नई दिल्ली । 4 अगस्त 2025
भारत के खेल मानचित्र पर अगर किसी राज्य ने खुद को सबसे चमकदार सितारे की तरह उभारा है, तो वह है हरियाणा। मात्र 1.34% जनसंख्या और कुल क्षेत्रफल के लिहाज़ से छोटा राज्य होते हुए भी, हरियाणा ने खेलों के क्षेत्र में जो उपलब्धियां दर्ज की हैं, वे अभूतपूर्व हैं। चाहे ओलंपिक हो, एशियाई खेल हों, कॉमनवेल्थ गेम्स, वर्ल्ड चैंपियनशिप या घरेलू प्रतियोगिताएं—हरियाणा के खिलाड़ियों ने हर मंच पर भारत का तिरंगा लहराया है। यहां खेल एक परंपरा है, जुनून है, और खेतों के किनारे बनी अखाड़ों से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्टेडियमों तक फैली एक संघर्षपूर्ण यात्रा है।
खेल संस्कृति की जड़ें: मिट्टी से ओलंपिक तक
हरियाणा की ग्रामीण संस्कृति में दंगल, कबड्डी, कुश्ती, पहलवानी और हॉकी जैसी परंपरागत खेल सदियों से खेले जाते रहे हैं। यही वजह है कि यहां के बच्चों को बचपन से ही खेल की दिशा में ढाला जाता है। गांवों में सुबह-शाम गूंजती पहलवानी की ललकार और खेतों में दौड़ते धावक इस बात का प्रमाण हैं कि यहां खेल केवल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि जीवनशैली है।
राज्य सरकार द्वारा अपनाई गई ‘खेल नीति’ ने भी हरियाणा को खेल महाशक्ति बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। खिलाड़ियों को आर्थिक सहायता, सरकारी नौकरी, खेल छात्रवृत्तियां और स्पोर्ट्स कोटे में आरक्षण जैसी सुविधाओं ने युवाओं को खेलों की ओर आकर्षित किया।
ओलंपिक विजेता और पदकवीरों की धरती
हरियाणा ने ओलंपिक में भारत को सबसे अधिक व्यक्तिगत पदक दिलाने वाले राज्यों में पहला स्थान बनाया है। 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारत को कुल 7 पदक मिले, जिनमें से 4 हरियाणा के खिलाड़ियों ने दिलाए। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक राज्य की खेल भावना का प्रमाण है।
- नीरज चोपड़ा (भाला फेंक – गोल्ड, टोक्यो 2020):
हरियाणा के पानीपत के खांडरा गांव के नीरज चोपड़ा ने इतिहास रच दिया। उन्होंने भारत को ट्रैक एंड फील्ड में पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाया। उनका सुनहरा थ्रो न केवल एक खेल की जीत थी, बल्कि एक सपने की उड़ान थी जो गांव की मिट्टी से शुरू हुई थी।
- योगेश्वर दत्त (कुश्ती – ब्रॉन्ज, लंदन 2012):
भिवानी के योगेश्वर दत्त ने पहलवानी में भारत को ओलंपिक पदक दिलाया। उनका संघर्ष हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है।
- साक्षी मलिक (कुश्ती – ब्रॉन्ज, रियो 2016):
रोहतक की साक्षी मलिक ने भारतीय महिला पहलवानी को नई पहचान दी। वह ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान बनीं।
- रवि दहिया (कुश्ती – सिल्वर, टोक्यो 2020):
सोनीपत के रवि ने कुश्ती में अपनी धाक जमाई और पूरे भारत को गौरवान्वित किया।
- बजरंग पूनिया (कुश्ती – ब्रॉन्ज, टोक्यो 2020):
झज्जर के बजरंग पूनिया ने भी रियो और टोक्यो दोनों ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
कॉमनवेल्थ गेम्स में हरियाणा का दबदबा
हरियाणा के खिलाड़ी राष्ट्रमंडल खेलों (CWG) में लगातार भारत के पदकों में 35-40% तक का योगदान देते आए हैं। 2018 गोल्ड कोस्ट CWG में भारत के कुल 66 पदकों में 22 केवल हरियाणा के खिलाड़ियों ने जीते थे।
मनु भाकर (शूटिंग), विनेश फोगाट (कुश्ती), दीपक पूनिया (कुश्ती), नवीन मलिक (कुश्ती), अंजुम मुद्गिल (शूटिंग) जैसे नाम अब अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारत की पहचान बन चुके हैं।
महिला शक्ति की मिसाल: फोगाट सिस्टर्स से लेकर मनु भाकर तक
हरियाणा की बेटियों ने खेल के मैदान में लिंग भेद को ध्वस्त किया है। गीता फोगाट, बबीता फोगाट, रितु फोगाट जैसी बहनों की कहानी न केवल अखाड़ों की गाथा है, बल्कि यह दर्शाती है कि गांव की बेटियां भी ओलंपिक की रिंग तक पहुंच सकती हैं।
मनु भाकर, झज्जर की रहने वाली युवा निशानेबाज़, ने 16 साल की उम्र में ही वर्ल्ड कप और कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीतकर पूरी दुनिया का ध्यान खींचा।
क्रिकेट में भी चमकते सितारे
हालांकि हरियाणा को कुश्ती, कबड्डी, बॉक्सिंग और एथलेटिक्स के लिए जाना जाता है, लेकिन क्रिकेट में भी इस राज्य ने अद्भुत योगदान दिया है। कपिल देव, भारत के पहले वर्ल्ड कप विजेता कप्तान, हरियाणा से ही हैं। उनके बाद जोगिंदर शर्मा (टी-20 वर्ल्ड कप 2007 के हीरो) और जयंत यादव, शिवम मावी, जैसे खिलाड़ी भी भारतीय टीम में अपनी छाप छोड़ चुके हैं।
कबड्डी और बॉक्सिंग की धड़कन हरियाणा
हरियाणा के खिलाड़ियों का जलवा प्रो कबड्डी लीग में भी खूब दिखा है। अजय ठाकुर, सुरेंद्र नाडा, पवन सहरावत जैसे नाम प्रो कबड्डी में चमकते सितारे हैं। वहीं बॉक्सिंग में विजेंदर सिंह, अमित पंघाल, नवीन बूरा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर हरियाणा को गौरवान्वित किया।
खेल में प्रशासनिक समर्थन और सुविधाएं
हरियाणा सरकार की ‘पदक लाओ, पुरस्कार पाओ’ नीति देशभर में सबसे प्रभावी रही है। ओलंपिक गोल्ड के लिए ₹6 करोड़, सिल्वर के लिए ₹4 करोड़ और ब्रॉन्ज के लिए ₹2.5 करोड़ की इनामी राशि ने युवाओं को प्रेरित किया है। राज्य में 300 से अधिक खेल नर्सरियां, 1100 कोच, 500+ स्टेडियम और इंडोर हॉल्स उपलब्ध कराए गए हैं। खिलाड़ियों को पढ़ाई में छूट, सरकारी नौकरी और अंतरराष्ट्रीय ट्रेनिंग जैसे संसाधनों से भी जोड़ा गया है।
हरियाणा अब सिर्फ एक राज्य नहीं, खेलों की राजधानी बन चुका है। यहां की मिट्टी में पसीना बहाने वाला हर खिलाड़ी एक सपना लेकर दौड़ता है—भारत के लिए कुछ कर गुजरने का। उसकी रगों में खेल है, नसों में हौंसला है, और उसकी आंखों में लहराता है तिरंगा।
इस राज्य ने सिखाया है कि छोटे गांवों और सीमित संसाधनों से भी ओलंपिक जैसी ऊंचाईयां छुई जा सकती हैं, बशर्ते जुनून हो, मेहनत हो और राष्ट्रप्रेम हो।