उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने जहां देश को चौंकाया, वहीं इस पूरे घटनाक्रम से ठीक पहले की उनकी गतिविधियों ने राजनीतिक अटकलों को और भी हवा दे दी है। 22 जुलाई की रात को धनखड़ ने कोई पूर्व सूचना या तयशुदा समय दिए बिना राष्ट्रपति भवन का दौरा किया। यह ‘अनशेड्यूल्ड विजिट’ रात 9:00 बजे हुई, और वे सिर्फ 25 मिनट के भीतर, यानी 9:25 बजे राष्ट्रपति भवन से निकल गए। इसके तुरंत बाद उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया।
इस अनपेक्षित और बेहद सीमित समय की मुलाकात को लेकर राष्ट्रपति भवन के प्रशासनिक गलियारों में भी असहजता रही। यह दौरा न किसी आधिकारिक रिकॉर्ड में पहले से दर्ज था, न ही प्रोटोकॉल के तहत तयशुदा था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस दौरे की जानकारी बिलकुल अंतिम समय में दी गई, और इसके पीछे किसी तत्काल परिस्थिति या निजी आग्रह की झलक थी।
धनखड़ ने राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंपने से पहले इस मुलाकात में व्यक्तिगत चर्चा की। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया। उनके अनुसार, चिकित्सकों की सलाह के अनुसार उन्हें सक्रिय राजनीति और सार्वजनिक जिम्मेदारियों से कुछ समय के लिए दूरी बनानी चाहिए। हालांकि, जिस प्रकार उन्होंने संवैधानिक रूप से दूसरे सर्वोच्च पद से इस्तीफा दिया और उससे पहले राष्ट्रपति से निजी मुलाकात की, वह अपने आप में गंभीर राजनीतिक संकेत देता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, और वे हाल के समय में न केवल राज्यसभा की कार्यवाही को लेकर सक्रिय थे, बल्कि कई बार सरकार की नीतियों पर सहमति और कुछ मामलों में टिप्पणी करते नज़र आए थे। कुछ जानकारों का कहना है कि इस इस्तीफे की टाइमिंग, प्रक्रिया और गोपनीयता यह संकेत देती है कि यह केवल स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं हो सकता।
क्या यह कोई नया राजनीतिक मोड़ है? क्या धनखड़ को किसी अन्य बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जा रहा है या उन्होंने किसी अंतर-संघर्ष की वजह से यह कदम उठाया? अभी इन सवालों के जवाब आने बाकी हैं, लेकिन इस रात 9 बजे शुरू हुई मुलाकात और 9:25 पर खत्म हुई चुप्पी ने सियासी गलियारों में हलचल ज़रूर मचा दी है।
राष्ट्रपति भवन से जारी आधिकारिक बयान में केवल त्यागपत्र स्वीकारने की पुष्टि की गई है। अब नया उपराष्ट्रपति कौन होगा, इस पर राजनीतिक पार्टियों में रणनीतिक विमर्श शुरू हो चुका है। मगर एक बात साफ है — धनखड़ का यह अचानक और ‘अनशेड्यूल्ड’ इस्तीफा भारतीय राजनीति के इतिहास में एक अनूठा और चर्चा का विषय बन गया है।