Home » Chhattisgarh » छत्तीसगढ़ : भाजपा शासन में नक्सलवाद की कमर टूटी, अब बंदूकें नहीं, किताबें बोलती हैं

छत्तीसगढ़ : भाजपा शासन में नक्सलवाद की कमर टूटी, अब बंदूकें नहीं, किताबें बोलती हैं

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

6 जुलाई 2025

छत्तीसगढ़ की वह पहचान, जो कभी “लाल गलियारे” के नाम से अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में दर्ज होती थी — आज भारतीय जनता पार्टी के शासन में बदलाव की ऐसी मिसाल बन चुकी है कि बस्तर, सुकमा और बीजापुर के जंगलों में अब बंदूक नहीं, किताब की आवाज़ गूंज रही है। यह एक नारा नहीं, बल्कि नीति, नीयत और निष्कलंक प्रशासन के संयुक्त प्रयास का परिणाम है — जिसमें भाजपा सरकार ने विकास और सुरक्षा दोनों को संतुलन के साथ आगे बढ़ाया है।

पिछले एक दशक में नक्सलवाद की सबसे गहरी जड़ें बस्तर क्षेत्र में थीं। वहां जंगल की हर पगडंडी पर खून बहता था, स्कूल जलाए जाते थे, सड़कें बारूदी सुरंगों से उड़ाई जाती थीं और आम आदिवासी जनता न राज्य की थी न नक्सलियों की, वह बस शोषण का एक मूक पात्र थी। लेकिन भाजपा शासन ने यह समझा कि केवल सैन्य अभियान चलाकर नक्सलवाद की लड़ाई नहीं जीती जा सकती — यह लड़ाई विश्वास, विकास और विज़न से ही लड़ी और जीती जाएगी।

इसी सोच से जन्म हुआ भाजपा सरकार की त्रिस्तरीय रणनीति का —

  1. सख़्त सुरक्षा नीति
  2. संवेदनशील पुनर्वास नीति
  3. सतत विकास नीति

सबसे पहले, भाजपा शासन ने सुरक्षा बलों को अधिक अधिकार, बेहतर संसाधन और जन समर्थन दिया। CRPF, DRG, STF और BSF जैसी इकाइयों को बस्तर के जंगलों में जो नई तकनीक, आधुनिक हथियार और सूचना तंत्र मिले, उसने नक्सली नेटवर्क की कमर तोड़ दी। सबसे निर्णायक पहल रही — स्थानीय युवाओं की भर्ती, जिससे अब सुरक्षा बलों की वर्दी में खुद वही युवा हैं जो कल तक नक्सलवाद के शिकार थे। यह नक्सली विचारधारा को उसकी ही ज़मीन से बेदखल करने की रणनीति थी।

दूसरे चरण में, सरकार ने ‘लोन वर्राटू’ (घर लौटो) अभियान चलाकर सैकड़ों सक्रिय नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराया। यह कोई मजबूरी नहीं, बल्कि सम्मानजनक वापसी का द्वार था। आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास, रोज़गार, आर्थिक सहायता, और समाज में गरिमापूर्ण स्थान दिया गया। भाजपा सरकार ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया कि “अगर बंदूक छोड़ दो, तो सरकार तुम्हारे साथ है — लेकिन अगर देश के खिलाफ़ खड़े हो, तो जवाब भी मिलेगा।”

तीसरे और सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू में सरकार ने विकास को हथियार की जगह बना दिया। अब नक्सल क्षेत्र में सबसे बड़ा डर बंदूक का नहीं, विकास से पीछे छूटने का है। पहले जहां स्कूल नहीं थे, आज वहां डिजिटल स्मार्ट क्लास हैं। जहां अस्पताल नहीं थे, अब ‘मोबाइल मेडिकल यूनिट’ है। जहां कोई सड़क नहीं थी, वहां अब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत चौड़ी सड़कें हैं। कोंडागांव से दोरनापाल तक, अब यात्री गाड़ियों की घंटी सुनाई देती है — जो कल तक बारूदी सुरंगों के डर से सूनी थी।

भाजपा सरकार ने नक्सल इलाकों में महिला समूहों और युवाओं को विशेष प्रशिक्षण और उद्यम योजनाओं से जोड़ा है। अब वहां वन उत्पादों से जैम, चटनी, हर्बल दवाएं, बांस के फर्नीचर और हैंडीक्राफ्ट बनते हैं — जो दिल्ली, मुंबई और दुबई के बाज़ारों तक पहुंच रहे हैं। यही आत्मनिर्भर भारत की जड़ें हैं, जो जंगल की मिट्टी से उपज रही हैं।

अब यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भाजपा शासन ने छत्तीसगढ़ को ‘लाल विचारधारा’ से मुक्त कर, राष्ट्रवादी चेतना की ओर मोड़ दिया है।’ आज वहां के आदिवासी बच्चे NDA और IIT के फॉर्म भरते हैं, लड़कियां मोबाइल पर पढ़ती हैं, और गांवों में जनधन खातों के ज़रिए महिला सशक्तिकरण को नई दिशा मिल रही है।

छत्तीसगढ़ में अब बंदूक की भाषा नहीं चलती, बस्तर की बोली में विकास की बात होती है। भाजपा ने साबित कर दिया कि सत्ता में आने के बाद सिर्फ़ पुलिस भेजना काफी नहीं होता, विश्वास लेकर चलना पड़ता है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा का शासन सिर्फ़ एक पार्टी का शासन नहीं, एक सोच का शासन है — जो बदलाव को ठोस स्वरूप में साकार कर रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *