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नोएडा की रुकी परियोजनाओं में बड़ी राहत: ओमेक्स को 25 करोड़ जमा करने और 50 अतिरिक्त फ्लैट जारी करने का हाईकोर्ट का निर्देश

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उत्तर प्रदेश में नोएडा की बहुचर्चित रुकी हुई आवासीय परियोजनाओं को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए ओमेक्स बिल्डहोम लिमिटेड को दो सप्ताह के भीतर ₹25 करोड़ जमा करने और फ्लैट खरीदारों के पक्ष में पहले से मुक्त किए गए 170 फ्लैटों के अतिरिक्त 50 और फ्लैट जारी करने का आदेश दिया है। यह निर्देश हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने तरुण कपूर अन्य 29 फ्लैट खरीदारों की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फ्लैट खरीदारों के हितों की सुरक्षा सर्वोपरि है और लंबित परियोजनाओं को समयबद्ध रूप से पूरा करना बिल्डर की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है। 

मामला नोएडा की ग्रैंड ओमेक्स और फॉरेस्ट स्पा नामक दो बड़ी आवासीय परियोजनाओं से जुड़ा है, जो ओमेक्स बिल्डहोम लिमिटेड द्वारा विकसित की जा रही थीं। इन परियोजनाओं में कई खरीदारों ने फ्लैट की पूरी कीमत चुकाने के बावजूद त्रिपक्षीय समझौते नहीं मिल पाने की शिकायत की थी। नोएडा प्राधिकरण ने यह कहकर रोक लगा दी थी कि बिल्डर लीज समझौते के अंतर्गत ₹250 करोड़ की बकाया राशि का भुगतान नहीं कर पाया है। हाईकोर्ट ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए बिल्डर को नोटिस जारी किया था कि जब तक वह पूरा बकाया नहीं चुकाता, नोएडा प्राधिकरण को किसी भी परियोजना के लिए अधिभोग या पूर्णता प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। 

बिल्डर ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन एसएलपी (स्पेशल लीव पिटिशन) को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिससे हाईकोर्ट का निर्देश प्रभावी बना रहा। इस बीच, राज्य सरकार द्वारा एनसीआर क्षेत्र में अटकी परियोजनाओं को गति देने के लिए शुरू की गई योजना के तहत ओमेक्स ने पहले चरण में ₹93 करोड़ यानी कुल बकाया का 25% जमा करा दिया। इसके बाद 678 लंबित फ्लैटों में से 170 फ्लैट मुक्त कर दिए गए और कोर्ट ने इनके लिए सबलीज डीड निष्पादित करने का आदेश भी दे दिया। 

हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान बिल्डर की ओर से प्रस्तुत वकील ने यह प्रस्ताव रखा कि यदि नोएडा प्राधिकरण 50 और फ्लैटों को जारी करने की अनुमति देता है, तो बिल्डर ₹25 करोड़ की अतिरिक्त राशि जमा करने को तैयार है। चूंकि प्राधिकरण की ओर से इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं जताई गई, इसलिए कोर्ट ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। आदेश में स्पष्ट किया गया कि फ्लैटों के संबंध में क्रेताबिल्डर समझौते की तिथि या आवंटन की तिथि के आधार पर खरीदारों की सूची प्रस्तुत की जाए, और उन्हीं के आधार पर सबलीज डीड निष्पादित किए जाएं। 

फ्लैट खरीदारों के वकीलों ने इस मामले को लंबित रखने की मांग की ताकि डेवलपर और नोएडा प्राधिकरण से स्थिति रिपोर्ट मंगाई जा सके। इस पर न्यायालय ने पहले के अंतरिम आदेश को संशोधित करते हुए नोएडा प्राधिकरण को अगली सुनवाई की तारीख पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया। 

यह आदेश केवल नोएडा क्षेत्र के फंसे हुए होम बायर्स के लिए राहत की सांस है, बल्कि पूरे NCR क्षेत्र में रुकी परियोजनाओं के पुनर्जीवन की संभावनाओं को भी बल प्रदान करता है। साथ ही, यह आदेश निर्माण कंपनियों के लिए एक चेतावनी भी है कि परियोजनाओं की जिम्मेदारी से पलायन करने का कोई विकल्प नहीं है और न्यायपालिका जनहित के साथ पूरी मजबूती से खड़ी है। 

इस फैसले से यह संकेत भी गया है कि सरकार और न्यायालय दोनों मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि आम जनता की गाढ़ी कमाई से खरीदे गए घर सिर्फ सपनों तक सीमित रह जाएं, बल्कि हकीकत बनकर जल्दी उनके जीवन का हिस्सा बनें। 

 

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