मुंबई और पुणे को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-48 (NH-48), जो देश के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण मार्गों में से एक है, अब भारत के सड़क सुरक्षा इतिहास में एक अनुकरणीय उदाहरण बनकर उभरा है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा शुरू की गई ‘जीरो फेटैलिटी कॉरिडोर’ पहल के तहत इस राजमार्ग पर 15 चिन्हित ब्लैक स्पॉट्स—यानी उच्च दुर्घटना संभावित क्षेत्रों—में बुनियादी ढांचागत सुधार किए गए। परिणामस्वरूप, वर्ष 2025 की पहली तिमाही में गंभीर दुर्घटनाओं में 51% की कमी दर्ज की गई, जो इस पहल की सफलता और व्यवहारिक प्रभावशीलता को दर्शाता है।
2024 में NH-48 पर दर्ज कुल सड़क दुर्घटनाओं में 269 लोगों की दुखद मौत हुई थी, जो वर्षों से एक चिंताजनक आंकड़ा बना हुआ था। लेकिन इस सुधार कार्यक्रम के लागू होने के बाद 2025 की शुरुआत में यह संख्या घटकर 88 तक आ गई — जो न केवल सरकार के प्रयासों की सफलता का प्रमाण है, बल्कि सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए भी सुरक्षा की नई आशा लेकर आया है। यह सुधार केवल आकड़ों तक सीमित नहीं है; बल्कि इसमें स्पीड ब्रेकरों की पुन: योजना, स्पष्ट सिग्नलिंग, बेहतर लाइटिंग, क्रैश बैरियर्स, साइनेज और तत्काल मेडिकल सुविधा जैसे कई पहलुओं पर काम किया गया।
‘जीरो फेटैलिटी कॉरिडोर’ मॉडल न केवल एक अवसंरचनात्मक योजना है, बल्कि यह एक समग्र सोच को दर्शाता है जिसमें प्रशासन, पुलिस, इंजीनियरिंग विभाग और आम जनता — सभी की भागीदारी को आवश्यक माना गया है। इसके साथ-साथ सड़क सुरक्षा पर स्कूलों में जागरूकता अभियान, ट्रक और बस ड्राइवरों के लिए विशेष प्रशिक्षण, और GPS आधारित निगरानी प्रणाली भी लागू की गई है, जिससे सड़क पर अनुशासन और सतर्कता को बढ़ावा मिला।
यह पहल यह साबित करती है कि यदि इच्छाशक्ति, तकनीक और जनभागीदारी को साथ लाया जाए, तो सड़क दुर्घटनाओं जैसे जटिल और व्यापक मुद्दों का समाधान न केवल संभव है बल्कि स्थायी भी हो सकता है। अब देशभर के अन्य राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्यों को इस सफलता से प्रेरणा लेकर अपनी सड़क सुरक्षा नीतियों में आवश्यक बदलाव करने की आवश्यकता है, ताकि भारत 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं को आधा करने के अपने सतत विकास लक्ष्य को सच कर सके।