नई दिल्ली, 30 जुलाई 2025
भारतीय सेना की पूर्व अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकारों की मुखर आवाज़ खुशबू पाटनी ने आध्यात्मिक गुरु अनिरुद्धाचार्य, जिन्हें सोशल मीडिया पर ‘Pookie बाबा’ के नाम से जाना जाता है, की महिलाओं पर की गई विवादास्पद टिप्पणी का तीखा विरोध किया है। हाल ही में एक सार्वजनिक प्रवचन के दौरान बाबा ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं के चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उन्हें “अशोभनीय” और “संस्कृति-विरोधी” कहा। इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसके बाद समाज के विभिन्न वर्गों से तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। खासकर महिलाओं ने इस टिप्पणी को अपनी स्वतंत्रता और निजी पसंद का अपमान बताया।
खुशबू पाटनी ने अपने आधिकारिक बयान में साफ शब्दों में कहा कि अनिरुद्धाचार्य की टिप्पणी न केवल महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाती है, बल्कि भारतीय समाज में लगातार पनप रही उस मानसिकता को उजागर करती है जो महिलाओं को हमेशा नैतिकता के तराज़ू पर तोलती है, जबकि पुरुषों के लिए वही मानक लागू नहीं होते। उन्होंने कहा कि यदि दो लोग परस्पर सहमति से किसी रिश्ते में हैं, तो उसमें केवल महिला को ही ‘गलत’ क्यों ठहराया जाए? क्या नैतिकता की परिभाषा केवल महिलाओं के लिए है? पाटनी ने सवाल उठाया कि जब महिलाएं अपने फैसले खुद लेने लगती हैं, तब ही समाज क्यों विचलित होता है? उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसे सार्वजनिक मंचों से की जाने वाली टिप्पणियाँ केवल शब्द नहीं होतीं, बल्कि वे सामाजिक दृष्टिकोण और मानसिकता को आकार देती हैं—और यही बात चिंताजनक है।
विवाद बढ़ने पर बाबा अनिरुद्धाचार्य ने सफाई देते हुए कहा कि उनकी टिप्पणी “कुछ महिलाओं” के लिए थी और वीडियो को “एडिट” कर के पेश किया गया है, जिससे उसका आशय गलत समझा गया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से क्षमा भी मांगी, परंतु खुशबू पाटनी और अन्य महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे अपर्याप्त और बहानेबाज़ी करार दिया। पाटनी ने कहा कि माफी तब मायने रखती है जब उसके साथ सोच में बदलाव और आत्मनिरीक्षण हो। केवल तकनीकी खामियों या संदर्भ के बहाने बना कर बचना, इस समाज में महिलाओं के खिलाफ जारी नैतिक आतंक को और हवा देने जैसा है। उन्होंने यह भी कहा कि आज जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं—तो यह ज़रूरी है कि समाज, धर्म और राजनीति—तीनों ही क्षेत्रों में उनकी गरिमा और फैसलों का सम्मान हो। यह विवाद इस बात का प्रमाण है कि महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर अभी लंबा संघर्ष बाकी है, और ऐसे हर अवसर पर आवाज़ बुलंद करना जरूरी है।