नई दिल्ली 31 जुलाई 2025
भारत आज जिस मुकाम पर खड़ा है, वहाँ सबसे बड़ा सवाल यही है: क्या हम केवल योजनाएँ बनाएँगे, या वास्तव में परिणाम देंगे? इसी सवाल का ठोस और साहसी उत्तर है—Skill Impact Bond (SIB), जो भारत की पहली परिणाम-आधारित स्किलिंग पहल है, और जिसकी प्रेरणा, संचालन और सफलता का श्रेय बड़ी हद तक महिलाओं के नेतृत्व को जाता है।
स्किल इम्पैक्ट बॉन्ड या एसआईबी (SIB) पहल का लक्ष्य चार वर्षों में भारत में 50,000 युवाओं को सहायता प्रदान करना है, जिनमें से 60 प्रतिशत महिलाएँ और लड़कियाँ होंगी। यह कौशल प्रशिक्षण खुदरा, परिधान, स्वास्थ्य सेवा और लॉजिस्टिक्स जैसे कोविड-19 रिकवरी क्षेत्रों में वेतन-रोज़गार तक पहुँच को सक्षम बनाने के लिए प्रदान किया जाता है। यानी यह पहल न केवल भविष्य की तैयारी है, बल्कि महामारी के बाद के भारत को सशक्त करने की एक ज़मीन से जुड़ी कोशिश भी रही है।
यह कोई सामान्य योजना नहीं है। यह परिणाम के बिना भुगतान नहीं जैसी धारणा पर आधारित है। यह एक ऐसा मॉडल है, जो भारत की लाखों युवतियों को सिर्फ प्रशिक्षण नहीं देता, उन्हें रोज़गार की गारंटी देता है। यह मॉडल यह कहता है—अगर प्रशिक्षण के बाद नौकरी नहीं मिली, तो संसाधन खर्च नहीं होंगे। यानी गंभीरता, जवाबदेही और परिणाम—ये इसकी मूल आत्मा हैं।
लेकिन इस योजना की सबसे असाधारण बात यह है कि यह महिला-नेतृत्व वाली क्रांति बन चुकी है। आज पूजा कुमारी (बोकारो), इशरत (दिल्ली) और साक्षी (झारखंड) जैसे नाम, सिर्फ सफल महिलाएं नहीं हैं, वे आशा के प्रतीक बन चुकी हैं। ये वे महिलाएं हैं जो कभी स्कूल छोड़ चुकी थीं, कभी गरीबी के कारण सीमित हो गई थीं—आज वे अंतरराष्ट्रीय कंपनियों, डिजिटल बैकऑफिस, टेक्निकल सेक्टर में सफल करियर बना रही हैं। यह बदलाव सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक और संरचनात्मक है।
हमारे देश में वर्षों से स्किलिंग योजनाएँ चलाई जाती रहीं, लेकिन अधिकतर योजनाओं का अंत होता था एक सर्टिफिकेट पर। नौकरी, आत्मनिर्भरता, और आर्थिक स्वतंत्रता उस दस्तावेज़ से कभी नहीं जुड़ पाई। लेकिन SIB ने वह अंतर भरा है जो योजना और बदलाव के बीच था। इसने ‘प्रक्रिया से परिणाम’ तक की दूरी को ईमानदारी से तय किया है।
इस पहल में महिलाओं की अगुवाई ने साबित कर दिया है कि जब महिलाओं को केवल “लाभार्थी” नहीं, बल्कि “निर्णायक” की भूमिका दी जाती है, तो नीतियाँ ज़मीनी बनती हैं और परिवर्तन स्थायी होता है। उन्होंने दिखा दिया कि विकास की कहानी तब ही सफल होती है जब उसकी कलम महिलाओं के हाथ में हो।
Skill Impact Bond को HSBC इंडिया, CIFF, JSW फाउंडेशन और Dubai Cares जैसे संगठनों का समर्थन मिला है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी पूँजी है—युवतियों का आत्मविश्वास और नेतृत्व कौशल। इस योजना में महिलाओं ने न केवल प्रशिक्षण लिया, बल्कि अपने परिवार और गाँव की दूसरी लड़कियों को भी प्रशिक्षित करने का बीड़ा उठाया। वे ‘रोल मॉडल’ नहीं, ‘चेंज मेकर’ हैं।
भारत के स्किलिंग मिशन के लिए यह एक नया युग है। अब हमें चाहिए कि यह मॉडल केवल एक प्रयोग बनकर न रह जाए, बल्कि इसे नीति में रूपांतरित किया जाए। केंद्र और राज्य सरकारों को यह समझना होगा कि ‘परिणाम आधारित निवेश’ और ‘महिला-नेतृत्व आधारित कार्यान्वयन’ से ही स्किलिंग को अर्थ और असर मिल सकता है।
महिलाओं को सिर्फ कार्यबल का हिस्सा मानना ही काफी नहीं, उन्हें निर्णय लेने वालों की सीट पर बिठाना होगा। यह योजना इस बात का प्रमाण है कि जब महिलाएं नेतृत्व करती हैं, तो वे सिर्फ अपने लिए नहीं, पूरी पीढ़ी के लिए रास्ता बनाती हैं।
ऑक्सफोर्ड पॉलिसी मैनेजमेंट द्वारा किया गया स्वतंत्र मूल्यांकन यह दर्शाता है कि Skill Impact Bond मॉडल ने न केवल प्रशिक्षित युवाओं को स्थायी रोजगार दिलवाया, बल्कि महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता में भी ऐतिहासिक प्रगति की है। रिपोर्ट के अनुसार, इस मॉडल की पारदर्शिता, परिणाम आधारित निवेश, और महिला-केंद्रित दृष्टिकोण ने इसे भारतीय कौशल परिदृश्य का Game-Changer बना दिया है।
यह कहानी उन लड़कियों की है जिन्होंने खुद को दुनिया को साबित किया है। यह मॉडल उन सरकारों के लिए प्रेरणा है जो वाकई परिवर्तन लाना चाहती हैं। और यह सवाल हम सबके लिए है—क्या हम अब भी केवल योजनाओं की संख्या गिनेंगे, या परिणाम की ताक़त को अपनाएँगे? Skill Impact Bond ने हमें रास्ता दिखा दिया है।