एस के सिंह, अर्थशास्त्री
नई दिल्ली । 6 अगस्त 2025
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी अगस्त 2025 की मौद्रिक नीति में रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर बनाए रखने का निर्णय लिया है। हालांकि इस वर्ष फरवरी से अब तक आरबीआई रेपो रेट में 100 बेसिस पॉइंट (1%) की कटौती कर चुका है, जिसका प्रभाव धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में सामने आ रहा है। इस स्थिरता को कई विश्लेषक ‘वेट एंड वॉच’ की नीति मान रहे हैं, तो कुछ इसे आगे आने वाली संभावित अनिश्चितताओं की तैयारी के तौर पर देख रहे हैं।
यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें, महंगाई और व्यापार तनाव अस्थिर हैं, लेकिन घरेलू मोर्चे पर भारत की वृद्धि दर और मुद्रास्फीति संतुलित दिख रही है।
आर्थिक वृद्धि के प्रति RBI का भरोसा, लेकिन सतर्कता बरकरार
RBI ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए GDP वृद्धि का अनुमान 6.5% पर बरकरार रखा है। इसके साथ ही मुद्रास्फीति का अनुमान घटाकर 3.1% किया गया है, जो सरकार की नीतिगत स्थिरता और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार का संकेत देता है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि घरेलू वृद्धि “लचीली” बनी हुई है और समग्र रूप से “विकसित हो रही है”। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी संकेत दिया कि फरवरी से अब तक की ब्याज कटौती का असर पूरी तरह से सामने नहीं आया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आरबीआई फिलहाल आगे किसी और कटौती या वृद्धि की जल्दबाज़ी में नहीं है।
रेपो स्थिर, लेकिन रियल एस्टेट के लिए राहत अधूरी
एनारॉक के चेयरमैन अनुज पुरी का कहना है कि प्रमुख महानगरों में आवास बिक्री में 20% गिरावट आ चुकी है और रेपो में कटौती की संभावनाओं से बाजार को कुछ राहत मिल सकती थी। उनके अनुसार, आरबीआई का रेपो स्थिर रखना रियल एस्टेट खासकर अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा। बीते दो वर्षों में आवासीय कीमतों में 39% की वृद्धि हुई है, जो मध्यमवर्गीय घर खरीदारों के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। इस परिस्थिति में त्योहारी सीज़न से पहले ब्याज दरों में और कटौती एक बड़ा मनोवैज्ञानिक सहारा बन सकता था, जो फिलहाल नहीं मिल सका।
घरों की मांग स्थिर लेकिन सतर्क
इंडिया सूदबी इंटरनेशनल रियल्टी के एमडी अमित गोयल का कहना है कि आरबीआई का तटस्थ रुख, 6.5% जीडीपी वृद्धि दर और कम मुद्रास्फीति एक संतुलित आशावाद को दर्शाते हैं। उनके अनुसार, 2025 में तीन बार की गई रेपो कटौती का असर होम लोन पर पड़ चुका है और इसका लाभ उपभोक्ताओं को मिला है। इसलिए आने वाले महीनों में घर खरीदने की गति सतर्क लेकिन सकारात्मक बनी रहेगी। खासकर शहरी भारत में जहां पहले से हाउसिंग डिमांड अच्छी बनी हुई है।
बैंकों की जिम्मेदारी बनी हुई है
स्क्वायर यार्ड्स के सीएफओ पीयूष बोथरा का मानना है कि RBI के स्थिर रुख के बावजूद बैंकों की जिम्मेदारी है कि वे पिछली कटौती का लाभ ग्राहकों तक पहुंचाएं। उनका कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता और कमोडिटी कीमतों में अस्थिरता बनी हुई है, ऐसे में ब्याज दर में और कटौती की जगह, बैंकिंग सिस्टम की भूमिका अहम हो जाती है। यदि बैंक होम लोन की दरों में पारदर्शिता और गति से कटौती करते हैं, तो इसका सीधा लाभ रियल एस्टेट सेक्टर और ग्राहकों को मिलेगा।
स्थिरता है नया आत्मविश्वास
कोलियर्स इंडिया के रिसर्च हेड विमल नाडर का विश्लेषण दिलचस्प है। उनके अनुसार, ब्याज दर में स्थिरता अपने आप में एक सकारात्मक संकेत है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक परिस्थितियां जटिल बनी हुई हैं। स्थिर रेपो रेट और कम मुद्रास्फीति का अनुमान आगामी त्योहारी सीज़न के लिए शुभ संकेत है। इससे डेवलपर्स नए लॉन्च, ऑफर और समय पर परियोजनाएं पूरी करने की दिशा में अधिक आश्वस्त हो सकते हैं।
निवेश के लिए अनुकूल माहौल बना
वेस्टियन के सीईओ श्रीनिवास राव ने आरबीआई के इस निर्णय को निवेशकों के लिए एक स्थायित्वपूर्ण माहौल बताया है। उनके अनुसार, पहले की गई दरों में कटौती का असर अभी पूरी तरह सामने नहीं आया है और इसलिए मौद्रिक नीति में स्थिरता बनाए रखना समझदारी भरा कदम है। इससे रियल एस्टेट में निवेश करने वाले बड़े व संस्थागत निवेशकों को भरोसा मिलेगा और वे अपने निर्णय अधिक रणनीतिक रूप से ले सकेंगे।
स्पष्ट है RBI का संकेत – न अधिक ढील, न सख्ती, अब बारी बाजार की है
RBI ने रेपो रेट को न बढ़ाकर और न ही घटाकर एक ऐसा संतुलन साधने की कोशिश की है, जो कई मोर्चों पर भरोसा जगाता है। आर्थिक वृद्धि के आंकड़े उत्साहजनक हैं, मुद्रास्फीति नियंत्रित है@ और रेपो में पूर्व में हुई कटौतियों का असर अब आकार लेने लगा है। ऐसे में अगली चाल अब बाजार, बैंकों और निवेशकों की है।
यह स्थिरता असल में RBI का विश्वास है भारत की अर्थव्यवस्था की लचीलापन में, लेकिन यह चेतावनी भी है कि कोई भी ढील अब सिर्फ परिणाम देखकर मिलेगी, उम्मीद पर नहीं।