चेन्नई, तमिलनाडु
17 जुलाई 2025
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कड़ी नाराज़गी जताई जब यह तथ्य सामने आया कि अनुसूचित जाति (SC) समुदाय के लोगों को सार्वजनिक नल से पानी भरने के लिए दूसरे नंबर पर खड़ा रहना पड़ता है, जबकि अन्य समुदायों के लोग पहले पानी भरते हैं।
जस्टिस आर.एन. मंजुला ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “यह आश्चर्यजनक और दयनीय है कि इतने वैज्ञानिक और तकनीकी युग में भी कुछ समुदायों को सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग में पीछे रखा जा रहा है।”
हाईकोर्ट ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि देश में कमजोर वर्गों की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाए गए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थितियाँ अब भी नहीं बदली हैं।
कोर्ट की चिंता: कानून के बावजूद ज़मीनी सच्चाई नहीं बदली
जस्टिस मंजुला ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संविधान में समानता और गरिमा की गारंटी के बावजूद आज भी अनुसूचित जाति समुदाय को पानी जैसी बुनियादी सुविधा के लिए भेदभाव सहना पड़ता है। उन्होंने इसे सामाजिक अन्याय और मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया।।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ कानून बनाना काफी नहीं, जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी और हर नागरिक को समानता का व्यवहार नहीं मिलेगा।
पृष्ठभूमि और निर्देश
यह टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिसमें यह आरोप था कि कुछ गांवों में दलित समुदाय के लोगों को पानी भरने के लिए जानबूझकर देर से बुलाया जाता है या उन्हें बाद में पानी भरने की अनुमति दी जाती है। हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और स्थानीय प्रशासन से इस संबंध में तथ्यात्मक रिपोर्ट और सुधारात्मक कदमों की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने साफ किया कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक असफलता नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन है|