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तेजस्वी का वोटर लिस्ट विवाद: EC ने खारिज किया आरोप, BJP ने कहा– “ड्रामा बंद करें”

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पटना, 2 अगस्त 2025

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने शनिवार को एक बड़ा राजनीतिक आरोप लगाकर तूफान खड़ा कर दिया। उन्होंने दावा किया कि उनका नाम 1 अगस्त को जारी नई मतदाता सूची (ड्राफ्ट वोटर लिस्ट) से गायब है। तेजस्वी ने इसे “लोकतंत्र की हत्या” और “जनता के अधिकारों की लूट” करार दिया।

उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “अगर मेरे जैसे पूर्व उपमुख्यमंत्री का नाम ही सूची से गायब किया जा सकता है, तो आम लोगों का क्या होगा? यह लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश है।”

तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग से सवाल पूछते हुए कहा कि 65 लाख नामों को मतदाता सूची से हटाना किस आधार पर किया गया है? उन्होंने कहा कि जो लोग अस्थायी तौर पर बाहर गए हैं, क्या उन्हें मृत या गायब मान लिया गया?

पटना प्रशासन का जवाब: नाम सूची में मौजूद है

तेजस्वी के आरोपों पर पटना जिला प्रशासन ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और स्पष्ट किया कि उनका नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में पोलिंग स्टेशन संख्या 204, क्रमांक 416, बिहार एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी बिल्डिंग में दर्ज है। पहले उनका नाम बूथ संख्या 171 में था। चुनाव आयोग ने भी बयान जारी कर कहा, “तेजस्वी यादव का नाम सूची में दर्ज है। उनका दावा तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रम फैलाने वाला है।”

BJP का पलटवार: राजनीतिक नौटंकी बंद करें

बीजेपी नेताओं ने तेजस्वी पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा, “तेजस्वी का नाम उनके पिता लालू प्रसाद यादव के साथ ही सूची में दर्ज है। वे सिर्फ सहानुभूति बटोरना चाहते हैं।”

भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने चुटकी ली, “जो व्यक्ति खुद का नाम ढूंढ नहीं पा रहा, वह खुद को स्टीव जॉब्स से तुलना कर रहा था।”

चुनाव आयोग से तेजस्वी की मांगें:

  1. हटाए गए सभी नामों की बूथवार सूची और कारण सार्वजनिक किए जाएं।
  2. मृतक, शिफ्ट हुए, दोहराए गए और पता न चलने वाले वोटर्स की श्रेणीबद्ध सूची जारी की जाए।
  3. आपत्तियों के लिए दी गई 7 दिन की समयसीमा बढ़ाई जाए।
  4. सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान ले।

राजनीतिक असर और बहस

तेजस्वी यादव के आरोपों ने बिहार की राजनीति को गरमा दिया है। मतदाता सूची की पारदर्शिता और विश्वसनीयता एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। हालांकि प्रशासन की तत्परता और चुनाव आयोग की स्पष्टता से मामला थमता दिख रहा है, लेकिन आने वाले चुनावों में यह मुद्दा एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन सकता है।

राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे मतदाता सूची जैसे गंभीर विषयों पर तथ्यात्मक संवाद करें। लोकतंत्र की मजबूती के लिए चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा और पारदर्शिता दोनों आवश्यक हैं।

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