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DDLJ से ‘देशद्रोही’ तक: सुप्रीम कोर्ट की फटकार से मचा राजनीतिक भूचाल, राहुल पर BJP का तीखा वार तो कांग्रेस ने कहा ‘राजनीतिक दमन’

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नई दिल्ली

4 अगस्त 2025

भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी के बयान पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी ने देश की राजनीति में उबाल ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के खिलाफ दायर मानहानि मामले पर सुनवाई करते हुए उनके बयानों को लेकर सख्त नाराज़गी जाहिर की और कहा कि, “यदि आप सच्चे भारतीय होते, तो इस तरह का बयान कभी नहीं देते।” कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि विपक्ष के नेता को जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए और अगर कुछ कहना है तो वह संसद में कहें, न कि सोशल मीडिया पर। कोर्ट की यह टिप्पणी उस वक्त आई, जब राहुल गांधी ने 2022 में कहा था कि चीन ने भारतीय सैनिकों को अरुणाचल प्रदेश में पीटा और 2,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्ज़ा कर लिया है। उनका बयान अब न केवल कानूनी प्रक्रिया में उलझा है, बल्कि एक बड़े राजनीतिक विवाद का केंद्र बन चुका है।

सुप्रीम कोर्ट की इस तीखी फटकार के बाद भाजपा ने राहुल गांधी पर हमले तेज़ कर दिए हैं। भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने उन्हें “प्रमाणित राष्ट्रविरोधी” करार देते हुए कहा कि यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने भारत की सुरक्षा, विदेश नीति और सेना के मनोबल पर चोट की हो। उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में विदेशी ताकतों से मदद ली और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गुप्त समझौते पर हस्ताक्षर किए। मालवीय ने यह भी कहा कि जब देश गालवान घाटी में चीन के खिलाफ मोर्चा संभाल रहा था, तब राहुल गांधी ने भारतीय अधिकारियों की जगह चीनी अधिकारियों से ब्रीफिंग लेना ज्यादा जरूरी समझा। उनके अनुसार, यह न केवल कूटनीतिक स्तर पर एक गंभीर चूक है बल्कि यह सीधे तौर पर भारत की विदेश नीति को नुकसान पहुंचाने वाली हरकत है।

इस मुद्दे पर भाजपा के अन्य नेता भी मुखर हुए। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि “यदि आप सच्चे भारतीय होते, तो सेना का मनोबल गिराने वाले बयान न देते।” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को उद्धृत करते हुए राहुल गांधी को फटकार लगाई कि विपक्ष का नेता होने का मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी कहें और राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगा दें। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी तीखा प्रहार करते हुए कहा कि “संसद में साक्ष्य देना होता है, लेकिन बाहर कुछ भी बोल सकते हैं – सही हो या गलत। राहुल गांधी का उद्देश्य विपक्ष का नेता बनना नहीं है, बल्कि चीन, पाकिस्तान और विदेशी एजेंडों को साधना है।” भाजपा का यह भी आरोप है कि कांग्रेस, विशेषकर गांधी परिवार, हमेशा से ही सेना की उपलब्धियों को कमतर आंकती रही है, चाहे वह सर्जिकल स्ट्राइक हो या ऑपरेशन सिंदूर।

दूसरी तरफ, कांग्रेस ने भी भाजपा और केंद्र सरकार पर जबर्दस्त पलटवार किया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि सरकार चीन के खिलाफ सच्चाई छुपा रही है और जनता को गुमराह कर रही है। उन्होंने सरकार की रणनीति को ‘DDLJ’ कह कर परिभाषित किया – Deny, Distract, Lie & Justify – यानि इनकार करना, ध्यान भटकाना, झूठ बोलना और फिर उसे सही ठहराना। रमेश ने 15 जून 2020 की गालवान घाटी की घटना का हवाला देते हुए कहा कि सरकार आज तक यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि चीन ने कितना भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा किया, कितने पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर अब भारतीय सैनिक नहीं जा सकते, और चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगातार क्यों बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि यह भारत के इतिहास में 1962 के बाद की सबसे बड़ी क्षेत्रीय क्षति है और मोदी सरकार इसका हिसाब देने से बच रही है।

कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने कहा कि विपक्ष का काम ही सरकार से सवाल पूछना है, और यदि सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्था विपक्ष की आवाज़ को दबाने वाली टिप्पणी करती है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। उन्होंने कहा कि सरकार के पास सटीक आंकड़े हैं, लेकिन यदि विपक्ष सवाल पूछे तो उसे राष्ट्रविरोधी ठहरा दिया जाता है, यह गलत है। कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने भी कहा कि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और राहुल गांधी ने केवल वही सवाल उठाए हैं जो हर जागरूक नागरिक को परेशान कर रहे हैं – क्या चीन ने भारत की ज़मीन कब्ज़ा की है? और क्या सरकार इस सच्चाई को छुपा रही है?

इस पूरे विवाद ने मानसून सत्र के दौरान संसद में गरमाहट बढ़ा दी है। कांग्रेस, राहुल गांधी के समर्थन में खुलकर उतर आई है और इसे “जनहित में उठाए गए सवालों का राजनीतिक दमन” करार दे रही है। वहीं भाजपा इस पूरे विवाद को राष्ट्रभक्ति बनाम राष्ट्रविरोध की तर्ज़ पर पेश कर रही है। ऐसे में यह साफ़ है कि आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि में भारत-चीन संबंध और राहुल गांधी के बयान, दोनों ही राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख मुद्दे बने रहेंगे। सवाल यह भी है कि क्या राहुल गांधी संसद के भीतर और बाहर इन सवालों को और तीव्रता से उठाएंगे या भाजपा उन्हें इसी बहाने किनारे लगाने में सफल होगी। भारत की राजनीति इन दिनों केवल भाषणों का अखाड़ा नहीं रही, बल्कि कोर्ट की टिप्पणियों तक पहुंच चुकी है – जहां लोकतंत्र, देशभक्ति, सवाल और जवाब सबका परीक्षण एक साथ हो रहा है।

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