़ा बयान – यूक्रेन की नाटो सदस्यता पर रोक

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वाशिंगटन 18 अगस्त 2025

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की संभावना को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि “नो गोइंग इंटू नाटो”। यह बयान उन्होंने राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से मुलाकात से पहले दिया, जिससे साफ संकेत मिलता है कि अगर वे दोबारा सत्ता में आते हैं तो यूक्रेन की नाटो सदस्यता का रास्ता और कठिन हो जाएगा। ट्रंप का यह रुख अमेरिका और पश्चिमी सहयोगियों के बीच नई बहस को जन्म दे रहा है, जो लंबे समय से यूक्रेन की सुरक्षा और रूस से बचाव के लिए नाटो की छत्रछाया को ज़रूरी मानते हैं।

वॉशिंगटन मुलाकात से पहले का माहौल

ट्रंप और ज़ेलेंस्की की मुलाकात वॉशिंगटन में होने वाली है, लेकिन इससे पहले ट्रंप का यह बयान सामने आना कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह कदम न केवल मौजूदा बाइडेन प्रशासन की यूक्रेन-नीति पर सवाल खड़े करता है बल्कि यह भी दिखाता है कि ट्रंप अगर सत्ता में लौटे तो उनकी प्राथमिकताएं पूरी तरह बदल सकती हैं। बाइडेन प्रशासन ने अब तक यूक्रेन को हथियारों, वित्तीय पैकेज और अंतरराष्ट्रीय समर्थन देकर मजबूत करने की कोशिश की है, जबकि ट्रंप स्पष्ट रूप से अलग रास्ता अपनाने का संकेत दे रहे हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध पर प्रभाव

ट्रंप का यह रुख सीधे तौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध की दिशा को प्रभावित कर सकता है। यदि अमेरिका यूक्रेन की नाटो सदस्यता का समर्थन नहीं करता तो रूस को इससे मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन लंबे समय से यही चाहते हैं कि यूक्रेन नाटो में शामिल न हो, और ट्रंप का यह बयान उनकी रणनीति को मजबूत करता है। दूसरी ओर, यूक्रेन के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उसके सामने सुरक्षा की गारंटी कमजोर पड़ सकती है।

अमेरिकी राजनीति में नया विभाजन

ट्रंप के इस बयान ने अमेरिकी राजनीति में भी नया विभाजन पैदा कर दिया है। रिपब्लिकन पार्टी के कई नेता ट्रंप के इस रुख का समर्थन करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि अमेरिका को यूरोप के युद्धों से दूर रहना चाहिए और अपनी ऊर्जा घरेलू मुद्दों पर लगानी चाहिए। वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी और कई विदेश नीति विशेषज्ञ इसे खतरनाक मानते हैं, उनका कहना है कि अगर अमेरिका पीछे हटता है तो यूरोप में अस्थिरता और बढ़ेगी और रूस को नई आक्रामकता के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।

ज़ेलेंस्की की कूटनीतिक चुनौती

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की अब बेहद कठिन स्थिति में फंस गए हैं। एक तरफ उन्हें बाइडेन प्रशासन का भरोसा बनाए रखना है, दूसरी ओर उन्हें भविष्य के अमेरिकी नेतृत्व के साथ भी संबंध मजबूत करने की रणनीति बनानी होगी। ट्रंप के बयान के बाद ज़ेलेंस्की की वॉशिंगटन यात्रा और भी संवेदनशील हो गई है, क्योंकि उन्हें अब अमेरिकी राजनीतिक ध्रुवीकरण के बीच अपनी बात रखनी होगी। उनके लिए यह साबित करना ज़रूरी है कि यूक्रेन की सुरक्षा केवल यूरोप ही नहीं, बल्कि पूरे वैश्विक लोकतांत्रिक ढांचे के लिए अहम है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संभावित असर

ट्रंप का “नो नाटो” बयान केवल अमेरिका और यूक्रेन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके अंतरराष्ट्रीय असर भी देखने को मिल सकते हैं। यूरोपीय संघ और नाटो के अन्य सदस्य देशों में भी इस पर बहस तेज हो गई है। कई यूरोपीय देश पहले ही युद्ध और शरणार्थी संकट से दबाव में हैं। अगर अमेरिका पीछे हटता है तो उन्हें अपनी सुरक्षा और सामरिक रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा। इससे वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी गहरा असर पड़ सकता है।

 

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