नई दिल्ली
18 जुलाई 2025
द्वारका थाना कस्टडी में युवक की संदिग्ध मौत पर मानवाधिकार आयोग सख्त
दिल्ली के द्वारका नॉर्थ थाना क्षेत्र में कथित पुलिस प्रताड़ना के बाद एक युवक द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को झकझोर कर रख दिया है। आयोग ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया है और दो हफ्तों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
मामला 11 जुलाई 2025 का है, जब नांगली विहार निवासी एक युवक ने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पीड़ित गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (IP यूनिवर्सिटी) में संविदा कर्मी के रूप में काम कर रहा था। पुलिस ने उसे 10 जुलाई को एक महिला सुपरवाइज़र की शिकायत के आधार पर चोरी के आरोप में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था।
आरोप: बिजली के झटके और शारीरिक उत्पीड़न के निशान
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़ित के शरीर पर मारपीट के स्पष्ट निशान थे। यहां तक कि उसके कान पर सूजन थी, जो बिजली के झटके दिए जाने का संकेत देती है। पीड़ित के परिजनों ने उसे द्वारका स्थित एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया था, जहां से उसे इंदिरा गांधी अस्पताल रेफर किया गया। हालांकि, अगले दिन युवक अपने घर में फंदे से लटका मिला।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि घटनास्थल से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है, जिसमें युवक ने कथित रूप से पुलिस प्रताड़ना का ज़िक्र किया है। अगर यह आरोप सही सिद्ध होते हैं, तो यह मामला मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की ओर इशारा करता है।
NHRC की सख्त टिप्पणी और नोटिस
NHRC ने कहा है कि यदि मीडिया रिपोर्ट में दर्शाई गई बातें सत्य हैं, तो यह पुलिस हिरासत में बर्बरता और गैर-कानूनी व्यवहार का गंभीर मामला बनता है। आयोग ने इस विषय पर गंभीर चिंता जताई है और दिल्ली पुलिस कमिश्नर से दोषियों की पहचान, मेडिकल रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, सीसीटीवी फुटेज, और जांच की प्रगति संबंधी संपूर्ण रिपोर्ट मांगी है।
यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है जब देश भर में पुलिस हिरासत में उत्पीड़न और मौतों की घटनाएं चिंता का विषय बनी हुई हैं। NHRC पहले भी कई मामलों में सख्त रुख अपना चुकी है और पुलिस सुधारों की आवश्यकता पर जोर दे चुकी है।
परिजनों की पुकार और न्याय की मांग
पीड़ित के परिवार ने आरोप लगाया है कि युवक निर्दोष था और केवल एक झूठे आरोप के आधार पर बेरहमी से पीटा गया। परिजनों का कहना है कि पुलिस ने उसे मानसिक रूप से इतना तोड़ा कि वह आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो गया। उन्होंने NHRC से कड़ी कार्रवाई की मांग की है और दोषी अधिकारियों के खिलाफ हत्या के तहत मामला दर्ज करने की अपील की है।
सवालों के घेरे में दिल्ली पुलिस
यह मामला अब केवल आत्महत्या का नहीं रह गया, बल्कि यह पुलिस हिरासत में पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण के व्यापक सवाल खड़े करता है। क्या पुलिस को किसी भी संदेह के आधार पर व्यक्ति को इस तरह प्रताड़ित करने का अधिकार है? क्या हिरासत में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन आम बात बन चुकी है?
अब सबकी नजर NHRC की अगली कार्रवाई और दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट पर टिकी है। अगर इस मामले में समयबद्ध और निष्पक्ष कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला एक बड़े जनआंदोलन का रूप ले सकता है।
दिल्ली के दिल दहला देने वाले इस मामले ने पुलिस और कानून-व्यवस्था की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। NHRC की हस्तक्षेप से पीड़ित परिवार को न्याय मिलने की एक किरण जरूर जगी है, लेकिन जब तक दोषियों को सज़ा नहीं मिलती, तब तक यह मामला केवल एक और ‘स्टेटिस्टिक्स’ बनकर रह जाएगा।