16 जुलाई 2025
छत्तीसगढ़ की मिट्टी में नारी शक्ति की गूंज कभी दबाई नहीं जा सकी। चाहे देवी दंतेश्वरी की पूजा हो या गौरा-गौरी के पर्व, चाहे पोला में बैल के सींग रंगने वाली बेटियाँ हों या खेतों में पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी स्त्रियाँ — छत्तीसगढ़ की महिलाएं परंपरा और परिश्रम दोनों की आधारशिला रही हैं। लेकिन राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था ने उन्हें लंबे समय तक केवल “घर की लक्ष्मी” के रूप में सीमित रखा। भाजपा शासन, विशेषकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में, इस सोच को बदला। अब छत्तीसगढ़ की स्त्री केवल रसोई और रिश्तों में नहीं, राजनीति, अर्थव्यवस्था, प्रशासन, और उद्यमिता में सम्मानजनक और निर्णायक भूमिका में दिखाई दे रही है।
भाजपा शासन ने महिला सशक्तिकरण को केवल योजनाओं में नहीं, नीतियों की आत्मा में शामिल किया। राज्य में महिला सम्मान की नींव ‘नारी गरिमा और आत्मनिर्भरता’ पर रखी गई। इसके लिए सबसे पहले महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया। सखी वन स्टॉप सेंटर, महिला हेल्पलाइन 181, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान, और जननी सुरक्षा योजना को ज़मीन तक पहुंचाया गया। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं, जो पहले हर समस्या पर चुप रहती थीं, अब शिकायत दर्ज कराने, अपने अधिकार मांगने, और प्रशासन से संवाद करने में सक्षम बनी हैं।
लेकिन भाजपा शासन ने महिलाओं को केवल संरक्षण की पात्र नहीं, निर्णय की शक्ति माना। इसलिए सरकार ने सखी समूहों, महिला स्व-सहायता समूहों, और महिला ग्राम सभाओं को सशक्त बनाकर उन्हें गांव की आर्थिक रीढ़ में बदला। आज लाखों महिलाएं बायोगैस उत्पादन, सब्ज़ी उत्पादन, फूलों की खेती, बांस शिल्प, अगरबत्ती निर्माण, दूध संयंत्र, कपड़ा उद्योग, गोठानों से जुड़ी कृषि आधारित गतिविधियों में न केवल संलग्न हैं, बल्कि नेतृत्व कर रही हैं। भाजपा सरकार ने इन समूहों को बैंक लिंकेज, प्रशिक्षण, बाज़ार, ब्रांडिंग और डिजिटल लेनदेन की सुविधा दी, जिससे महिलाएं अब रोज़गार मांगने वाली नहीं, देने वाली बन रही हैं।
शासन ने यह भी समझा कि राजनीतिक सशक्तिकरण के बिना सामाजिक बदलाव अधूरा है। इसलिए पंचायतों, नगरीय निकायों, स्कूलों के प्रबंधन समितियों, महिला आयोग, और जिला योजनाओं में महिलाओं की सीधी भागीदारी को सुनिश्चित किया गया। भाजपा शासन में कई जिलों में कलेक्टर, एसपी, बीडीओ, जनपद अध्यक्ष से लेकर महिला सरपंच और पार्षदों तक की श्रृंखला ने यह दिखा दिया कि अब नेतृत्व की भाषा भी ममता, विवेक और निर्णय की दृढ़ता से लिखी जा रही है।
महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी भाजपा सरकार ने ऐतिहासिक पहल की। निःशुल्क साइकिल योजना, गर्ल्स हॉस्टल, डिजिटल लैब, और आवासीय विद्यालयों की संख्या बढ़ाकर छत्तीसगढ़ की बेटियों को मिडिल स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी तक सम्मान और सुविधा दोनों दिलाई गई। विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की छात्राओं को शिक्षा, छात्रवृत्ति, कोचिंग और प्रतियोगिता प्रशिक्षण का जो अवसर दिया गया, उसने सामाजिक संतुलन को नयी दिशा दी है।
इसके अतिरिक्त, भाजपा शासन ने महिलाओं की सांस्कृतिक भूमिका को भी सामने लाया। छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति में तीजा, हरेली, छेरछेरा, करमा और पोला जैसे पर्वों में महिलाओं की भागीदारी को केवल पारंपरिक न मानते हुए राजकीय मान्यता दी गई। इन आयोजनों में महिलाओं की भूमिका, प्रस्तुति और रचनात्मकता को मंच मिला। साथ ही, महिला कारीगरों और कलाकारों को हाट बाज़ार, GI टैग, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और अंतर्राष्ट्रीय मेलों से जोड़ने का काम भाजपा शासन ने प्राथमिकता से किया।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बार-बार कहा है कि “अगर छत्तीसगढ़ को आत्मनिर्भर बनाना है, तो उसकी महिला शक्ति को आगे लाना ही होगा।” यही कारण है कि उनके नेतृत्व में महिला विकास को केवल सामाजिक विषय नहीं, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक प्राथमिकता दी गई। परिणामस्वरूप आज छत्तीसगढ़ की बेटी साइकिल से स्कूल जाती है, बैंक लोन से कारोबार करती है, पंचायत में प्रस्ताव पारित करती है और ज़रूरत हो तो थाने जाकर रिपोर्ट भी दर्ज कराती है।
भाजपा शासन ने यह सिद्ध कर दिया है कि महिला सशक्तिकरण केवल घोषणाओं से नहीं होता, बल्कि जब शासन की नीतियों में बेटी को केंद्र में रखा जाता है, तभी एक सशक्त समाज की बुनियाद रखी जाती है। आज छत्तीसगढ़ की महिलाएं केवल परिवार नहीं, राज्य के भविष्य की योजना बना रही हैं। और यह बदलाव धीरे-धीरे नहीं, तेज़ी से गांव से लेकर राजधानी तक फैल रहा है।