बीजिंग/नई दिल्ली
18 जुलाई 2025
दुनियाभर में हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) को भविष्य की ऊर्जा प्रणाली का आधार माना जा रहा है। इस दौड़ में चीन सबसे आगे निकल गया है — चाहे बात सोलर पैनल निर्माण की हो, विंड टरबाइन उत्पादन की, ग्रीन हाइड्रोजन पर निवेश की या इलेक्ट्रिक वाहनों के विस्तार की। चीन की यह बढ़त केवल तकनीक पर नहीं, बल्कि उसकी रणनीतिक नीति, भारी निवेश और वैश्विक बाजार पर नियंत्रण की बदौलत है।
- सोलर एनर्जी: ‘मेड इन चाइना’ का दबदबा
वर्तमान में चीन दुनिया के 80% से अधिक सोलर पैनलों का उत्पादन करता है। इसके अलावा सोलर पैनल निर्माण में प्रयोग होने वाले पॉलीसिलिकॉन का भी सबसे बड़ा उत्पादक वही है। इस क्षेत्र में चीन ने सरकारी सब्सिडी, भूमि की उपलब्धता और टेक्नोलॉजी इनोवेशन के ज़रिए कंपनियों को जबरदस्त बढ़ावा दिया है।
- पवन ऊर्जा (Wind Energy): समुद्र से रेगिस्तान तक विस्तार
चीन ने विंड टरबाइनों के निर्माण और स्थापना में भी दुनिया को पीछे छोड़ दिया है। ऑफशोर विंड प्रोजेक्ट्स में चीन की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है और इसके रेगिस्तानी क्षेत्रों में गिगावाट स्तर के विंड फार्म्स स्थापित किए गए हैं।
- ग्रीन हाइड्रोजन और बैटरी तकनीक में भी लीडरशिप
ग्रीन हाइड्रोजन को अगली क्रांति माना जा रहा है, और चीन ने इस दिशा में भी अरबों डॉलर का निवेश कर दिया है। वहीं लीथियम-आयन बैटरियों के निर्माण में चीन का नियंत्रण 70% से अधिक है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग पर उसकी सीधी पकड़ बनी हुई है।
- ग्लोबल निवेश और आपूर्ति श्रृंखला पर नियंत्रण
चीन न केवल घरेलू उत्पादन बढ़ा रहा है, बल्कि वह दक्षिण एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लैटिन अमेरिका में भी हरित ऊर्जा प्रोजेक्ट्स में निवेश कर रहा है। Belt and Road Initiative के तहत चीन ने कई देशों में सोलर और पवन ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की हैं, जिससे वह वैश्विक ग्रीन एनर्जी सप्लाई चेन का हिस्सा और नेता बन चुका है।
- क्या बाकी देश पीछे हैं?
अमेरिका, यूरोपीय संघ और भारत जैसे देश भी ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में तेजी से काम कर रहे हैं, लेकिन तकनीकी उत्पादन क्षमता, निवेश की तीव्रता और स्केल में वे अभी भी चीन से पीछे हैं। हालांकि, चीन पर निर्भरता को कम करने के प्रयास भी शुरू हो चुके हैं, जिसमें भारत की ‘आत्मनिर्भर सौर मिशन’ और यूरोपीय यूनियन की Green Deal प्रमुख हैं।
चीन की तैयारी, दुनिया की चुनौती
चीन ने यह साबित कर दिया है कि ग्रीन एनर्जी केवल पर्यावरण की आवश्यकता नहीं, बल्कि रणनीतिक शक्ति का माध्यम भी है। उसकी रणनीति साफ है: हरित तकनीक में पहले निवेश करो, वैश्विक बाजार पर नियंत्रण बनाओ और आने वाले दशक की ऊर्जा राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाओ।अब सवाल यह है कि बाकी दुनिया क्या चीन की इस हरित छलांग को पकड़ पाएगी या उससे प्रतिस्पर्धा कर पाएगी? अगला दशक इसी सवाल का जवाब देगा।