नई दिल्ली 7 अगस्त 2025
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस फैसले ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, जिसमें उन्होंने भारत पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा की है। ट्रंप का तर्क है कि भारत रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है और इसके जरिए रूस को यूक्रेन युद्ध में अप्रत्यक्ष आर्थिक सहायता मिल रही है। भारत सरकार ने इस कदम को देश की संप्रभुता के खिलाफ बताया और साफ कर दिया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के लिए किसी भी प्रकार का विदेशी दबाव स्वीकार नहीं करेगा। ट्रंप के इस फैसले को लेकर भारत में राजनीतिक और व्यापारिक दोनों ही वर्गों में विरोध के स्वर गूंजने लगे हैं।
इस बीच चीन ने ट्रंप के टैरिफ थोपे जाने पर सख्त नाराजगी जाहिर की है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि अमेरिका टैरिफ को हथियार बनाकर वैश्विक व्यापार नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है और यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर व विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है। भारत में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने इस बयान को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर साझा करते हुए लिखा, “अगर आप किसी धमकी देने वाले को एक इंच देंगे, तो वह एक मील ले लेगा।” चीन ने इसके साथ ही ब्राज़ील की संप्रभुता और विकास के अधिकार का भी समर्थन किया, यह दर्शाता है कि चीन ट्रंप की एकतरफा व्यापार नीति के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में लगा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी, हालांकि उन्होंने ट्रंप का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा, “हमारे किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है, चाहे इसके लिए हमें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। भारत हमेशा अपने फैसले स्वयं लेता है और किसी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।” यह बयान इस बात का संकेत है कि भारत सरकार किसी प्रकार के टैरिफ दबाव को स्वीकार नहीं करेगी और अमेरिकी नीतियों के प्रति अपने स्टैंड पर कायम रहेगी।
अमेरिकी टैरिफ नीति का असर सिर्फ सरकारों तक ही सीमित नहीं रहा है। उत्तर प्रदेश के कानपुर समेत कई शहरों में व्यापारियों ने ट्रंप विरोधी प्रदर्शन किए। सड़कों पर उतरकर व्यापारियों ने अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया और ट्रंप के पोस्टर जलाकर अपना विरोध जताया। व्यापार जगत में यह आशंका फैल गई है कि इस टैरिफ से ‘मेड इन इंडिया’ iPhone 17 जैसे उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर पड़ेगा।
डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम भारत को नई ट्रेड डील के लिए मजबूर करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला अलोकप्रिय है और वैश्विक स्तर पर अस्थिरता को बढ़ावा देगा। भारत के पास भी जवाबी कार्रवाई के विकल्प मौजूद हैं। जैसे—बोइंग एयरक्राफ्ट के ऑर्डर रद्द करना, जो अमेरिका की विमानन कंपनियों को करीब ₹4.30 लाख करोड़ का झटका दे सकता है।
संक्षेप में कहा जाए तो यह टैरिफ विवाद सिर्फ भारत और अमेरिका के बीच का नहीं है, बल्कि यह वैश्विक व्यापार संतुलन, संप्रभुता और बहुपक्षीय संस्थाओं के अस्तित्व से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। भारत और चीन दोनों ने मिलकर जो संकेत दिए हैं, वह साफ है—अब टैरिफ नहीं, सम्मान और संतुलन की ज़रूरत है।