नई दिल्ली। 4 अगस्त 2025
कर्नाटक की राजनीति को हिला देने वाला प्रज्वल रेवन्ना सेक्स स्कैंडल अब एक कानूनी पड़ाव पर पहुंच चुका है। पूर्व सांसद और जनता दल (सेक्युलर) के नेता प्रज्वल रेवन्ना, जो पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के पोते हैं, उन्हें विशेष एनआईए अदालत ने एक रेप केस में दोहरी उम्रकैद की सजा सुनाई है। लेकिन यह मामला सिर्फ एक अपराध नहीं है—यह सत्ता, नैतिक पतन, डिजिटल दस्तावेज़ों और एक ऐसे राजनीतिक परिवार की कहानी है, जिसकी गूंज संसद से लेकर गांव के गलियारों तक सुनाई दी।
यह कहानी शुरू होती है अप्रैल 2024 से, जब अचानक सोशल मीडिया पर दर्जनों पेन ड्राइव्स के जरिए हजारों अश्लील वीडियो वायरल होने लगे। ये वीडियो किसी आम व्यक्ति के नहीं, बल्कि प्रज्वल रेवन्ना के थे। वीडियो में वे अलग-अलग महिलाओं के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखे गए। इन वीडियो की सत्यता की पुष्टि जैसे-जैसे होती गई, पूरे राज्य में तूफान मच गया। लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच ये सेक्स स्कैंडल कर्नाटक की सियासत को बुरी तरह झकझोर गया। जनता दल (सेक्युलर) ने तत्काल उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया, लेकिन तब तक वे डिप्लोमैटिक पासपोर्ट के सहारे देश से बाहर निकल चुके थे।
इन वीडियो में शामिल महिलाएं कई थीं—कुछ घरेलू सहायिकाएं, कुछ जानकार, कुछ ऐसी जिनके चेहरे तक सामने नहीं आए। सरकारी दस्तावेज़ों और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस स्कैंडल में करीब 400 महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े वीडियो सामने आए। इनमें से तीन महिलाओं ने आगे आकर पुलिस में बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई, जबकि चौथी शिकायत धमकी और साइबर स्टॉकिंग से जुड़ी थी। खास बात ये रही कि वीडियो और ऑडियो क्लिप्स केवल यौन कृत्य तक सीमित नहीं थे—बल्कि वे सत्ता के दुरुपयोग, भय और दबाव की कहानी भी कहते थे।
पहली पीड़िता जो सामने आई, वह रेवन्ना परिवार के फार्महाउस में घरेलू सहायिका थी। उसके अनुसार, लॉकडाउन के दौरान दो बार—पहली बार होलेनारसिपुरा स्थित फार्महाउस में और दूसरी बार बेंगलुरु के बसवनगुडी घर में—उसका रेप किया गया। उसने आरोप लगाया कि न सिर्फ उसका यौन शोषण किया गया, बल्कि उसे ब्लैकमेल भी किया गया। इस महिला की शिकायत पर सबसे पहले कार्रवाई हुई, और कोर्ट ने इसी केस में प्रज्वल को दोषी ठहराया। अदालत में फोरेंसिक रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें पीड़िता की साड़ी पर रेवन्ना का डीएनए मिला।
एसआईटी (Special Investigation Team) ने इस मामले में बेहद तगड़ी कार्रवाई की। करीब 2000 पन्नों की चार्जशीट, 23 गवाह, हजारों डिजिटल सबूत और फोरेंसिक रिपोर्ट्स कोर्ट में प्रस्तुत की गईं। जांच में यह भी सामने आया कि प्रज्वल ने इन महिलाओं को भरोसे में लेकर, या काम देने का लालच देकर अपने प्रभाव का दुरुपयोग किया। उनकी गतिविधियां महीनों तक चलीं और अधिकतर मामलों में पीड़िताओं को डराकर चुप कराया गया। SIT की रिपोर्ट बताती है कि वीडियो को सहेजने और रिकॉर्ड करने के लिए विशेष कमरे बनाए गए थे और यह सब रेवन्ना की जानकारी व योजना के तहत हुआ।
31 मई 2024 को जब प्रज्वल रेवन्ना जर्मनी से भारत लौटे, तो बेंगलुरु एयरपोर्ट पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया। गिरफ्तारी के बाद अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा और ट्रायल शुरू हुआ। 2 मई 2025 से इस मामले की नियमित सुनवाई विशेष अदालत में शुरू हुई। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद 1 अगस्त 2025 को अदालत ने उन्हें एक रेप केस में दोषी ठहराया और 2 अगस्त को सजा सुनाई गई—दोहरी उम्रकैद और ₹11 लाख का जुर्माना, जो पीड़िता को मुआवजे के रूप में दिया जाएगा।
लेकिन यहां कहानी खत्म नहीं होती। बाकी तीन केस अभी भी अदालत में लंबित हैं। SIT ने इन मामलों में भी मजबूत साक्ष्य जुटाए हैं, और अगर बाकी पीड़िताएं सामने आती हैं, तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है। इस केस को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग, मानवाधिकार संगठन, वकील समुदाय और सामाजिक संस्थाएं लगातार सरकार से मांग कर रही हैं कि ऐसे मामलों में फास्ट ट्रैक अदालतें बनाई जाएं, और डिजिटल शोषण के मामलों में विशेष कानून लागू हों।
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह मामला कई सवाल खड़े करता है। क्या पार्टी को पहले से इस तरह की हरकतों की जानकारी थी? क्या इतने लंबे समय तक वीडियो रिकॉर्ड होते रहे और किसी ने रोका नहीं? क्या सत्ता और पद का यह दुरुपयोग केवल एक व्यक्ति तक सीमित था या यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा था? ये सवाल अभी अनुत्तरित हैं।
इस केस ने भारतीय राजनीति और समाज में एक बड़ा संदेश छोड़ा है—कि अब कोई भी व्यक्ति कितना भी रसूखदार क्यों न हो, अगर वह अपराध करेगा तो उसे सजा जरूर मिलेगी। पीड़िता की हिम्मत, मीडिया की भूमिका, जांच एजेंसियों की तत्परता और न्यायपालिका की निर्भीकता ने मिलकर इस केस को एक नजीर बना दिया है।
इस पूरे मामले को देख कर एक बात साफ है कि आज भारत में न्याय प्रक्रिया भले धीमी हो, लेकिन न्याय मिलेगा। यह केवल एक महिला की लड़ाई नहीं थी, यह उन सैकड़ों महिलाओं की लड़ाई थी जिन्हें अक्सर चुप करा दिया जाता है, जिन्हें न्याय की उम्मीद ही नहीं होती। लेकिन इस केस ने उम्मीदें भी जगाईं, चेतावनियां भी दीं, और व्यवस्था के भीतर बैठे लोगों को भी यह संदेश दिया कि अब डरने की बारी उनकी है, जिन्होंने डर फैलाया था।