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डिजिटल डिटॉक्स बना नया ज़रूरतमंद ट्रेंड: स्क्रीन टाइम से थक चुके लोग ढूंढ रहे हैं डिजिटल संतुलन

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बेंगलुरु, कर्नाटक 

6 अगस्त 2025 

टेक्नोलॉजी जितनी ज़रूरी बन गई है, उतनी ही तेजी से इससे पैदा हो रही है डिजिटल थकावट (Digital Fatigue)। वर्क फ्रॉम होम, लगातार ज़ूम मीटिंग्स, सोशल मीडिया की होड़ और नोटिफिकेशन की बमबारी से परेशान होकर अब भारत में डिजिटल डिटॉक्स का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है।

बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद जैसे शहरों में कामकाजी युवा और छात्र अब हर हफ्ते एक दिन मोबाइल, लैपटॉप और टीवी से पूरी तरह दूरी बनाने लगे हैं। इसे वो “Tech-Free Sunday” या “Mind Cleanse Day” कहकर सोशल मीडिया पर भी साझा कर रहे हैं — और वह खुद इस दिन सोशल मीडिया से गायब रहते हैं।

होटल इंडस्ट्री और वेलनेस रिसॉर्ट्स ने भी इस प्रवृत्ति को अपनाया है। अब “Digital Detox Packages” में मोबाइल जमा करवाकर मेहमानों को केवल किताबें, बोर्ड गेम्स, जंगल वॉक, मेडिटेशन और साइलेन्स रिट्रीट्स का अनुभव दिया जा रहा है।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि लगातार स्क्रीन के संपर्क में रहना नींद, एकाग्रता, आंखों और मस्तिष्क को प्रभावित करता है। डिजिटल डिटॉक्स न केवल तनाव को कम करता है, बल्कि रिश्तों को गहरा, मन को स्थिर और जीवन को धीमा करने का भी मौका देता है।

स्कूलों और कॉलेजों में भी अब “No-Gadget Hour” और “Offline Hobby Day” जैसे कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं। यहां तक कि कुछ कंपनियों ने हफ्ते में एक दिन ईमेल और मीटिंग फ्री डे रखने की पहल की है।

यह परिवर्तन सिर्फ शहरी ट्रेंड नहीं, बल्कि एक स्वस्थ जीवनशैली की नई नींव बनता जा रहा है — जिसमें तकनीक से दूरी बनाकर इंसान फिर से खुद के और अपनों के साथ जुड़ना सीख रहा है।

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