विक्टोरिया फॉल्स, जिम्बाब्वे
31 जुलाई 2025
भारत ने एक बार फिर वैश्विक पर्यावरण मंच पर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है। अफ्रीका के विक्टोरिया फॉल्स में आयोजित “Ramsar COP15” सम्मेलन में भारत ने अपने जल-भूमि संरक्षण मॉडल को वैश्विक समुदाय के समक्ष बड़ी प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत किया। भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए भारत द्वारा किए गए प्रयासों और उपलब्धियों को विस्तार से रखा। उन्होंने बताया कि भारत ने केवल एक वर्ष में 68,827 जल निकायों (wetlands) का पुनरुद्धार किया है, जो न केवल देश के लिए गर्व की बात है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रेरणादायक मॉडल बन चुका है। इस काम में ‘अमृत सरोवर मिशन’ और ‘मिशन सहभागिता’ जैसी योजनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनके माध्यम से स्थानीय लोगों की भागीदारी को केंद्रीय स्थान दिया गया।
भूपेंद्र यादव ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की विकास नीति में जल-भूमियों को केवल जल संरक्षण का साधन नहीं बल्कि समग्र पारिस्थितिक संतुलन, जैव विविधता और ग्रामीण आजीविका से जुड़ा हुआ एक जीवंत तंत्र माना गया है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि भारत की 91 रामसर साइट्स (Ramsar Sites) का नेटवर्क न केवल एशिया का सबसे बड़ा नेटवर्क बन चुका है, बल्कि यह दुनिया भर में तीसरे स्थान पर पहुंच चुका है। इसने भारत को जल-भूमियों के संरक्षण में एक विश्वसनीय राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने मात्र 26 साइट्स से बढ़कर 91 साइट्स तक की छलांग लगाई है, जो लगभग 250% की वृद्धि है। यह उन्नति न केवल भौगोलिक दायरे में है बल्कि संरक्षण की गहराई, स्थानीय सहभागिता और वैज्ञानिक प्रबंधन के स्तर पर भी सराहनीय है।
सम्मेलन में भारत द्वारा राजस्थान के अलवर ज़िले की प्रसिद्ध सिलीसेढ़ झील (Siliserh Lake) को एक संभावित नई रामसर साइट के रूप में प्रस्तावित किया गया। यह झील ऐतिहासिक और पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने से न केवल उसके संरक्षण को नई दिशा मिलेगी बल्कि क्षेत्र में सतत पर्यटन और स्थानीय रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने अरुणाचल प्रदेश की ग्लो झील, बिहार की गोगाबिल झील, और गुजरात की छारी ढांड और गोसाबारा वेटलैंड्स को भी रामसर सूची में जोड़ने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है। इन प्रस्तावों से स्पष्ट है कि भारत जल-भूमियों को केवल पर्यावरणीय दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण मानता है।
भूपेंद्र यादव ने इस अवसर पर यह भी कहा कि भारत में जल-भूमियों का संरक्षण केवल एक सरकारी दायित्व नहीं है, बल्कि यह संविधान प्रदत्त नैतिक कर्तव्य भी है। संविधान के अनुच्छेद 48A और 51A(g) में नागरिकों और राज्य को प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसी भावना के तहत भारत ने ‘वेटलैंड अथॉरिटी’ की स्थापना की, जलाशयों के लिए वैज्ञानिक पुनर्जीवन गाइडलाइन बनाई, और GIS आधारित मॉनिटरिंग को अनिवार्य किया। यही कारण है कि भारत का जल-भूमि मॉडल अब संयुक्त राष्ट्र और अन्य विकासशील देशों के लिए एक अनुकरणीय दृष्टांत बन रहा है।
भारत की यह पहल वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन, जल संकट और जैव विविधता के संरक्षण जैसे गंभीर मुद्दों पर एक ठोस समाधान प्रस्तुत करती है। यह दिखाता है कि यदि नीति, जनभागीदारी, तकनीक और संवैधानिक दृष्टिकोण को एक सूत्र में बाँध दिया जाए तो बड़े लक्ष्य भी संभव हैं। Ramsar COP15 में भारत की उपस्थिति केवल एक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि एक संदेश था — कि ‘विकास’ और ‘संरक्षण’ परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। यही भारत की जल-नीति की सच्ची पहचान है — लोक आधारित, वैज्ञानिक, संवैधानिक और सतत विकासोन्मुख।