तारीख: 15 मार्च 2025 –स्थान: नई दिल्ली
भारत सरकार ने 15 मार्च 2025 को एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए यह सूचित किया कि देशभर की प्रमुख तकनीकी और वैज्ञानिक उच्च शिक्षा संस्थाओं में पढ़ाई जाने वाली 750 महत्वपूर्ण पुस्तकें अब क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराई गई हैं। यह कदम न केवल शिक्षा का लोकतंत्रीकरण है, बल्कि यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में भाषाई समावेशन को बढ़ावा देने की दिशा में एक क्रांतिकारी प्रयास माना जा रहा है।
इस पहल के तहत इंजीनियरिंग, फिजिक्स, बायोलॉजी, गणित, कंप्यूटर साइंस, पर्यावरण विज्ञान, और एस्ट्रोनॉमी जैसे तकनीकी विषयों से संबंधित पुस्तकों का अनुवाद हिंदी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, पंजाबी, कन्नड़ और ओड़िया जैसी भाषाओं में किया गया है। इससे उन लाखों छात्रों को लाभ मिलेगा जो अब तक अंग्रेजी भाषा की बाधा के कारण विज्ञान और तकनीकी विषयों की गहराई में नहीं जा पाते थे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रयास भाषा विज्ञान, अनुवाद प्रौद्योगिकी, और विज्ञान शिक्षा के समावेशीकरण का अद्भुत संगम है। देश की शीर्ष तकनीकी संस्थाओं जैसे कि IIT, NIT, और AICTE के सहयोग से विकसित की गई इस योजना में अत्याधुनिक AI-बेस्ड अनुवाद टूल्स का भी सहारा लिया गया है, जिससे अनुवाद की सटीकता और वैज्ञानिक शब्दावली की पवित्रता सुनिश्चित की गई है।
इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा कि भारत में उच्च शिक्षा को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराना न केवल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) की आत्मा है, बल्कि यह विज्ञान जैसे गंभीर विषयों को भी लोकभाषा में लाकर छात्रों के आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला कदम है। जब छात्र अपने ही भाषायी परिवेश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे जटिल विषयों को समझ पाते हैं, तब उनमें रचनात्मक सोच, नवाचार और वैज्ञानिक समझ की गहराई स्वतः विकसित होती है।
यह पहल भाषाई न्याय और वैज्ञानिक समावेशन का प्रतीक मानी जा रही है। साथ ही, यह देश की सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार करते हुए, यह संदेश देती है कि विज्ञान और तकनीक किसी एक भाषा या वर्ग का क्षेत्र नहीं, बल्कि हर भारतीय का अधिकार है।
आगामी वर्षों में सरकार ने यह लक्ष्य तय किया है कि 10,000 से अधिक तकनीकी और वैज्ञानिक पुस्तकें क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाएंगी और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर मुफ्त में पढ़ाई जा सकेगी। इससे न केवल ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों के छात्रों को लाभ होगा, बल्कि भारत की वैज्ञानिक प्रतिभा को जमीनी स्तर से तैयार करने में भी यह मील का पत्थर साबित होगा।