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कर्नाटक विधानसभा में ‘मिसइंफॉर्मेशन एंड फेक न्यूज़ प्रोहिबिशन बिल, 2025’ पेश – सोशल मीडिया पर नियंत्रण की पहल, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नई बहस

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15 जनवरी 2025 को कर्नाटक विधानसभा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और बहस को जन्म देने वाला विधेयक प्रस्तुत किया गया – ‘मिसइंफॉर्मेशन एंड फेक न्यूज़ प्रोहिबिशन बिल, 2025’। इस विधेयक का उद्देश्य राज्य में सोशल मीडिया, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और ऑनलाइन समाचार माध्यमों के जरिए फैल रही गलत सूचनाओं और फर्जी खबरों पर कानूनी रोक लगाना है। बिल में स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति या संस्था जानबूझकर या लापरवाही से झूठी या भ्रामक जानकारी फैलाता है, और उससे सामाजिक सौहार्द, सार्वजनिक स्वास्थ्य या राज्य की कानून-व्यवस्था पर असर पड़ता है, तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। 

विधेयक के अनुसार, दोषी पाए जाने पर व्यक्ति पर कड़ा जुर्माना, डिजिटल सामग्री हटाने का आदेश और संभवतः गिरफ्तारी तक का प्रावधान है। सरकार का कहना है कि यह क़दम डिजिटल युग में जिम्मेदार संवाद को सुनिश्चित करने और फेक न्यूज़ के माध्यम से होने वाली सांप्रदायिक तनाव, अफवाह, दहशत और धोखाधड़ी जैसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए जरूरी हो गया है। 

हालांकि, इस विधेयक के प्रस्तुत होते ही राज्य में राजनीतिक और नागरिक समाज में तीखी बहस छिड़ गई। मीडिया संगठनों, डिजिटल अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों ने चिंता जताई कि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतापर सीधा हमला है। उनका तर्क है कि फेक न्यूज़की परिभाषा अस्पष्ट है और इसका दुरुपयोग कर आलोचक पत्रकारों और विपक्षी नेताओं की आवाज को दबाया जा सकता है। 

इस बीच, कर्नाटक सरकार ने स्पष्ट किया कि इस कानून का उद्देश्य प्रेस की आज़ादी को सीमित करना नहीं, बल्कि झूठी सूचनाओं से जनहित की रक्षा करना है। राज्य सरकार एक नोडल एजेंसी के गठन की योजना पर भी काम कर रही है जो शिकायतों की जांच कर निष्पक्ष निर्णय लेगी। 

इस बिल ने राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि अन्य राज्य सरकारें अब इसे एक संभावित मॉडल कानून के रूप में देख रही हैं। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और इससे जुड़ी चुनौतियों के बीच, कर्नाटक का यह विधेयक डिजिटल युग में लोकतंत्र और जवाबदेही के संतुलन की एक बड़ी परीक्षा बन सकता है। 

15 जनवरी 2025 को प्रस्तुत मिसइंफॉर्मेशन एंड फेक न्यूज़ प्रोहिबिशन बिलभारत के संघीय लोकतंत्र में एक नई कानूनी दिशा की शुरुआत मानी जा रही है। यह देखना बाकी है कि क्या यह कानून सूचना की शुद्धता सुनिश्चित करेगा या लोकतांत्रिक संवाद पर लगाम लगाने का औजार बन जाएगा। 

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