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भारत ने रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय ढांचे की पुनर्बहाली पर अपनाया सतर्क रुख, भूराजनीतिक संतुलन की रणनीति स्पष्ट

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नई दिल्ली

18 जुलाई 2025

भारत ने रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय ढांचे को फिर से सक्रिय करने के प्रस्ताव पर अब तक कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं जताई है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भले ही मॉस्को इस मंच को फिर से मजबूत करने का इच्छुक है, लेकिन भारत इस समय “वेट एंड वॉच” (प्रतीक्षा और मूल्यांकन) की नीति अपना रहा है।

यह रुख उस समय आया है जब यूक्रेन युद्ध, भारत-चीन सीमा तनाव, और वैश्विक भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के चलते अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गठजोड़ों की नई परिभाषा उभर रही है।

RIC: एक पुराना मंच, नई उलझनें

रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय संवाद की शुरुआत 2002 में हुई थी, और इसने कई वर्षों तक क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श का मंच प्रदान किया। लेकिन 2020 के बाद, खासकर गलवान घाटी संघर्ष और भारत-चीन संबंधों में आई दरार के बाद इस मंच की सक्रियता लगभग ठप हो गई।

अब जब रूस इसे पुनर्जीवित करना चाहता है — संभवतः पश्चिमी प्रतिबंधों और चीन की बढ़ती निकटता के चलते — भारत का अनौपचारिक जवाब यह है कि “यह समय इस मंच के पुनर्जीवन के लिए उपयुक्त नहीं है।”

भारत की रणनीति: बहुपक्षीय मंचों का तटस्थ संतुलन

भारत ने हाल के वर्षों में QUAD (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया), IBSA, BRICS, SCO, और G20 जैसे मंचों पर सक्रिय भागीदारी दिखाई है। लेकिन जब बात RIC जैसे मंचों की आती है, जिनमें सीधे रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन शामिल है, भारत सतर्क रवैया अपनाता है।

विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत चीन के साथ सीमाई तनाव सुलझे बिना किसी भी ‘पॉलिटिकल ऑप्टिक्स’ में जाने से बचना चाहता है, ताकि उसकी रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक संतुलनकारी भूमिका बनी रहे।

रूस की भूमिका: मजबूरी या अवसर?

रूस इस समय पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहा है और उसके लिए भारत और चीन के बीच पुल बनने की भूमिका भले सामरिक दृष्टि से आकर्षक हो, लेकिन भारत इस भूमिका को स्वतंत्र भू-राजनीतिक निर्णयों की कसौटी पर तौल रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा सहयोग को प्राथमिकता देता है, लेकिन वह चीन के साथ त्रिपक्षीय मंचों में खुला संवाद फिलहाल नहीं चाहता।

 न तो इनकार, न ही इकरार

भारत का रुख स्पष्ट है — RIC को लेकर कोई जल्दबाज़ी नहीं, जब तक चीन के साथ मूलभूत मुद्दों का समाधान नहीं हो जाता। यह भारत की विदेश नीति में संतुलन, सतर्कता और संप्रभु प्राथमिकताओं को दर्शाता है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या रूस भारत को मनाने में सफल होता है या भारत इस मंच को धीरे-धीरे अप्रासंगिक मानकर किनारे कर देता है।

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