नई दिल्ली / पटना
16 जुलाई 2025
बिहार इस समय एक ऐसे भयानक सामाजिक और प्रशासनिक संकट से गुजर रहा है, जिसे शब्दों में बयां करना कठिन होता जा रहा है। कभी ‘सुशासन बाबू’ के नाम से विख्यात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज अपने ही शासन में उत्पन्न जंगलराज के सामने लाचार और मूकदर्शक नजर आ रहे हैं। यह कोई राजनीतिक आरोप नहीं बल्कि जमीनी हकीकत है, जिसे आंकड़े, हत्याएं और सड़कों पर बिखरे खून के धब्बे चीख-चीख कर बयान कर रहे हैं। पिछले 13 दिनों में 50 से अधिक हत्याएं, व्यापारियों और सरकारी कर्मचारियों को दिनदहाड़े मार देना और पुलिस का ढीला रवैया—ये सब बिहार की उस बदनाम छवि को वापस ला रहे हैं, जिससे कभी इस राज्य ने छुटकारा पाने का दावा किया था। आज जब चुनाव नजदीक हैं, तब सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या जनता इस बार भी भरोसा करेगी उस शासन पर जो उन्हें न जीने की गारंटी दे सकता है, न मरने की इज्जत?
खून से भीगी धरती और सड़ी हुई व्यवस्था:
बिहार की मिट्टी इस समय खून से रंगी हुई है, और इस रंग में कोई शौर्य नहीं बल्कि लाचारी, पीड़ा और प्रशासनिक नाकामी छिपी हुई है। हत्या अब अपवाद नहीं, बल्कि दिनचर्या बन गई है। जिन गांवों में कभी शाम होते ही चूल्हे जलते थे, वहां अब घरों के दरवाजे अंधेरे से पहले ही बंद हो जाते हैं। जिन बाजारों में कभी चहल-पहल होती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा है। और यह सब किसी युद्ध के कारण नहीं, बल्कि एक लचर और ढीली पड़ चुकी प्रशासनिक व्यवस्था की वजह से हो रहा है, जिसमें न तो पुलिस को अपराधियों से डर है, न ही अपराधियों को कानून से। अपराधी खुलेआम गोली मारते हैं, वीडियो बनते हैं, और पुलिस थाने में बैठकर ‘जांच चल रही है’ का रट्टा मारती रहती है।
तेजस्वी यादव का तीर सीधा दिल पर:
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस पूरी स्थिति पर बेहद तीखा और सटीक प्रहार किया है। उन्होंने कहा, “बिहार में इंसानों की जान अब कीड़े-मकोड़े से भी सस्ती हो गई है। कानून नाम की कोई चीज़ नहीं बची है। शासन पूरी तरह से माफियाओं के हाथों में है।” तेजस्वी ने यह भी आरोप लगाया कि नीतीश कुमार सत्ता के लालच में बीजेपी के साथ ऐसे बंधन में बंध गए हैं, जहां न वे बोल सकते हैं, न कोई ठोस निर्णय ले सकते हैं। उन्होंने सीधा सवाल पूछा, “अगर मुख्यमंत्री खुद ही चुप हैं, तो जनता न्याय किससे मांगे? जो सरकार एक सप्ताह में 7 हत्याएं नहीं रोक पा रही, वह राज्य की रक्षा कैसे करेगी?” तेजस्वी का यह बयान केवल राजनीति नहीं, बल्कि उस जनाक्रोश की आवाज़ है, जो अब उबाल पर है।
राहुल गांधी की देशव्यापी चेतावनी:
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार की बिगड़ती कानून व्यवस्था पर ट्वीट करते हुए लिखा, “बिहार में हो रही हत्याएं बताती हैं कि बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन केवल सत्ता में बने रहने के लिए है, न कि जनता की सुरक्षा के लिए। यह गठबंधन बिहार की जनता के जीवन और स्वतंत्रता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।” राहुल गांधी के इस बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि उन्होंने उस जमीनी असुरक्षा की तरफ इशारा किया है जो बिहार की हर गली, हर मोहल्ले में महसूस की जा रही है। जब दिल्ली से नेता जनता की सुरक्षा की बात करें और मुख्यमंत्री चुप रहें, तो यह लोकतंत्र का नहीं, आपातकाल जैसा दृश्य प्रतीत होता है।
व्यापारियों की हत्या: रोज़गार नहीं, मौत की गारंटी:
बिहार में व्यापार करना अब जोखिम का काम बन चुका है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे खुलेआम व्यापारियों को गोली मारते हैं और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। औरंगाबाद, बक्सर, छपरा, बेगूसराय—हर जगह एक जैसी घटनाएं। पहले फिरौती की कॉल आती है, अगर पैसा नहीं दिया तो सीधे गोली। न FIR दर्ज होती है, न गिरफ्तारी होती है। व्यापारिक संगठन अब खुद को असुरक्षित मानने लगे हैं। एक व्यापारी नेता ने कहा, “हमने राज्य सरकार को ज्ञापन दिए, मगर जब खुद सरकार का ही दिल पत्थर का हो जाए, तो हम किससे आस लगाएं?” व्यापार की रीढ़ जब टूटेगी, तो बेरोजगारी बढ़ेगी, और अपराध की नई फसल तैयार होगी। क्या यही है नीतीश कुमार का विकास मॉडल?
स्वास्थ्यकर्मी भी नहीं बचे:
जब एक सरकार अपने स्वास्थ्यकर्मियों तक को सुरक्षा नहीं दे सकती, तो वह किस मुंह से ‘जन कल्याण’ की बात करती है? पटना में एक ग्रामीण स्वास्थ्य अधिकारी की दिनदहाड़े हत्या ने सबको झकझोर दिया। एक सरकारी कर्मचारी, जो गांव-गांव जाकर स्वास्थ्य सेवाएं देता था, उसे सरेआम गोली मार दी जाती है और पुलिस कहती है “जांच जारी है।” सवाल ये है—क्या बिहार में अब नौकरी करना भी जान जोखिम में डालने जैसा हो गया है? ऐसा लगता है कि अपराधी अब नीति और नैतिकता की सीमा नहीं मानते, क्योंकि उन्हें पता है कि बिहार सरकार की रीढ़ अब कमजोर हो चुकी है।
बेरोजगारी और अपराध का गठबंधन:
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने स्वीकार किया कि राज्य में बेरोजगारी और पुलिस पर राजनीतिक दबाव अपराध बढ़ने के दो मुख्य कारण हैं। युवा बेरोजगार हैं, शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है, और भ्रष्टाचार हर सरकारी भर्ती में गहराई से घुसा है। न नौकरी है, न रोजगार, और न कोई दिशा। ऐसे में युवा हथियार उठा रहे हैं। नतीजा वही होता है जो आज दिख रहा है—बिहार की धरती खून से लथपथ और भविष्य अंधकारमय। जब सरकार सिर्फ चुनावी आंकड़ों में व्यस्त हो और जमीनी सच से आंखें मूंद ले, तब वही होता है जो आज बिहार में हो रहा है।
नीतीश कुमार की चुप्पी:
शर्मनाक और डरावनी: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी इस पूरे मामले में सबसे अधिक डरावनी है। जो मुख्यमंत्री कभी ‘सुशासन’ का प्रतीक माने जाते थे, वे अब हर हत्या, हर अपहरण, हर लूट पर खामोश हैं। मीडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं, विधान सभा में बयान नहीं, और जनता के बीच कोई संपर्क नहीं। अगर मुख्यमंत्री खुद जनता के दर्द पर कुछ न कहें, तो लोकतंत्र की आत्मा पर प्रश्नचिन्ह लगता है। उनके साइलेंस को अब जनता ने नकारात्मक संदेश मान लिया है। जनता यह सोचने पर मजबूर है कि क्या नीतीश अब सत्ता में सिर्फ ‘संख्या’ के दम पर टिके रहना चाहते हैं, न कि जनता की सेवा के दम पर?
चुनावी नतीजों पर असर और जनता की चेतावनी:
इस बार बिहार का चुनाव केवल जाति, धर्म और वादों पर नहीं होगा। इस बार मुद्दा होगा—जिंदा बचने का। इस बार लोग पूछेंगे कि क्या मेरे बेटे का अपहरण नहीं होगा? क्या मेरी बेटी सुरक्षित है? क्या मेरा व्यवसाय लूट से बचा रहेगा? अगर सरकार इन सवालों का जवाब नहीं दे सकी, तो जनता भी इस बार जवाब देना जानती है। वह चाहे बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन हो या कोई और, अगर कानून व्यवस्था नहीं सुधरी, तो जनता अपना फैसला सुनाने में देर नहीं करेगी। इतिहास गवाह है कि बिहार का मतदाता जब जागता है, तो सत्ता की चूलें हिल जाती हैं।
बिहार इस समय एक राजनीतिक नहीं, मानवीय संकट से जूझ रहा है। खून की होली खेली जा रही है और शासन इसमें दर्शक बन गया है। एक गोली, एक ज़िंदगी, और एक मूक प्रशासन—यही है आज के बिहार का सच। ‘सुशासन बाबू’ अब इतिहास के पन्नों में हैं, वर्तमान में तो बस खौफ, चीखें और लाशें हैं। अगर यह सिलसिला नहीं रुका, तो बिहार के लोग चुनाव में न केवल सरकार बदलेंगे, बल्कि इतिहास की दिशा भी मोड़ देंगे। और तब कोई भी गठबंधन उन्हें यह कहने से नहीं रोक पाएगा कि—जंगलराज लौट आया है, इस बार सूट-बूट और खामोशी की शक्ल में।