भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी जून 2025 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report – FSR) में इस बात पर विशेष ज़ोर दिया गया कि वैश्विक वित्तीय अस्थिरता और भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद भारत की वित्तीय प्रणाली न केवल स्थिर और लचीली बनी हुई है, बल्कि वैश्विक विकास को गति देने में भी एक केंद्रीय भूमिका निभा रही है। इस रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों के अनुसार, देश के बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (NBFCs) मजबूत बैलेंस शीट के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जिससे घरेलू वित्तीय प्रणाली में स्थायित्व और आत्मविश्वास बना हुआ है।
रिपोर्ट की प्रस्तावना में RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट रूप से कहा कि वित्तीय स्थिरता, ठीक उसी तरह जैसे मूल्य स्थिरता, देश की आर्थिक वृद्धि का अनिवार्य आधार है। हालांकि यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है, लेकिन इसके बिना विकास की राह लंबे समय तक टिकाऊ नहीं रह सकती। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत की मौजूदा आर्थिक नीति, घरेलू खपत, निवेश और पूंजी प्रवाह जैसे मजबूत आंतरिक कारकों के कारण वैश्विक मंदी के प्रभावों को मात दे रही है और भारत, विश्व अर्थव्यवस्था में स्थिरता और पुनरुद्धार का प्रमुख वाहक बनकर उभरा है।
RBI की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि बैंकों की स्थिति दशकों में सबसे मजबूत है। इसमें मजबूत पूंजी बफर, कम NPA (गैर–निष्पादित परिसंपत्तियां) और उच्च लाभप्रदता को इसका मुख्य आधार बताया गया। रिपोर्ट के अनुसार, मैक्रो स्ट्रेस टेस्ट के विभिन्न परिदृश्यों में भी अधिकतर बैंक संकट की स्थिति में खुद को बचाए रखने के लिए पर्याप्त पूंजी बफर रखते हैं। यह उन बैंकों की न केवल वर्तमान सुदृढ़ता का प्रमाण है, बल्कि भविष्य की अनिश्चित परिस्थितियों में उनकी स्थायित्व क्षमता को भी उजागर करता है।
सिर्फ बैंकिंग क्षेत्र ही नहीं, बल्कि म्यूचुअल फंड, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और अन्य वित्तीय मध्यस्थ संस्थान भी स्थिर बने हुए हैं। इस रिपोर्ट ने देश की पूरी वित्तीय प्रणाली को “प्रगतिशील रूप से लचीली” बताया है। यह विश्वास इस बात से उपजा है कि भारत की बैंकिंग प्रणाली ने पूर्व के वित्तीय संकटों से सबक लेकर संरचनात्मक सुधार किए हैं, जिससे आज वह वैश्विक मानकों पर खरी उतर रही है।
गवर्नर मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति की दिशा और मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण पर भी संतुलित विचार रखे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मुद्रास्फीति का परिदृश्य अब अपेक्षाकृत सौम्य है और RBI के लक्ष्य के अनुरूप टिकाऊ संरेखण की ओर अग्रसर है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत में मौद्रिक नीति अब संतुलन की ओर बढ़ रही है, जहां महंगाई और विकास के बीच संतुलन साधा जा रहा है।
हालांकि, गवर्नर ने कुछ चिंताओं की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि भले ही घरेलू आर्थिक स्थिति मजबूत है, लेकिन बाहरी कारकों जैसे वैश्विक आर्थिक मंदी, आपूर्ति श्रृंखला बाधाएं, और जलवायु–संबंधी घटनाएं भारत की विकास गति के लिए नकारात्मक जोखिम उत्पन्न कर सकती हैं। उन्होंने नीति निर्माताओं को आगाह किया कि इन स्पिलओवर प्रभावों को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक रणनीति बनाना ज़रूरी होगा।
एफएसआर 2025 की रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संदेश लेकर आई है। यह केवल आंकड़ों की किताब नहीं, बल्कि उस विश्वास और स्थिरता का प्रतिबिंब है जो भारत ने पिछले एक दशक में अपने वित्तीय संस्थानों के माध्यम से अर्जित किया है। वैश्विक पटल पर जब अधिकांश देश वित्तीय अस्थिरता से जूझ रहे हैं, तब भारत एक “स्थिरता के स्तंभ” की तरह खड़ा है, जो न केवल अपनी जनता का आर्थिक संरक्षण कर रहा है, बल्कि वैश्विक साझेदारों के लिए भी विकास का प्रेरक बन चुका है।
इस रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया कि भारत की आर्थिक कहानी केवल जीडीपी आंकड़ों तक सीमित नहीं, बल्कि उसकी नीतिगत समझदारी, संरचनात्मक मजबूती और वैश्विक भूमिका तक फैली हुई है — और आने वाले समय में यह भूमिका और भी बड़ी हो सकती है।