तिरुवनंतपुरम, केरल
9 अगस्त 2025
केरल का इंटरफेथ स्पिरिचुअल सर्किट — जब श्रद्धा बन जाती है साझा संस्कृति की संजीवनी…. केरल को अगर किसी एक शब्द में समझना हो, तो वह है — सह-अस्तित्व। यह भूमि न केवल हरियाली और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की आध्यात्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता भी विश्व के लिए उदाहरण है। 2025 में केरल पर्यटन ने इस विरासत को पर्यटन के एक सशक्त रूप में प्रस्तुत किया है — “इंटरफेथ स्पिरिचुअल सर्किट”, यानी एक ऐसा यात्रा मार्ग जो केवल मंदिरों, मस्जिदों या चर्चों तक सीमित नहीं, बल्कि धर्मों के बीच संवाद, सम्मान और सांझे अनुभवों पर केंद्रित है।
यह सर्किट एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक चेतन यात्रा है — जहाँ आप एक मंदिर में पूजा करने के बाद किसी मस्जिद के इमाम से जीवन के अर्थ पर चर्चा कर सकते हैं, और फिर किसी गिरजाघर में मोमबत्ती जलाकर शांति की प्रार्थना कर सकते हैं।
सबरीमला — भक्ति, संयम और समावेश का पहाड़
केरल के पठानमथिट्टा ज़िले में स्थित सबरीमला केवल अय्यप्पा स्वामी की आराधना का स्थल नहीं, बल्कि समावेशी भक्ति का प्रतीक है। यह वह स्थान है जहाँ हर धर्म, जाति, भाषा और लिंग के लोग 41 दिन के व्रत के बाद सफेद वस्त्रों में पहाड़ चढ़ते हैं। यहाँ मुस्लिम समुदाय के इरुमुदी ले जाने की परंपरा और वावर स्वामी मस्जिद की उपस्थिति — केरल की धार्मिक साझेदारी की मिसाल है।
2025 में यहाँ विशेष “इंटरफेथ डायलॉग वॉक” का आयोजन हुआ — जिसमें अय्यप्पा भक्तों, मुस्लिम युवाओं और ईसाई थॉट लीडर्स ने साथ-साथ चलकर सांझी आस्था पर संवाद किया।
बीमापल्ली — श्रद्धा की गुलाबी मीनारें
त्रिवेंद्रम के समुद्र तट पर स्थित बीमापल्ली दरगाह शरीफ, मुस्लिम समुदाय की श्रद्धा का केंद्र है — जो बीबी बीमा बीवी की याद में बनाई गई है। यहाँ रमज़ान और उर्स के अवसर पर हिन्दू, ईसाई, और दलित समुदायों की भारी भागीदारी होती है। 2025 में यह दरगाह केरल के “इंटरफेथ सिविल हार्मनी जोन” का केंद्र बन चुकी है।
यहाँ अब ‘Open Heart Sufi Evenings’ का आयोजन होता है — जिसमें सूफियाना कलाम के बीच चाय और संवाद होता है, और हर धर्म के पर्यटक उसमें शामिल हो सकते हैं।
परुर और कोट्टायम — चर्च, धर्म और कला का संगम
परुर का संत थॉमस चर्च और कोट्टायम का वलियापल्ली, नासरीन ईसाइयों की विरासत को संजोए हुए हैं। यहाँ 2025 में “Gospel & Ghazal” कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसमें ईसाई भजन और उर्दू ग़ज़लों के माध्यम से आध्यात्मिक एकता का अनुभव कराया जाता है।
पर्यटकों को अब यहाँ पुराने सीरियन ग्रंथ पढ़ने, स्थानीय पादरियों से संवाद करने और “प्रेयर थ्रू पेंटिंग” जैसी कार्यशालाओं में भाग लेने का अवसर मिलता है। यहाँ के चर्चों में मलयालम और अरबी मिश्रित नाम और संस्कृति देखते ही बनती है।
अरथल और मंजेश्वरम् — समन्वय का जीवंत उदाहरण
अरथल का शिव मंदिर और मंजेश्वरम् की जामा मस्जिद — दो धार्मिक स्थल जो पास-पास स्थित हैं, लेकिन उनके श्रद्धालुओं के बीच कोई दूरी नहीं है। हर शुक्रवार और सोमवार को दोनों स्थानों के सेवक एक दूसरे के लिए भोजन का आयोजन करते हैं — यह परंपरा अब ‘श्रद्धा भोज’ के रूप में अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाई हुई है।
2025 में इन स्थलों को ‘Peace Pilgrim Stopovers’ के रूप में चिन्हित किया गया है — जहाँ यात्रियों को ‘Silence Session’ में भाग लेने का अवसर दिया जाता है — जिसमें बिना बोले केवल आँखों और आत्मा से संवाद किया जाता है।
मुवट्टुपुझा — जहाँ मस्जिद, मंदिर और गिरिजाघर एक तिराहे पर मिलते हैं
यह शहर अब केरल के इंटरफेथ टूरिज़्म कैपिटल के रूप में प्रसिद्ध हो गया है। यहाँ हर शनिवार को “Shraddha Sabha” नामक कार्यक्रम होता है — जहाँ तीन धर्मों के आचार्य एक मंच पर बैठते हैं, और युवा उनसे प्रश्न पूछते हैं। 2025 में UN World Harmony Council ने इसे “Model of Faith-based Integration” कहा।
आस्था की यात्रा, जो बाँटती नहीं — जोड़ती है
केरल का इंटरफेथ स्पिरिचुअल सर्किट 2025 में एक अद्वितीय पर्यटन अनुभव बन गया है — जो यह बताता है कि आस्था दीवार नहीं, पुल हो सकती है। जब आप सबरीमला के रास्ते पर मुस्लिम श्रद्धालु से मिलते हैं, जब बीमापल्ली की दरगाह पर मोमबत्ती जला रहे किसी ईसाई को देखते हैं, या जब किसी मंदिर में पूजा के बाद चर्च की घंटी सुनते हैं — तब आपको समझ में आता है कि भारत की एकता का रंग धार्मिक नहीं, आत्मिक है।