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दिल्ली विश्वविद्यालय के MA Political Science पाठ्यक्रम में संशोधन को लेकर विवाद

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23 जनवरी 2025 को, दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के मास्टर ऑफ आर्ट्स (MA) राजनीतिक विज्ञान कार्यक्रम में किए जा रहे पाठ्यक्रम संशोधन को लेकर एक बड़ा शैक्षणिक विवाद सामने आया। विवाद की जड़ में था विश्वविद्यालय की पाठ्यक्रम समीक्षा समिति (Syllabus Review Committee) द्वारा “जिहाद” और “आतंकवाद” जैसे संवेदनशील और विचारधारात्मक विषयों को हटाने का निर्णय। 

यह संशोधन 2024 के अंत में प्रस्तावित हुआ था, लेकिनसंशोधन की अंतिम समय सीमा 1 जुलाई 2025तय की गई, जिससे पूरे जनवरी महीने में इस पर चर्चा और बहस तेज़ रही। पाठ्यक्रम से “जिहाद”, “इस्लामिक आतंकवाद”, “राजनीतिक हिंसा”, और “राष्ट्रवाद के प्रतिरूप” जैसे कई विवादास्पद विषयों को निकालने की सिफारिश की गई, जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन ने “शैक्षणिक संरचना के तटस्थीकरण” का नाम दिया। 

हालाँकि, कई शिक्षकों, शोधार्थियों और छात्र संगठनों ने इस निर्णय को “अकादमिक सेंसरशिपकरार दिया। उनका कहना था कि राजनीतिक विज्ञान जैसे विषय में विभिन्न विचारधाराओं, धार्मिक राजनीतिक विमर्श और वैचारिक संघर्षों का अध्ययन आवश्यक है, ताकि छात्रों को विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से समझने की क्षमता मिल सके। यह भी कहा गया कि यदि इन विषयों को हटा दिया जाता है, तो यह राजनीतिक विज्ञान की बहुलतावादी समझ को सीमित कर देगा।

दूसरी ओर, विश्वविद्यालय प्रशासन और पाठ्यक्रम समिति के कुछ सदस्य मानते हैं कि इस तरह के विषयों को हटाने का निर्णय शैक्षणिक पाठ्यक्रम मेंधार्मिक या वैचारिक ध्रुवीकरण से बचावहेतु लिया गया है। उनका दावा था कि ये विषय अक्सर “राजनीतिक उद्देश्य” से प्रेरित होकर गढ़े जाते हैं और इससे अकादमिक निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े होते हैं।

इस विवाद नेशैक्षणिक स्वतंत्रता बनाम अकादमिक जिम्मेदारीकी बहस को फिर से हवा दे दी है। सोशल मीडिया से लेकर विश्वविद्यालय परिसरों तक, यह मुद्दा छात्रों और शिक्षकों के बीच बहस का प्रमुख विषय बन गया है। कई प्रतिष्ठित प्रोफेसरों और अकादमिक संगठनों ने इस संशोधन प्रक्रिया में पारदर्शिता और विचार-विमर्श की मांग की है। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग ने अभी तक अंतिम निर्णय की औपचारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन यह स्पष्ट है कि 1 जुलाई 2025 की समयसीमा तक इस बहस का असर पाठ्यक्रम निर्माण पर गहराई से पड़ेगा। यह घटना उच्च शिक्षा में विचारों की विविधता और अकादमिक संरचनाओं में संतुलन की आवश्यकता को लेकर एक गंभीर राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बन चुकी है।

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