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GST पुनर्गठन योजना: ऑनलाइन गेमिंग को सबसे ऊँचे टैक्स स्लैब में लाने की तैयारी

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नई दिल्ली, 18 अगस्त 2025 

केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) ढांचे में बड़े बदलाव की रूपरेखा तैयार कर ली है। ‘GST 2.0’ के नाम से प्रस्तावित इस नई व्यवस्था का लक्ष्य टैक्स संरचना को सरल, पारदर्शी और राजस्व के लिहाज़ से अधिक प्रभावी बनाना है। मौजूदा चार कर स्लैब को घटाकर दो मुख्य दरों—5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत—में बदलने की योजना बनाई गई है। इसके अलावा सरकार एक विशेष श्रेणी ‘सिन-टैक्स’ (Sin Tax) लाने जा रही है, जिसमें शराब, सिगरेट, गुटखा जैसी वस्तुओं के साथ-साथ अब ऑनलाइन गेमिंग को भी शामिल किया जा सकता है। इस श्रेणी पर 40 प्रतिशत तक का कर लगाने का प्रस्ताव है, जो मौजूदा ढांचे की तुलना में कहीं अधिक होगा।

सरकार के इस कदम का सीधा असर तेजी से बढ़ रहे ऑनलाइन गेमिंग उद्योग पर पड़ेगा। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का ऑनलाइन गेमिंग बाजार 2.7 अरब डॉलर से अधिक का हो चुका है। हर दिन लगभग 11 करोड़ लोग विभिन्न गेमिंग ऐप्स और वेबसाइट्स से जुड़े रहते हैं। खासतौर पर फैंटेसी स्पोर्ट्स, रम्मी, पोकर और अन्य रियल-मन्य गेम्स इस वृद्धि के मुख्य आधार बने हैं। केवल डिजिटल भुगतान प्रणाली UPI के जरिए ही सालाना 1.2 ट्रिलियन रुपये से अधिक का लेन-देन इस सेक्टर में दर्ज किया गया है। इस तेजी से बढ़ती आर्थिक गतिविधि ने सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा है। नीति निर्माताओं का मानना है कि यदि इस क्षेत्र पर उच्च कर लगाया जाता है, तो एक तरफ सरकार को बड़ा राजस्व मिलेगा और दूसरी तरफ समाज पर इसके नकारात्मक प्रभावों को भी नियंत्रित किया जा सकेगा।

वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का तर्क है कि ऑनलाइन गेमिंग केवल मनोरंजन का साधन नहीं रह गया है, बल्कि यह युवाओं में एक प्रकार की लत के रूप में उभर रहा है। इसके परिणामस्वरूप आर्थिक नुकसान, मानसिक दबाव और सामाजिक दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। सरकार का मानना है कि जिस प्रकार शराब और तंबाकू पर अधिक कर लगाकर उपभोग को नियंत्रित किया जाता है, उसी प्रकार ऑनलाइन गेमिंग को भी उच्च कर वर्ग में डालना ज़रूरी है। इससे यह संदेश जाएगा कि सरकार डिजिटल लेन-देन और आर्थिक अवसरों को बढ़ावा तो देती है, लेकिन उन गतिविधियों पर नियंत्रण भी आवश्यक है जो समाज पर प्रतिकूल असर डाल सकती हैं।

हालांकि इस प्रस्ताव को लेकर उद्योग जगत और उपभोक्ताओं दोनों में चिंता बढ़ रही है। गेमिंग कंपनियों का कहना है कि 40 प्रतिशत तक का कर लगाने से उनकी कमाई बुरी तरह प्रभावित होगी। छोटे और मझोले स्टार्टअप्स इस बोझ को झेल नहीं पाएंगे और संभव है कि वे बाजार से बाहर हो जाएँ। कंपनियों का यह भी कहना है कि उच्च कर दर से उपभोक्ताओं पर सीधा असर पड़ेगा, क्योंकि अंततः इसकी लागत उन्हें ही उठानी होगी। इससे ऑनलाइन गेमिंग की लोकप्रियता घट सकती है और अवैध या अनियमित प्लेटफार्मों को बढ़ावा मिल सकता है।

दूसरी ओर, कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम दीर्घकाल में भारत की टैक्स प्रणाली को अधिक स्थिर और सरल बनाएगा। अभी तक विभिन्न दरों के कारण GST ढांचा जटिल बना हुआ है और कारोबारियों को अनुपालन में कठिनाई आती है। यदि दो दरों के साथ-साथ एक विशेष ‘सिन-टैक्स’ श्रेणी बनाई जाती है, तो कर प्रणाली में स्पष्टता आएगी। साथ ही, सरकार को राजस्व का नया और स्थायी स्रोत मिलेगा, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाया जा सकेगा।

राजनीतिक रूप से भी यह कदम महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एक तरफ भाजपा सरकार इस सुधार को 2047 तक भारत को “सिंगल टैक्स स्लैब इकॉनमी” की दिशा में कदम बताकर अपने विज़न डॉक्यूमेंट से जोड़ रही है, वहीं विपक्ष यह सवाल उठा सकता है कि सरकार युवाओं के रोजगार और स्टार्टअप इकोसिस्टम को नुकसान पहुँचा रही है। विपक्षी दल पहले से ही बेरोज़गारी और आर्थिक दबाव जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरते रहे हैं, ऐसे में ऑनलाइन गेमिंग पर भारी टैक्स उनके लिए एक नया राजनीतिक हथियार बन सकता है।

कुल मिलाकर, GST पुनर्गठन योजना के तहत ऑनलाइन गेमिंग को शीर्ष कर स्लैब में डालना एक साहसिक लेकिन विवादास्पद कदम होगा। यह उद्योग और उपभोक्ता दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है, लेकिन सरकार का दावा है कि इससे टैक्स प्रणाली सरल बनेगी और सामाजिक-आर्थिक संतुलन को बेहतर बनाए रखने में मदद मिलेगी। अब देखना यह होगा कि संसद में इस प्रस्ताव पर क्या बहस होती है और इसका अंतिम स्वरूप क्या निकलकर आता है।

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