लखनऊ, उत्तर प्रदेश
27 जुलाई 2025
उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर पार्टी के अंदर तेज़ गतिविधियां चल रही हैं। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और अब पार्टी 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए नया नेतृत्व तय करना चाहती है। संगठन के स्तर पर ज़िला इकाइयों के 50% से अधिक अध्यक्षों का चुनाव पूरा हो चुका है, जो कि प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की औपचारिकता के लिए ज़रूरी है। ऐसे में नए अध्यक्ष की घोषणा अब कभी भी हो सकती है। माना जा रहा है कि यह नियुक्ति होली के बाद की जा सकती है, ताकि त्योहार के बाद पार्टी पूरी तरह संगठनात्मक मजबूती और जातीय संतुलन के साथ आगामी चुनावों की तैयारी में जुट जाए।
विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक भाजपा हाईकमान ने छह नामों को शॉर्टलिस्ट किया है, जिनमें सबसे प्रमुख नाम पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा का है। शर्मा इस समय राज्यसभा सांसद हैं और उनका लंबा प्रशासनिक व संगठनात्मक अनुभव उन्हें एक मज़बूत दावेदार बनाता है। दूसरे चर्चित नाम रामशंकर कठेरिया का है, जो अपने आक्रामक वक्तव्यों और जुझारू नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा बी.एल. वर्मा, जो कि संगठन में लंबे समय से सक्रिय हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरा जुड़ाव रखते हैं, भी संभावित दावेदारों में माने जा रहे हैं। उनका चयन होने की स्थिति में पार्टी ओबीसी समीकरणों को मज़बूत संदेश दे सकती है।
इसके अतिरिक्त दलित और पिछड़ा वर्ग प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए विद्यासागर सोनकर और अमरपाल शर्मा जैसे नेता भी इस दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। वहीं कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि यदि भाजपा बड़े चेहरे को सामने लाना चाहती है, तो केशव प्रसाद मौर्य, जो कि मौजूदा डिप्टी सीएम हैं, को प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है। हालांकि पार्टी के अंदरुनी सूत्र इसे कम संभावना मानते हैं, क्योंकि संगठन और सरकार दोनों में एक व्यक्ति को जिम्मेदारी देना शायद पार्टी के संतुलन के सिद्धांत के विरुद्ध हो।
भाजपा का यह कदम न केवल संगठनात्मक पुनर्गठन है, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है। समाजवादी पार्टी की ओर से पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (PDA) समीकरण को उभारने की रणनीति को देखते हुए, भाजपा भी एक ऐसा नेतृत्व सामने लाना चाहती है जो न केवल संगठन को मज़बूत करे बल्कि जातीय संतुलन को भी साधे। इसलिए नए प्रदेश अध्यक्ष की जातीय पहचान, सामाजिक प्रभाव और जमीनी पकड़ इन सभी पहलुओं पर विचार किया जा रहा है। नए अध्यक्ष का चेहरा निश्चित तौर पर भाजपा के आगामी चुनावी अभियान की दिशा और स्वरूप को तय करेगा।
इस चयन प्रक्रिया के पीछे भाजपा का रणनीतिक उद्देश्य यह है कि नए प्रदेश अध्यक्ष के माध्यम से पार्टी 2027 विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार करे, और मोदी सरकार की योजनाओं को बूथ स्तर तक पहुँचाने में संगठनात्मक धार तेज़ करे। भाजपा का मानना है कि प्रदेश अध्यक्ष वह चेहरा होता है जो ज़मीनी कार्यकर्ताओं से लेकर केंद्रीय नेतृत्व के बीच सेतु की भूमिका निभाता है। इसलिए ऐसे नेता की तलाश की जा रही है जो संगठन के हर स्तर पर संवाद बना सके, कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर सके और जातीय संतुलन को भी साध सके।
संक्षेप में कहा जाए तो उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए यह नियुक्ति केवल एक संगठनात्मक निर्णय नहीं बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संकेत और रणनीतिक औजार है। चाहे अंतिम निर्णय किसी भी नाम पर हो, यह तय है कि भाजपा नेतृत्व इसे 2027 की तैयारी के लिहाज़ से एक निर्णायक क्षण के रूप में देख रहा है। पार्टी के भीतर चल रही इन चर्चाओं ने राजनीतिक गलियारों में उत्सुकता और अटकलों का बाज़ार गर्म कर दिया है — और अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा का अगला चेहरा कौन होगा।