नई दिल्ली
16 जुलाई 2025
कांवड़ यात्रा के दौरान रास्ते में लगने वाली खाद्य दुकानों और स्टॉल्स पर QR कोड लगाने की खबरों को लेकर अब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। इस मुद्दे पर कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है और पूछा है—क्या सच में दुकानदारों को QR कोड लगाने के लिए बाध्य किया जा रहा है? अगर हां, तो इसकी वजह क्या है और क्या इसमें किसी धार्मिक स्वतंत्रता या आजीविका के अधिकार का हनन हो रहा है?
यह मामला एक याचिका के ज़रिए कोर्ट के सामने आया, जिसमें कहा गया कि कांवड़ मार्ग पर लगे कई छोटे दुकानदारों से प्रशासन QR कोड लगाने की मांग कर रहा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि अधिकतर दुकानदार ग्रामीण और छोटे व्यापारी हैं, जिनके पास डिजिटल ढांचा या तकनीकी जानकारी नहीं है। ऐसे में QR कोड जैसी शर्त उनके लिए रोज़ी-रोटी पर असर डाल सकती है।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए कहा, “श्रद्धालुओं को सुविधा देना ज़रूरी है, लेकिन साथ ही छोटे दुकानदारों के अधिकारों की भी रक्षा होनी चाहिए। सरकार स्पष्ट करे कि इस नीति का मकसद क्या है।”
सरकारी पक्ष का तर्क है कि यह कदम सुरक्षा और पारदर्शिता के लिहाज़ से उठाया गया है, ताकि यात्रा मार्ग पर लगने वाले खाद्य स्टॉल्स की पहचान हो सके और कोई अनियमितता या संदिग्ध गतिविधि न हो। हालांकि कोर्ट ने साफ कर दिया कि जब तक संतुलन की नीति नहीं बनेगी, तब तक कोई बाध्यता नहीं थोपी जा सकती।
अब सभी की निगाहें यूपी सरकार के उस जवाब पर टिकी हैं, जो वह आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करेगी। कांवड़ यात्रा धार्मिक आस्था से जुड़ी एक बड़ी परंपरा है और ऐसे में प्रशासनिक उपायों और श्रद्धालुओं की सेवा के बीच संतुलन बनाना बड़ी चुनौती है।