फीनिक्स (एरिज़ोना), अमेरिका
16 जुलाई 2025
नेकदिल शख्स को कानूनी जंग के लिए चाहिए 50,000 डॉलर
कई साल पहले एक फिल्म आई थी ‘खोसला का घोंसला’, जिसमें एक मजेदार लेकिन बहुत गूढ़ गाना था—
“ये दुनिया उट पटांगा, किथ हाथ ते किथे टांगा, रत कुकड़ी देन्दी बांगा, ऐ दे चक दे फट्टे…” और आगे, “ये दुनिया मस्त कलंदर, ता उत्ते बैठा बंदर, समझे अपणु सिकंदर…”
ये बोल उस समय भले ही मनोरंजन के लिए लिखे गए हों, लेकिन आज भी सटीक बैठते हैं। खासतौर पर उस इंसान के लिए जो सिर्फ एक इंसानी फ़र्ज़ निभा रहा था — प्यासों को पानी पिला रहा था। पर अब उसपर न केवल जुर्माना लगा है, बल्कि उसे अपनी “नेकी” के लिए अदालत में 50,000 डॉलर खर्च करने की ज़रूरत पड़ रही है। ये घटना बताती है कि दुनिया सच में उटपटांग है, जहां इंसानियत की जगह कायदे-कानूनों की सख्ती भारी पड़ जाती है।
मानवीय सेवा या नियमों की अवहेलना? एरिज़ोना में HOA के फैसले पर उठे सवाल
अमेरिका के एरिज़ोना राज्य में रहने वाले एक व्यक्ति को अपने घर के सामने प्यासों के लिए मुफ्त पानी का कूलर रखने पर भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। मकसद था जरूरतमंदों को गर्मी से राहत देना, लेकिन स्थानीय हाउसिंग सोसाइटी (HOA – Homeowners Association) ने इसे नियमों का उल्लंघन मानते हुए उस पर जुर्माना ठोक दिया। अब यह व्यक्ति मानवीय सेवा के अधिकार की रक्षा के लिए अदालत में लड़ाई लड़ रहा है और इसके लिए उसे 50,000 डॉलर की जरूरत है।
यह मामला तब सामने आया जब इस व्यक्ति ने एरिज़ोना की भीषण गर्मी को देखते हुए अपने ड्राइववे पर एक कूलर रख दिया, जिसमें राहगीरों और बेसहारा लोगों के लिए ठंडा पानी उपलब्ध था। लेकिन जल्द ही स्थानीय हाउसिंग एसोसिएशन की आपत्ति आई और उसे नोटिस जारी कर दिया गया कि यह उसकी संपत्ति पर “अनधिकृत वस्तु” है जो मोहल्ले की दृश्य-शुद्धता (aesthetic uniformity) के नियमों का उल्लंघन करती है। एसोसिएशन ने चेतावनी के साथ जुर्माना भी लगा दिया। इस फैसले ने न केवल स्थानीय नागरिकों में, बल्कि पूरे अमेरिका में बहस को जन्म दे दिया है कि क्या मानवीय करुणा भी अब क़ानूनी शिकंजे में फंस चुकी है?
कूलर रखने वाले शख्स ने कहा, “मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि लोगों को मुफ्त पानी देना मेरे लिए मुसीबत बन जाएगा। मेरे लिए यह एक नैतिक ज़िम्मेदारी थी – एरिज़ोना में गर्मी 45 डिग्री सेल्सियस पार कर जाती है, और कई बार प्यास से जान चली जाती है। अगर मैं पानी नहीं रखता, तो शायद किसी की जान भी जा सकती थी।” अब वह सोशल मीडिया और जनसमर्थन के माध्यम से 50,000 डॉलर इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा है ताकि वह कोर्ट में HOA के इस फैसले को चुनौती दे सके।
इस मामले ने अमेरिका में स्थानीय प्रशासन और HOAs की सीमाओं और अधिकारों पर नई बहस छेड़ दी है। क्या नियमों के नाम पर इंसानियत को रोका जा सकता है? क्या सार्वजनिक हित और करुणा की भावना निजी संहिताओं से बड़ी होनी चाहिए? अमेरिका के कई सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार संगठन इस व्यक्ति के समर्थन में आ गए हैं।
इस घटना ने पूरी दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जब एक देश में मुफ्त पानी देने पर जुर्माना लगाया जाता है, तो हमें फिर से यह विचार करना होगा कि हमारी व्यवस्थाएं किस दिशा में जा रही हैं। क्या मानवीय मूल्यों को संरक्षित रखने के लिए भी अब कानूनी लड़ाइयाँ लड़नी पड़ेंगी? क्या नेकी करने का अर्थ अब सिर्फ किताबों तक सीमित रह गया है?
इस खबर का सार यही है — एक आदमी ने प्यासों को पानी पिलाया, अब उसी को पसीना बहाकर न्याय मांगना पड़ रहा है। और हम सब को फिर से गाने का मन होता है— “चक दे, चक दे फट्टे…”