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केरल के गाँव: ज़मीन से जुड़ी संवेदना और विकास की यात्रा

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तिरुवनंतपुरम, केरल

6 अगस्त 2025

जब पूरी दुनिया पर्यटन को केवल लग्ज़री और दर्शनीय स्थलों की सीमाओं में बाँधने में लगी है, तब केरल ने एक नई दिशा दी है — एक ऐसा पर्यटन मॉडल जिसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी, संस्कृति की रक्षा, और पर्यावरण की संवेदना का अनूठा समन्वय है। इसे नाम दिया गया है: “Responsible Tourism Mission” — और यह अब केरल की आत्मा बन चुका है।

2025 तक, यह अभियान न केवल केरल सरकार की सबसे प्रभावी पर्यटन नीति बन चुका है, बल्कि भारत भर के अन्य राज्यों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल भी। यह विचार केवल यात्रियों के लिए सुविधाएं बनाने का नहीं है, बल्कि यात्रियों और स्थानीय लोगों के बीच एक पारस्परिक संबंध बनाने का है — जिससे दोनों पक्ष समृद्ध हो सकें।

क्या है ‘Responsible Tourism Mission’?

यह एक ऐसी पहल है जिसमें गाँवों को पर्यटन के लिए सजाया नहीं गया, बल्कि उन्हें जैसे हैं, वैसे ही अपनाया गया। खेत, तालाब, मंदिर, मस्जिद, मदरसे, सिलाई केंद्र, मछली पकड़ने की झोंपड़ियाँ, चाय-बगान और हाथ से बनी कला — ये सब मिलकर अब “Tourist Product” नहीं, बल्कि “Cultural Exchange Experience” बन गए हैं।

केरल के 25 से अधिक गाँवों को अब आधिकारिक रूप से “Responsible Tourism Villages” घोषित किया जा चुका है, जिनमें कोट्टायम का कुमारकोम, वायनाड का थिरुनेल्ली, पल्लकड़ का काविलपारा और अल्लेप्पी का चंपकुलम प्रमुख हैं।

पर्यटक अब दर्शक नहीं, सहभागी बनते हैं

इन गाँवों में आने वाला पर्यटक अब केवल फोटो नहीं खींचता — वह धान बोने, मछली पकड़ने, नारियल चढ़ाने, केले की पत्तियों पर खाना खाने और कंबल बुनने जैसी गतिविधियों में भाग लेता है। वायनाड में “फार्मस्टे” की लोकप्रियता इतनी बढ़ी है कि लोग शहर छोड़कर वहाँ सप्ताह भर की कृषि अवकाश यात्रा करने लगे हैं।

कुमारकोम में महिलाएं पर्यटकों को पारंपरिक व्यंजन बनाना सिखाती हैं — कुट्टनाड पुली करी, अवियल, पायसम — और बदले में अपनी भाषा, संस्कृति और आत्मबल का अनुभव साझा करती हैं। पल्लकड़ में स्कूल के बच्चों द्वारा ‘लोकल गाइड प्रोजेक्ट’ चलाया जा रहा है, जिसमें वो पर्यटकों को गाँव की विरासत और कहानियाँ बताते हैं।

पर्यावरण की रक्षा = पर्यटन का आधार

यह अभियान केवल मानव-केंद्रित नहीं, बल्कि प्रकृति-आधारित भी है। गाँवों में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पूरी तरह प्रतिबंधित है। पुनः प्रयोगशील बोतलें, जैविक कूड़ेदान, सौर ऊर्जा से चलने वाले होमस्टे और पारंपरिक जल प्रणाली — सबको अनिवार्य कर दिया गया है। यहाँ पर्यटन का मतलब उपभोग नहीं, सह-अस्तित्व है।

2025 में कुट्टनाड क्षेत्र में बोट-टूर को इलेक्ट्रिक हाउस बोट्स से जोड़ा गया, जो ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन करते हैं। ये पहल अब ग्लोबल ग्रीन ट्रैवलर अवार्ड की सूची में शामिल हो चुकी है।

कला, कारीगरी और आत्म-निर्भरता

गाँवों में चलने वाली हस्तकला कार्यशालाएं — जैसे बांस की टोकरियाँ, ताड़ की पंखियाँ, हाथ से कढ़ाई किए गए परिधान, और नक्काशीदार दीपक — अब ‘स्मृति’ के रूप में नहीं, बल्कि यात्रा के सहयोग के प्रतीक के रूप में खरीदे जाते हैं। हर खरीद का 80% हिस्सा सीधे उस कारीगर को जाता है।

त्रिशूर और कोझिकोड में पर्यटक अब ‘लोक संगीत सत्र’ और ‘पारंपरिक कठपुतली रंगशाला’ में भाग लेते हैं — जिससे ये विलुप्त होती कलाएं फिर से जीवन पा रही हैं।

आंकड़ों की दृष्टि से सफलता

2025 में ‘Responsible Tourism Villages’ में 18 लाख से अधिक पर्यटक आए, जिनमें से 30% विदेशी और 40% ऐसे युवा थे जो पहले कभी गाँव नहीं गए थे। इससे लगभग 75,000 ग्रामीण परिवारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आय और सम्मान मिला। महिलाओं का आर्थिक आत्मनिर्भरता स्कोर 67% तक बढ़ा है।

जब यात्रा समाज बदलती है

केरल के गाँव अब केवल पर्यटन स्थल नहीं, परिवर्तन स्थल बन चुके हैं। Responsible Tourism Mission ने सिद्ध कर दिया है कि पर्यटन केवल उपभोग नहीं, बल्कि सेवा, संवाद और समानता का माध्यम बन सकता है। यह वह यात्रा है जो केवल पहाड़, समुद्र या जंगल नहीं दिखाती — बल्कि एक पूरा समाज, उसकी आत्मा, उसकी जिजीविषा और उसका संघर्ष दिखाती है।

और सबसे सुंदर बात यह कि इस यात्रा में आप सिर्फ यात्री नहीं रहते — आप भी उस बदलाव के वाहक बन जाते हैं।

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