नई दिल्ली
18 जुलाई 2025
दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एक जांच पैनल की रिपोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह रिपोर्ट न्यायिक आचरण से संबंधित एक गंभीर मामले में तैयार की गई थी, जिसे लेकर जस्टिस वर्मा ने न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न उठाए हैं।
क्या है मामला?
पिछले कुछ महीनों से एक आंतरिक प्रशासनिक जांच समिति द्वारा जस्टिस वर्मा के कुछ निर्णयों और उनके कथित व्यवहार की समीक्षा की जा रही थी। रिपोर्ट में कुछ टिप्पणियां और निष्कर्ष ऐसे बताए जा रहे हैं जो जस्टिस वर्मा की प्रतिष्ठा और न्यायिक निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं।
हालांकि रिपोर्ट की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में कुछ “व्यक्तिगत स्तर की आलोचनात्मक टिप्पणियां” शामिल हैं, जिससे जस्टिस वर्मा आहत हैं और उन्होंने इसे “अन्यायपूर्ण एवं पक्षपातपूर्ण” करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
जस्टिस यशवंत वर्मा ने अब इस रिपोर्ट के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। उन्होंने अपनी याचिका में न्यायाधीशों की स्वतंत्रता, गरिमा और निष्पक्षता की रक्षा की मांग करते हुए कहा है कि इस तरह की रिपोर्ट न केवल उनकी छवि को ठेस पहुंचाती है, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र की विश्वसनीयता को भी प्रभावित कर सकती है।
न्यायपालिका में हलचल, बार एसोसिएशन की नजरें टिकीं
इस मामले को लेकर देश के वरिष्ठ वकीलों और बार काउंसिल्स की नजरें अब सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं। कई कानूनी विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर यह याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली जाती है, तो इससे न्यायाधीशों की आंतरिक जवाबदेही बनाम उनकी स्वतंत्रता के बीच की रेखा को लेकर नई बहस शुरू हो सकती है।
जस्टिस यशवंत वर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट का रुख करना भारतीय न्यायपालिका के भीतर एक असामान्य लेकिन महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। इससे न केवल एक वरिष्ठ न्यायाधीश के अधिकारों की रक्षा का सवाल जुड़ा है, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र की पारदर्शिता, स्वतंत्रता और विश्वसनीयता पर भी एक बार फिर राष्ट्रीय बहस छिड़ सकती है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है।